Dhurandhar: धुरंधर फिल्म के असली धुरंधर की कहानी, जानिए मेजर मोहित शर्मा के बारे में

Dhurandhar: 5 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्म धुरंधर दर्शकों की खूब प्रशंसा बटोर रही रही है। लोग इस फिल्म के किरदारों को जोड़-जोड़कर एक वास्तविक कहानी पर आधारित फिल्म मान रहे हैं। लोगों का मानना है कि इस फिल्म एक रियल भारतीय जासूस की कहानी को दिखाया गया है। जो पाकिस्तान में रहकर भारत सरकार के लिए खुफिया जानकारी इकट्ठा करने का काम करता है।
फिल्म मेकर ने किया साफ
लोग दावा कर रहे हैं कि यह कहानी भारतीय सेना के धुरंधर मेजर मोहित शर्मा की जिंदगी से काफी मेल खाती है। वहीं फिल्ममेकर्स का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं है। यह फिल्म मोहित शर्मा के बायोपिक नहीं है। तो चलिए हम आपको बताते हैं देश के असली धुरंधर की कहानी, जिन्होंने देश के लिए लड़ते हुए अपनी जान न्यौछावर कर दी।
गाजियाबाद में बीता बचपन
मेजर मोहित शर्मा का जन्म हरियाणा के रोहतक में हुआ था। लेकिन उनका अधिकांश बचपन यूपी के गाजियाबाद में गुजरा। उन्होंने यहीं रहकर 12 वीं तक की पढ़ाई की। इसके बाद शेगांव की इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन करवाया, जिसे बाद में एनडीए की परीक्षा में तबदील करा लिया। साल 1995 में भोपाल के एसएसबी इंटरव्यू क्रैक किया और वह एनडीए में पहुंच गए। साल 1995 में मेजर बने और 5वीं मद्रास रेजीमेंट जॉइन की।
होशियारी के बादशाह
उनकी पहली पोस्टिंग हैदराबाद में हुई। इसके बाद साल 2002 में उनका ट्रांसफर जम्मू कश्मीर में 38 राष्ट्रीय राइफल में हो गया। जहाँ उन्हें सीओएएस कमेंडेशन कार्ड मिला। फिर साल आया 2003 जहां उन्हें एक असली धुरंधर बनाने का मौका मिला। दो साल तक इन्होंने बेलगाम में कमांडो की ट्रेनिंग ली। जहां उनकी रणनीति होशियारी देखकर सब हैरान रह गए।
घर में घुसकर मारा
साल 2004 में हिज्बुल मुजाहिद्दीन के 2 आतंकवादी भारत में घुसने की कोशिश कर रहे थे। इस दौरान भारत मां के इस बहादुर शेर ने न सिर्फ उन दोनों को रोका बल्कि उन्हें मार भी दिया।
जीवन की आखिरी लड़ाई
साल 2009 में इंटेलिजेंस ने खबर दी की कुपवाड़ा में आतंकवादी घुसने की कोशिश कर रहे हैं। मोहित शर्मा ने अपनी पूरी यूनिट के साथ मोर्चा संभाला। जंगल काफी घना था और दुश्मनों ने तीन तरफ से घुसपैठ की थी। इस दौरान में उनकी यूनिट के 4 कमांडो घायल हो गए।
साथियों को बचाया
मोहित शर्मा घायलों को कवर फायरिंग दी और बड़ी ही होशियार के साथ उन्हें सुरक्षित स्थान ले गया। इस दौरान उन्होंने अपने साथी को वहां से निकलने को कहा, और खुद दुश्मनों की लाइन में घुस गए, चार आतंकवादियों को मार गिराया। इस लड़ाई में उन्हें 6 गोलियां लगी और मात्र 31 साल की उम्र में मेजर मोहित शर्मा शहीद हो गए। मेजर मोहित शर्मा ने अपनी आखिर लड़ाई लड़ते हुए भी भारतीय सेना को जीत दिलाई।
अशोक चक्र से सम्मानित
भारतीय सेना के जबाज सिपाही मेजर मोहित शर्मा को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। साल 2019 में मोहित शर्मा के सम्मान में, राजेंद्र नगर मेट्रो स्टेशन का नाम बदलकर मेजर मोहित शर्मा राजेंद्र नगर मेट्रो स्टेशन कर दिया गया था। मेजर मोहित शर्मा की पत्नी आज भी भारतीय सेना में सेवाएं दे रही हैं।
