Israel Iran War: असली विलेन कौन... ईरान की न्यूक्लियर साइट्स किसकी मदद से फली-फूली?

Iran Nuclear Program Villain United States
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विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति को पसंद नहीं ईरान की परमाणु शक्ति

अमेरिका और इजरायल दावा कर रहे हैं कि ईरान कभी भी न्यूक्लियर बम नहीं बनाएंगे, लेकिन ईरान भी जिद्दी देश है। आइये बताते हैं उस देश के बारे में, जिसने सबसे पहले ईरान में न्यूक्लियर कार्यक्रम की बीज बोए थे।

Israel Iran War: संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच 1947 से लेकर 1991 तक चले वैचारिक और भू-राजनीतिक संघर्ष के दौरान दुनिया दो भागों में बंट गई। 1960 के दशक में ईरान ने अमेरिका को खुलकर समर्थन किया, जिसके बदले में ऐसा तोहफा मिला, जिसे लेकर आज भी अमेरिका पछता रहा होगा। हम ईरान के परमाणु हथियारों की बात कर रहे हैं, जिसके बीज स्वयं अमेरिका ने बोए थे। तो चलिये बताते हैं कि ईरान और अमेरिका के बीच दोस्ती से लेकर दुश्मनी तक की पूरी कहानी...

जब यूएस ने बांटने शुरू कर दिए छोटे रिएक्टर

8 दिसंबर 1953 को तब के अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर ने यूनाइटेड नेशंस की बैठक में 'एटम फॉर पीस' थीम पर भाषण दिया था। उन्होंने कहा था कि परमाणु हथियार उन देशों के पास भी होना चाहिए, जो शांति के लिए इस्तेमाल करना जानते हैं। आइजनहावर के इस भाषण के एक साल बाद यानी 1954 में छोटे देशों को परमाणु रिएक्टर देना शुरू कर दिया। ईरान की बात करें तो 5 मार्च 1957 को अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील हुई थी। डील में कहा गया था कि ईरान कभी भी इसका उपयोग एटम बन बनाने के लिए नहीं करेगा। इस समझौते के बाद अमेरिकी कंपनी 'अमेरिकन मशीन एंड फाउंड्री' ने तेहरान यूनिवर्सिटी के कैंपस में तेहरान न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर (TNRC) बनाना शुरू कर दिया।

ईरान को 1967 में दिया पहला थर्मल रिएक्टर

इस डील के दौरान ईरान की सत्ता राजा मोहम्मद रजा शाह पहलवी के हाथों में थी। उनके अमेरिका के साथ ही ब्रिटेन और कई पश्चिमी देशों से अच्छे संबंध थे। उन्होंने 1959 में तेहरान न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर की शुरुआत कर दी। इसके बाद अमेरिका ने पहली बार नवंबर 1967 में ईरान को 5 मेगावाट का थर्मल रिएक्टर दिया। साथ ही, रिएक्टर के फ्यूल के तौर पर 93.5 फीसद तक संवर्धित वेपन-ग्रेड यूरेनियम भी दिया। परमाणु हथियारों के लिए प्लूटोनियम प्रमुख सामग्री है। रिएक्टर रासायनिक पुनर्संसाधन के माध्यम से प्लूटोनियम का उत्पादन कर सकता था। यह समृद्ध यूरेनियम को भी प्रारंभिक बिंदू प्रदान करता। मतलब इससे एटम बम भी बनाया जा सकता था।

तेहरान न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर

तेहरान न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर

अमेरिका ने 1967 में थर्मल रिएक्टर दिया, लेकिन एक साल बाद ही डर सताने लगा कि कहीं ईरान परमाणु हथियार न बनाने लगे। इसके लिए 1 जुलाई 1968 को ईरान ने परमाणु अप्रसार संधि पर साइन कर दिए और कहा कि वह परमाणु रिएक्टर का इस्तेमाल कभी भी परमाणु बम बनाने के लिए नहीं करेगा। इस पर अमेरिका ने भरोसा किया, लेकिन बाद में दोनों देशों के बीच अविश्वास बढ़ने लगा।

ईरान और अमेरिका के बीच कैसे हुई दुश्मनी

इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के ईरान प्रोजेक्ट के डायरेक्टर अली वेज बताते हैं कि 1970 के दशक में ईरान पहली बार परमाणु बम बनाने को लेकर चर्चा में आया। ईरान ने पश्चिमी जर्मनी और फ्रांस से परमाणु संयत्र खरीदे। तेहरान न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर चलता रहा। कुछ समय बाद यह किसी और चीज के लिए प्रसिद्ध हो गया। उन्होंने कहा कि तेल की कीमतों में भारी उछाल के चलते हर किसी की नजर ईरान पर थी। ईरान अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु हथियार चाहता था। एक पल तो ऐसा आया था कि राजा मोहम्मद रजा शाह पहलवी ने जोर देकर कहा था कि ईरान को भी अन्य देशों की तरह परमाणु ऊर्जा का सामान अधिकार है। उनके इस बयान के बाद से अमेरिका जागा, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।

अमेरिका के खिलाफ बढ़ने लगा आक्रोश

ईरान के राजा मोहम्मद रजा पहलवी ने 16 सितंबर 1941 से लेकर 11 फरवरी 1979 तक शासन किया। उनके शासनकाल में ईरानियों का झुकाव लगातार पश्चिमी सभ्यता की ओर जा रहा था। इसके चलते ईरानी क्रांति का आगाज हुआ, जिस कारण राजा को भागना पड़ा। इसके बाद ईरान की सत्ता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी के नेतृत्व वाली नई इस्लामवादी सरकार के हाथों आ गई। इसके बाद से अमेरिका के खिलाफ आक्रोश बढ़ने लगा।


वेज कहते हैं कि उस वक्त हजारों लोग शुक्रवार को तेहरान विश्वविद्यालय में इकट्ठा होते और अमेरिका की मौत के नारे लगाते। शुरुआत में परमाणु कार्यक्रम पर संदेह था, लेकिन एक वक्त आया जब ईरानी सरकार ने परमाणु कार्यक्रम को फिर से जीवित कर दिया।

राजा मोहम्मद रजा पहलवी

राजा मोहम्मद रजा पहलवी

ईरान ने इस वजह से पुनर्जीवित किया परमाणु कार्यक्रम

बात 1980 के दशक की है, जब सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में इराक लगातार ईरान के खिलाफ क्रूर युद्ध लड़ रहा था। सद्दाम ने परमाणु सेंटरों पर कई बार बमबारी की, जिससे की युद्ध की समाप्ति यानी 1988 तक ईरान को बिजली की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ा। यह देखते हुए ईरानी सरकार ने परमाणु कार्यक्रमों को दोबारा से शुरू करने का निर्णय लिया। हालांकि, कुछ रिपोर्ट्स यह भी बताती हैं कि कई देश ईरान का तेल हड़पना चाहते थे, जिसके चलते ईरान को परमाणु बम की आवश्यकता थी।

1990 से 2015 तक का दौर, कैसे बढ़ी चिंता

इराक से युद्ध खत्म होने के बाद ईरान ने पाकिस्तान के साथ अपने परमाणु कार्यक्रम का विस्तार करना शुरू कर दिया। इजरायल जब भी उस पर सवाल उठाता तो ईरान खारिज कर देता। पहली बार ईरान ने 2000 के दशक की शुरुआत में अपने परमाणु कार्यक्रम के भविष्य पर चर्चा के लिए पेशकश की। इसके बाद यूरोपीय शक्तियों के साथ समझौता किया, लेकिन अमेरिका ने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। इसके बाद ईरान ने हजारों सेंट्रीफ्यूज का निर्माण करना शुरू कर दिया, जिसका उपयोग समृद्ध यूरेनियम बनाने के लिए किया जाता है। IAEA की 2011 की रिपोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की थी। इसके बाद ईरान ने 14 जुलाई 2015 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच सदस्य यानी ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ समझौता कर लिया।

डोनाल्ड ट्रंप की वजह से टूट गया समझौता?

यह समझौता उस वक्त टूटने लगा, जब डोनाल्ड ट्रंप फिर से सत्ता में आ गए। डोनाल्ड ट्रंप ने 8 मई 2018 को फिर से ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए। इसके बाद ईरान ने भी परमाणु कार्यक्रमों को तेजी से आगे बढ़ाने का फैसला ले लिया, जो कि सीधे-सीधे अमेरिका को चुनौती देना था। अमेरिका ने ईरान को फिर से नए सिरे से न्यूक्लियर डील करने का दबाव बनाया, जब ईरान नहीं माना तो 13 जून 2025 को इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर दिया। अमेरिका ने भी 22 जून को बी 2 बॉम्बर विमान की मदद से इरान में नतांज और फोर्डो की न्यूक्लियर साइट्स पर हमला कर दिया।

अमेरिका और इजरायल का दावा है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम तबाह हो चुका है, लेकिन ईरान का दावा है कि कुछ नुकसान अवश्य हुआ है, लेकिन बड़ा नुकसान नहीं हुआ है। सीएनएन और न्यूयॉक टाइम्स समेत कई मीडिया रिपोर्ट्स में भी दावा किया जा रहा है कि ईरान ने पहले ही इन न्यूक्लियर प्लांट्स से संवर्धित यूरेनियम हटा दिया था। हालांकि यह अवश्य है कि ईरान के टॉप परमाणु वैज्ञानिकों की मौत से परमाणु बम बनाने के कार्यक्रम में तीन से चार साल की देरी अवश्यक हो गई है।

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