Feel-Like Temp Secret: 52 डिग्री का फील क्यों देता है 45 का तापमान, आखिर क्या है इसका राज, क्यों होता है ऐसा?

Feel Like Temperature VS Actual
Feel Like Temprature VS Actual: दिल्ली में इस साल गर्मी का रौद्र रूप देखने को मिल रहा है। शहर के कई इलाकों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के पार दर्ज हुआ, लेकिन आभासी तापमान (फील लाइक) 52 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। यानी कि वास्तविक तापमान कम है, लेकिन बाहर लोगों को ज्यादा तापमान महसूस हो रहा है। 'फील लाइक' तापमान को अपैरेंट टेंपरेचर भी कहा जाता है। यह थर्मामीटर पर दिखाया जाने वाला तापमान नहीं होता है, बल्कि वह तापमान होता है, जो वास्तव में महसूस होता है।
'फील लाइक' तापमान को कैलकुलेट करने के लिए कई फैक्टर्स और डेटा को ध्यान में रखा जाता है। इनमें हवाओं की स्पीड (Wind Speed), ओसांक (Dew Point), नमी (Humidity) और सूर्य के प्रकाश (Sunlight) की तीव्रता शामिल होती है। इन सभी डेटा के कैलकुलेशन से पता लगाया जाता है कि बाहर जाने पर वास्तव में मौसम कैसा महसूस होगा। बता दें कि इनमें हवाओं और नमी का काफी अहम रोल होता है।
फील लाइक तापमान का कैलकुलेशन
फील लाइक टेंपरेचर के कैलकुलेशन के लिए साइंटिफिक फॉर्मूले इस्तेमाल किए जाते हैं। इसे कैलकुलेट करने के लिए थर्मामीटर में दिखाया जाने वाला तापमान, हवा में नमी (फीसदी में) और स्पीड (किमी प्रति घंटे में), को एक मैथ के फॉर्मूले में डाला जाता है। इससे फील लाइक टेंपरेचर यानी आभासी तापमान का पता चलता है।
क्यों ज्यादा महसूस होता है तापमान?
'फील लाइक' तापमान में नमी (Humidity) का अहम रोल होता है। अगर आप बाहर जाते हैं, तो आपको तापमान ज्यादा फील हो सकता है, जो कि वास्तव में उतना ज्यादा नहीं होता। इसकी बड़ी वजह होती है हवा में नमी का प्रतिशत। गर्म दिनों में, हवा के ठंडा होने का महत्व कम हो जाता है। इसके बजाय, नमी (Humidity) बड़ी भूमिका निभाती है। जब आर्द्रता अधिक होती है, तो वाष्पीकरण और ठंडा होने की दर कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप वातावरण वास्तव में जितना गर्म होता है, उससे ज्यादा महसूस होता है। हवा में नमी ज्यादा होने से वाष्पीकरण (Evaporation) का प्रोसेस धीमा हो जाता है या फिर रुक जाता है। इसकी वजह शरीर में चिपचिपाहट महसूस होती है, क्योंकि पसीना सही तरीके से वाष्पित (भाप बनना) नहीं हो पाता है।
'फील लाइक' तापमान की कब हुई थी शुरुआत?
1970 के दशक में पहली बार मौसम पूर्वानुमान में फील लाइक तापमान (आभासी तापमान) को मौसम पर पड़ने वाले सूर्य और हवा के प्रभावों को दर्शाने के लिए शामिल किया गया था। इस परिभाषा के अनुसार, 'आभासी तापमान' को कुछ इस तरह बता सकते हैं- यह मूल रूप से कपड़े पहने हुए किसी व्यक्ति को होने वाली उस असुविधा के स्तर का मापन है, जो उसे संबंधित स्थान पर मौजूद हवा और आर्द्रता के प्रभाव से खुले वातावरण में घूमते समय, छाया में चलते समय महसूस होती है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
1990 के दशक में 'फील लाइक' तापमान AccuWeather के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन जोएल एन. मायर्स, माइकल ए. स्टीनबर्ग, जोसेफ सोबेल, इलियट अब्राम्स और इवान मायर्स द्वारा बनाया गया था। AccuWeather के एक सीनियर मौसम विज्ञानी (Meteorologist) क्रिस्टीना के मुताबिक, हवा व्यक्ति के शरीर से गर्मी निकाल देती है, जिससे उसे ठंडा महसूस होता है। पायडिनोव्स्की ने कहा कि हवा जितनी ज्यादा तेज होगी, उतनी ही ज्यादा तेजी से आपके शरीर से गर्मी बाहर निकलेगी।
AccuWeather के विशेषज्ञ विशेष मौसम विज्ञानी डैन कोटलोव्स्की के अनुसार, सुबह के समय जब सूर्य निचले एंगल पर होता है, तो उस समय गर्मी होती है क्योंकि उसकी ऊर्जा फैली हुई होती है। दोपहर में, सूर्य सिर के ऊपर होता है और सूर्य की तेज किरणें बिल्कुल सामने से पड़ती हैं। जिससे ज्यादा ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो अधिक गर्मी का एहसास कराती है।
फील लाइक टेंपरेचटर का प्रभाव
फील लाइक टेंपरेचर का लोगों को शरीर पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। अगर फील लाइक टेंपरेचर ज्यादा होता है, तो हीट स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा शरीर में पानी की कमी भी होने लगती है। ज्यादा गर्मी की वजह से शारीरिक और मानसिक तनाव भी बढ़ जाता है।
