Razia Sultan: परंपराओं से परे जाकर रजिया सुल्तान बनी थीं शासक, पिता ने बेटों पर नहीं किया था भरोसा

Razia Sultan History
X

रजिया सुल्तान की कहानी 

रजिया सुल्तान अपने ही सौतेले भाई की हत्या करा कर दिल्ली की पहली महिला मुस्लिम शासक बनी थी। रजिया आगे चलकर एक अच्छी प्रशासका के साथ अच्छी सैनिक रणनीतिकार साबित हुईं।

Razia Sultan: साल 1206 में चंगेज खां की सेना मध्य एशिया के घास के मैदान में घोड़ो की टापों से लोगों को रौंद रहा था। उस समय दिल्ली सल्तनत के शासक शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के घर एक बेटी ने जन्म लिया। इस बेटी का नाम जलॉलात उद-दिन रज़ियॉ रखा गया, जो बाद में रजिया सुल्तान के नाम से विख्यात हुईं।

ये तो हम सभी जानते हैं कि दिल्ली की कुतुब मीनार को बनवाने का काम सबसे पहले कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया था। परन्तु उसे पूरा रजिया के पिता ने किया था, जिसका नाम सुल्तान इल्तुतमिश था। उनके बारे में मिन्हाजुस सिराज ने अपनी किताब तबकात-ए-नासिरी में लिखा कि दिल्ली पर राज करने वाले सभी शासकों में शम्सुद्दीन इल्तुतमिश सबसे अधिक उदार थे, जो विद्वानों और बुजुर्गों का सम्मान करने वाले शासक थे। मोरक्को के इब्न बतूता ने भी अपनी किताब रेहला में लिखा था कि दबे-कुचले और अन्याय हुए लोगों को न्याय दिलवाने में कोई सुल्तान इल्तुतमिश की बराबरी नही कर सकता था।

ऐसा कहा जाता है कि सुल्तान ने पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए अपने महल के बाहर एक घंटा लगवा दिया था। जब भी कोई व्यक्ति किसी परेशानी में होता था,या किसी आदमी के साथ अन्याय होता तो वो इस घंटे को बजाकर सुल्तान से आसानी से मिल सकता था। सुल्तान बिना किसी देरी के पीड़ितों को न्याय दिलाने की कोशिश करते थे।

इल्तुतमिश जब बूढ़े होने लगे, तो दरबारियों ने उन्हें उनका अगला उत्तराधिकारी घोषित करने को कहा ताकि उनकी मृत्यु के बाद उनके वारिसों में गद्दी के लिए जंग ना हो। शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने अपनी सबसे बड़ी बेटी रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। एक इतिहासकार सिराज जुजानी का कहना है कि रजिया एक लड़की थी और इसके बावजूद सुल्तान ने उसे बकायदा लिखित में अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। सुल्तान ने ये भी कहा था कि मेरे सभी बेटे जवानी का आनंद लेने में लिप्त हैं। उनमें से एक भी राजा बनने की काबिलियत नहीं रखता। देश का नेतृत्व करने के लिए मेरी मौत के बाद मेरी बेटी से काबिल कोई नहीं होगा।

रजिया के सुल्तान बनाने का फैसला सिर्फ भावनाओं में बहकर नहीं, बल्कि उसकी क्षमता परखकर लिया गया था। रजिया को परखने के लिए सुल्तान इल्तुतमिश ने अपने सैनिक अभियानों के दौरान उसे प्रशासनिक जिम्मेदारी सौपी थीं। उन सभी जिम्मेदारी को रजिया ने बखूबी निभाया था। रजिया का सुल्तान बनना क्षमता के काबिल तो था, परन्तु परंपरा के अनुरूप नहीं था।

इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद दरबारियों में रजिया को सुल्तान मानने से मना कर दिया। क्योंकि रजिया एक महिला थी और दरबारी किसी महिला के अधीन काम करना नहीं चाहते थे। इल्तुतमिश के आदेश को न मानते हुए उन्होंने बड़े बेटे रुक्नुद्दीन फिरोज को दिल्ली का शासक बना दिया। परन्तु फिरोज को गद्दी में कोई दिलचस्पी नहीं थी, उसने सारा राज-काज का काम अपनी मां के कंधों पर थोप दिया। उसकी मां बहुत शातिर और प्रतिशोध लेने वाली महिला थी।

इतना सब कुछ करने के बाद दरबारियों को महिला के अधीन ही काम करना पड़ा था। फिरोज एक बेकार शासक साबित हुआ। सिराज ने लिखा है कि वह उदार दिल और दयालु जरूर था, लेकिन उसने पूरा जीवन अय्याशी, मौज-मस्ती में निकाल दिया। कहा जाता है कि फिरोज पूरे दिन शराब के नशे में रहता और हाथी पर सवार होकर दोनों हाथों से सड़कों और बाजारों पर सिक्के लुटाता था।

फिरोज के शासन काल में उसकी मां शाह तुर्कन ने पूरा फायदा उठाया था। उसने अपने सारे दुश्मनों को ठिकाने पर लगाना शुरु कर दिया। उसने अपने एक सौतेले बेटे को अंधा करवा कर बाद में हत्या करा दी थी। यहां तक कि उसने रजिया को मरवाने की भी पूरी कोशिश की थी, परन्तु रजिया हर बार अपनी चतुराई के कारण बच गई। ऐसा गंदा माहौल देखकर दिल्ली के कई गवर्नर ने फिरोज के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया। फिरोज जैसे ही विद्रोह को रोकने के लिए दिल्ली से बाहर गया, रजिया ने इस बात का पूरा फायदा उठाया। रजिया ने मौका देखते ही दिल्ली की जनभावनाओं को अपने पक्ष में कर, महल पर हमला बोल दिया। रजिया में शाह तुर्कन को गिरफ्तार कर लिया था। जब फिरोज दिल्ली लौटा तो उसको गिरफ्तार कर जान से मार दिया गया। फिरोज दिल्ली की गद्दी पर 7 महीने ही राज कर पाया था।

फिरोज की हत्या के तुरंत बाद दरबार में विचार होने लगा कि अब गद्दी पर किसे बिठाया जाए। रजिया ने मौका देखकर खुद ही खिड़की से दुपट्टा हिलाकर ऐलान कर दिया कि मैं महामहिम की बेटी हूं और उन्होंने ही मुझे अपना वारिस चुना था। आपने सुल्तान के आदेश की अवहेलना की और ताज किसी दूसरे के सिर पर रख दिया था। इस कारण आप सब को ऐसी मुसीबतों का सामना करना पड़ा । इस तरह रजिया ने दरबारियों से कहा मुझे कुछ सालों के लिए ताज दीजिए। उसने कहा मेरी क्षमताओं को परखिए, अगर मैं एक अच्छी शासक साबित होती हूं, तो मुझे गद्दी पर रहने दीजिए। यदि मैं आप सब की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी, तो गद्दी किसी और को दे देना। इस तरह रजिया को साल नवंबर 1236 में दिल्ली की गद्दी मिली।

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo

Tags

Next Story