Jagannath Rath Yatra: जगन्नाथ रथयात्रा में क्यों निकलते हैं 3 रथ, कैसे होती है पहचान, क्या खासियत?

जगन्नाथ रथयात्रा के तीन रथ का महत्व।
Jagannath Rath Yatra 2025: पूरे देश में आज यानी 27 जून से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू हो गई है। यह रथ यात्रा 8 जुलाई तक चलने वाली है। हर साल आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू होती है। खासकर ओडिशा के पुरी में यह उत्सव बहुत ही धूमधाम और हर्ष उल्लास से मनाया जाता है। पुरी में भगवान जगन्नाथ का भव्य मंदिर है। इस दौरान यहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में 3 रथ निकाले जाते हैं। इस भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा का रथ शामिल होता है। आइए विस्तार से जानते हैं इन तीनों रथों का क्या महत्व है। आइए कुछ रोचक तथ्यों के साथ रथ यात्रा के तीन अलग-अलग रथों पर एक नजर डालें।
पहला रथ- भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष के नाम से जाना जाता है, जिसकी ऊंचाई 45.6 फीट होती है। इस रथ का रंग लाल और पीला होता है, जिसमें कुल 16 पहिए लगे होते हैं। इस रथ के सारथी दारुक हैं। बता दें कि इस रथ को गरुड़ध्वज भी कहा जाता है। इस रथ में सफेद रंग के कुल 4 घोड़े होते हैं। वहीं, रथ की रक्षा देवता गरुड़ करते हैं। इस रथ पर लगे ध्वज को त्रैलोक्यमोहिनी के नाम से जाना जाता है।
दूसरा रथ- भगवान बलभद्र के रथ का नाम तालध्वज है, जो रथयात्रा में सबसे आगे चलता है। इसकी ऊंचाई 44 फीट होती है, जिसका रंग लाल और हरा होता है। इसमें कुल 14 पहिए लगे होते हैं। बता दें कि बलभद्र के रथ के सारथी मातलि हैं। बलभद्र के रथ में काल रंग के 4 घोड़े होते हैं। देवता वासुदेव इस रथ की रक्षा करते हैं। रथ पर लगे झंडे को उन्नानी के नाम से जाना जाता है।
तीसरा रथ- रथयात्रा में भगवान बलराम के रथ के पीछे देवी सुभद्रा का रथ चलता है। इसकी ऊंचाई 44.6 फीट होती है, जिसका रंग लाल और काला होता है। इसमें कुल 12 पहिए लगे होते हैं। इसमें लाल रंग के 4 घोड़ होते हैं। बता दें कि इस रथ के सारथी अर्जुन हैं। वहीं, इसकी रक्षा देवी जयदुर्गा करती हैं। देवा सुभद्रे के रथ पर लगे ध्वज को नादम्बिका के नाम से जाना जाता है।
सबसे पीछे चलता है भगवान जगन्नाथ का रथ
रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के रथ के साथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का रथ निकाला जाता है। रथयात्रा में बलभद्र यानी भगवान बलराम का रथ सबसे आगे चलता है। इसके पीछे देवी सुभद्रा का रथ और फिर सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ चलता है। तीनों रथों की ऊंचाई और रंग अलग-अलग होते हैं, जिससे इन्हें पहचाना जाता है।
कैसे बनता है रथ?
हर साल जगन्नाथ मंदिर पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलराम और देवी सुभद्रा की रथयात्रा के लिए लिए 3 विशाल रथ बनाए जाते हैं। इन रथों के निर्माण के लिए दसपल्ला और रानपुर के जंगलों से 1,000 से ज्यादा लकड़ियां (लकड़ी के लट्ठे) लाए जाते हैं। दो महीने तक 100 से ज्यादा बढ़ई रथ बनाने के लिए काम करते हैं। वहीं, एक मील रथ के लिए हर साल करीब 2,000 मीटर कपड़ा उपलब्ध करवाता है, जिससे रथ को सजाया जाता है। जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान परेड मार्ग पर रथों को खींचने के लिए भक्त 8 इंच व्यास (Diameter) वाली रस्सियों का इस्तेमाल करते हैं, जो नारियल के रेशे बनाई जाती है।
क्यों निकाली जाती है रथयात्रा?
भगवान जगन्नाथ रथयात्रा का इतिहास हजारों साल पुराना है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवी सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्ण और बलराम से कहा कि वे नगर को देखना चाहती हैं। उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए दोनों भाइयों ने अपनी मौसी के घर जाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने एक रथ तैयार करवाया। गुंडीचा देवी को भगवान जगन्नाथ की मौसी माना जाता है। तीनों भाई बहन साथ में गुंडीचा देवी के घर जाते हैं, जहां पर वे 7 दिनों के लिए रुकते हैं। इसलिए हर साल जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा शुरू की जाती है, जो गुंडीचा मंदिर तक जाता है। यहां पर 7 दिनों के लिए भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र आराम करते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ वापस लौटते हैं, जिसे बहुदा यात्रा कहा जाता है।
