Historical Place: कहानी दिल्ली के कौड़िया पुल की, जितना रोचक नाम उतने ही रोचक तथ्य

Kaudiya Pul Of Delhi
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दिल्ली का कौड़िया पुल।

Historical Place: दिल्ली में एक ऐसा पुल है, जो आज विलुप्त हो चुका है, लेकिन इसका नाम आज भी लोगों की जुबान पर है। इस पुल का नाम है कौड़िया पुल... ये नाम सुनने में जितना रोचक है, इसकी कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है।

Historical Places: राजधानी दिल्ली की गली-गली में कोई- न-कोई कहानी छिपी हुई है। यहां अजीबो-गरीब गलियों और जगहों के नाम अकसर लोगों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं। शहर का इतिहास जितना पुराना है, उनकी कहानियां भी उतनी ही दिलचस्प हैं। आपको हमने पिछली कहानी में 'पुल मिठाई' के बारे में बताया था। अब हम आपको बताएंगे 'कौड़िया पुल' की कहानी.... इसका नाम जितना रोचक है, इसकी कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है।

आपने वो मुहावरा तो सुना ही होगा, 'फूटी कौड़ी' वाला, ये पुल भी उसी कौड़ी की याद दिलाता है। ये पुल आज सिर्फ किताबों के पन्नों तक ही सिमट कर रह गया है। लेकिन एक समय पर ये चांदनी चौक के लिए बहुत खास हुआ करता था। चांदनी चौक से कश्मीरी गेट तक फैले इस पुल की कहानी आज भी जीवांत है।

कौड़िया ही नाम क्यों?

मुगल कालीन समय में कौड़ी सिर्फ एक आभूषण ही नहीं थी बल्कि इसका इस्तेमाल मुद्रा के रूप में भी किया जाता था। इस पुल का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था। उस समय कौड़ी का प्रचलन ज्यादा था। चमकदार और सस्ती मुद्रा के इस्तेमाल से बने इस पुल का नाम कौड़ी के नाम पर ही 'कौड़िया पुल' पड़ गया। वहीं इस पुल के कुछ हिस्सों में सजाने के लिए कौड़ियों को लगाया गया भी गया था। इस पुल को उस समय पैदल यात्रियों के चलने के लिए गंग नहर पर बनाया गया था।

किसने कराया निर्माण?

उस समय दिल्ली पर मुगल बादशाह आलम शाह द्वितीय का शासन था। इसी समय में शाद खां ने दरबार की कमान संभाली। मुगल बादशाह के विश्वासपात्र शाद खां ने ही इस पुल के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। ताकि पुरानी दिल्ली और कश्मीरी गेट को आसानी से जोड़ा जा सके। कहने को तो यह एक पुल था लेकिन उस समय पैदल चलने वाले यात्रियों के लिए रोजमर्रा की जिंदगी का सहारे जैसा था। शाद खां ने इसके निर्माण में स्थानीय संसाधनों का प्रयोग किया। समय ने करवट ली, मुगल सल्तनत का सूरज ढला और देश में ब्रिटिश हुकूमत का उदय हुआ। अंग्रेजों ने भी इस पुल को नया जीवन देते हुए इसे मजबूत किया। हालांकि इसके मूल रूप को नहीं बदला गया, मूल स्वरूप शाद खां वाला ही रहा।

जरूरत से जर्जर तक की यात्रा

कौड़िया पुल 1700 शताब्दी के बाद भी दिल्ली के लोगों की जरूरत बना रहा। ये पुल चांदनी चौक की बाजारों से गुजरने वाले व्यापारियों, प्रेमी जोड़ों और सिपाहियों सबका पसंदीदा था। कहा जाता है कि ये चांदनी चौक की नब्ज की तरह था। लेकिन समय बदला और अंग्रेजों ने इसकी मरम्मकत कराई। ताकि ट्रेनों की गूंजती आवाज के बीच पैदल चलने वाले यात्री सुरक्षित चल सकें। यह पुल 1857 की क्रांति का भी गवाह बना, जब दिल्ली की सड़कें रंगों से नहीं बल्कि भारतीयों के खून से लाल हुई थीं। लेकिन एक बार फिर समय बदला और आधुनिक सड़कों और मेट्रो ने इस पुल के महत्व को कम कर दिया। आज ये पुल सिर्फ इतिहास में रह गया।

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