Yamuna cleaning: यमुना की सफाई पर पिछले तीन सालों में कितना लगा पैसा, चौंका देंगे आंकड़े

केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री राज भूषण चौधरी।
Yamuna cleaning: शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्र सरकार ने दिल्ली में यमुना प्रदूषण के कई बड़े कारणों को लेकर जानकारी साझा की। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने राज्यसभा में बताया कि यमुना नदी में बढ़ते प्रदूषण की मुख्य वजह सीवेज, ट्रीटमेंट प्लांट्स के प्रोजेक्ट्स में देरी है। साथ ही कचरे की रीसाइक्लिंग कैपेसिटी भी एक मुख्य कारण है।
5 हजार करोड़ से अधिक खर्च
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार, दिल्ली जल बोर्ड ने पिछले तीन सालों में यमुना की सफाई के लिए 5536 करोड़ रुपए का खर्च किया है। लेकिन इतने बड़ी रकम लगाने के बाद भी यमुना के हालात में कोई विशेष सुधार नहीं आया है। राज्यसभा में जल शक्ति मंत्री राज भूषण चौधरी ने लिखित में जवाब देते हुए कहा कि अगस्त 2025 से पहले दिल्ली में 414 एमएलडी सीवेज का भी ट्रीटमेंट नहीं हो पा रहा था।
राजधानी में कूड़े की भरमार
कई मंजूर औद्योगिक इलाकों में साझा इटीपी नहीं है। इसके अलावा सीवेज को ट्रीट करने की परियोजनाओं को पूरा करने और अपग्रेड करने में लगातार देरी हो रही है। केंद्र मंत्री भूषण चौधरी के मुताबिक, दिल्ली में प्रतिदिन 11,862 कचरा पैदा होता है। वहीं कूड़े रीसाइक्लिंग कैपिसिटी मात्र 7,641 टन की है। जिससे चलते हर रोज 4,221 टन कचरा रीसायकल होने से बच जाता है और यही कचरा यमुना नदी में जाकर प्रदूषण को बढ़ाने का काम करता है।
प्रोजेक्ट हुआ पूरा लेकिन कोई सुधार नहीं
दिल्ली के कमर्शियल, इंडस्ट्रियल और रिहायशी इलाकों का गंदी पानी यमुना में जाने से रोकने के लिए जल बोर्ड का इंटरसेप्टर सीवर प्रोजेक्ट हो गया। इसके बावजूद भी यमुना की स्थिति में अभी भी कोई विशेष सुधार नहीं है। वहीं इस प्रोजेक्ट पर यमुना मॉनिटरिंग कमिटी रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि जब तक रिठाला और कोडली के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पूरी तरह से अपग्रेड नहीं हो जाते, तब तक यमुना को भी साफ नहीं किया जा सकता।
यमुना सफाई के लिए बनाया गया प्लान
जल बोर्ड के मुताबिक, 2010 से 12 के बीच यमुना को साफ करने के लिए इंटरसेप्टर प्रोजेक्ट की योजना को तैयार किया गया था। इस प्रोजेक्ट के तहत सप्लीमेंट्री ड्रेन, शाहदरा ड्रेन और नजफगढ़ ड्रेन के किनारे सीवर लाइनें बिछाकर सीवेज नदी में गंदगी जाने से रोकना था। इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 3105 करोड़ रुपए थी, जिसमें केंद्र सरकार ने भी 800 करोड़ देने का काम किया था।
