Justice Yashwant Varma: जस्टिस यशवंत वर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला, कपिल सिब्बल ने दी ये दलील

Justice Yashwant Varma: कैश कांड में फंसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा द्वारा दायर की गई रिट याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस याचिका में जस्टिस यशवंत वर्मा ने आंतरिक जांच घोटाले में दोषी ठहराए जाने वाली रिपोर्ट को चुनौती दी थी। साथ ही उन्होंने तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को हटाने की सिफारिश को भी चुनौती दी थी।
इस मामले में 30 जुलाई को जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की। इस दौरान बेंच ने एडवोकेट जे. नेदुम्परा द्वारा दायर की गई उस रिट याचिका पर भी सुनवाई की, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग की गई थी।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि आंतरिक जांच किसी जज को हटाने का कारण नहीं बन सकती। अगर ऐसा होता है तो ये अनुच्छेद 124 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि चीफ जस्टिस आंतरिक प्रक्रिया के आधार पर किसी जज को हटाने की सिफारिश करते हैं, तो इसका असर पड़ता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये उच्च संवैधानिक प्राधिकारी द्वारा की जाती है। इससे संसद की प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ सकता है। ऐसा करके सीजेआई ने संसद के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है।
इस पर जस्टिस दत्ता ने बताया कि आंतरिक प्रक्रिया की उत्पत्ति सुप्रीम कोर्ट द्वारा के. वीरास्वामी और रविंद्रचंद्रन अय्यर जैसे जजों द्वारा दिए गए फैसलों के आधार पर हुई है। जस्टिस दत्ता ने कपिल सिब्बल से पछा कि वे जस्टिस वर्मा के लिए क्या राहत चाहते हैं?
इस पर सिब्बल ने जवाब दिया कि वो ये घोषणा चाहते हैं कि तत्कालीन CJI की जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश को अमान्य घोषित किया जाए। इस पर जस्टिस दत्ता ने कहा कि अगर हम आंतरिक जांच प्रक्रिया के उन फैसलों को सही मानते हैं, तो इसका यहीं अंत हो जाता है। न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम की धारा 3(2) में 'अन्यथा' बेंच को आंतरिक जांच प्रक्रिया को शुरू करने और किसी जज से न्यायिक कार्य वापस लेने की अनुमति देता है।
बेंच ने कहा कि अगर CJI के पास किसी न्यायाधीश द्वारा कदाचार किए जाने के पर्याप्त सबूत हैं, तो वो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सूचित कर सकते हैं। आगे बढ़ना या न बढ़ना राजनीतिक निर्णय है।
इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि इस तरह से किसी जज को हटाने की कार्यवाही की सिफारिश करना एक खतरनाक मिसाल कायम करेगी। बेंच ने कपिल सिब्बल से पूछा कि जस्टिस वर्मा ने पहले संपर्क क्यों नहीं किया? इस पर उन्होंने जवाब दिया क्योंकि तब तक टेप जारी हो चुका था और उनकी छवि धूमिल हो चुकी थी।
कोर्ट ने एडवोकेट जे. नेदुम्परा द्वारा दायर की गई जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग वाली याचिका पर उनकी खिंचाई की। सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता ने नेदुम्परा से पूछा कि क्या उन्होंने एफआईआर दर्ज कराने की मांग करने से पहले पुलिस से औपचारिक शिकायत भी की थी।
