Satyapal Malik Dies: नहीं रहे सत्यपाल मलिक, अपनी ही पार्टी के खिलाफ उठाई थी आवाज, जानें कैसा रहा सियासी सफर

Satyapal Malik Death
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जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन।

Satyapal Malik: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने 78 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। उनका देहांत दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में हुआ। आइए एक नजर डालते हैं उनके राजनीतिक सफर और बयानों की तरफ, जिन्होंने सियासत में हंगामा मचाया था।

Satyapal Malik: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का लंबी बीमारी के बाद 78 साल की उम्र में निधन हो गया। 5 अगस्त को दिल्ली के आरएमएल (राम मनोहर लोहिया) अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके पार्थिव शरीर को उनके आरके पुरम वाले आवास पर लेकर जाया जाएगा। कल उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

बता दें कि एक वक्त था, जब सत्यपाल मलिक बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शुमार थे और पार्टी के उपाध्यक्ष भी बने। उन्होंने हमेशा अपना पक्ष खुलकर सामने रखा, चाहें वो उनकी ही पार्टी के खिलाफ क्यों न जाए? वे चार राज्यों के राज्यपाल और जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल रहे। हालांकि बीते कुछ सालों से उनके रिश्ते मोदी सरकार से बिगड़ते चले गए। आइए जानते हैं उनका सियासी सफर के बारे में...

  • मलिक ने 1970 के दशक में एक विधायक के रूप में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। 50 साल के राजनीतिक सफर में एक राजनेता के रूप में उन्होंने कई पार्टियां बदलीं। उन्होंने हमेशा खुद को जाट समाज और किसान नेता के तौर पर बताया।
  • उनका जन्म पश्चिमी यूपी के बागपत के गांव हिसाववाद में 24 जुलाई 1946 को हुआ था। महज दो साल की उम्र में ही उनके पिता का देहांत हो गया था। वो छात्र जीवन में ही राजनीति से जुड़ गए थे। वे चौधरी चरण सिंह को अपना गुरु मानते थे और वे उन्हें सक्रिय राजनीति में लाने का श्रेय भी उन्हें ही देते रहे हैं।
  • उन्होंने पहली बार चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल के टिकट पर 1974 में बागपत विधानसभा का चुनाव लड़ा। यहां से जीत हासिल कर वे 28 साल की उम्र में ही विधानसभा पहुंच गए।
  • साल 1980 में उन्होंने लोकदल के टिकट पर राज्यसभा का चुनाव लड़ा और राज्यसभा पहुंच गए।
  • 1975 में आपातकाल लगाई गई थी और इस दौरान उन्होंने कांग्रेस का पुरजोर विरोध किया और जेल भी गए। हालांकि उन्होंने साल 1984 में कांग्रेस जॉइन कर ली और साल 1986 में लोकसभा पहुंचे।
  • इसके बाद सत्यपाल मलिक ने जन मोर्चा पार्टी बनाई और साल 1988 में अपनी पार्ची का जनता दल में विलय कर लिया और साल 1989 में वे अलीगढ़ से सांसद बने।
  • इसके बाद सपा मुखिया मुलायम सिंह के उभार वाले दिनों में सत्यपाल मलिक ने समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली। उन्होंने 1996 में सपा के टिकट से अलीगढ़ से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए।
  • साल 2004 में वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और बागपत से चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं पाए।
  • साल 2012 में वे बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने।
  • साल 2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया।
  • साल 2018 में वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे।
  • साल 2019 में वे गोवा के राज्यपाल बने।
  • साल 2020 में उन्हें मेघालय का राज्यपाल बनाया गया।

सत्यपाल मलिक के इन बयानों पर मचा था बवाल

वे अपने बयानों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहे हैं। सत्यपाल मलिक और बीजेपी के रिश्तों में किसान आंदोलन के समय से ही खटास होनी शुरू हुई। जब सत्यपाल मलिक मेघालय के गवर्नर थे, इस दौरान उन्होंने एक बयान देते हुए कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर 700 किसान मर गए। एक कुत्ता भी मरता है, तो दर्द होता है। लेकिन इतने किसानों की मौत के बाद भी दिल्ली से एक भी चिट्ठी नहीं आई।

इसके अलावा उन्होंने पुलवामा हमले को लेकर भी आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार की अनदेखी के कारण ये हमला हुआ। उन्होंने कहा कि पुलवामा हमले के दौरान हमारी तरफ से चूक हुई। इसके अलावा उन्होंने ये भी कहा था कि बीजेपी ने चुनावों में पुलवामा हमले का फायदा उठाया।

सत्यपाल मलिक ने 17 अक्टूबर 2021 में राजस्थान के झुंझुनू में हुए एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल रहते हुए उन्हें रिश्वत ऑफर हुई थी। उन्होंने कहा था कि उनके पास करोड़ों का ऑफर आया था और साथ में दो फाइल भी आई थीं। ये फाइल एक बड़े उद्योगपति, दूसरी महबूबा मुफ्ती और बीजेपी की गठबंधन सरकार में मंत्री रहे एक शख्स की थी। उन्होंने इस डील को स्वीकार नहीं किया।

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