Doctor's Day 2025 Special: जो हम सबको रखते स्वस्थ, उनको भी चाहिए जादू की झप्पी

Medical Professionals Challenges
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आज डॉक्टर्स डे पर पढ़िये 'भगवान' को किन चुनौतियों का करना पड़ रहा सामना।

आज डॉक्टर्स डे है। 'Behind the mask: who heals the healers' थीम है, जो दर्शाती है कि डॉक्टर्स को भी 'जादू की झप्पी' की जरूरत होती है। जानिये इसकी वजह?

आज डॉक्टर्स डे है। यह दिन समाज के प्रति डॉक्टरों के निस्वार्थ समर्पण को याद करने का है। इस वर्ष डॉक्टर डे की थीम 'Behind the mask: who heals the healers? है। इस थीम का अर्थ है कि मास्क के पीछे रहकर डॉक्टर हमेशा दूसरों की तकलीफ को ठीक करते हैं, लेकिन खुद को नजरअंदाज कर देते हैं। यह इस बात पर जोर देता है कि डॉक्टर्स को भी 'जादू की झप्पी' यानी मानसिक और भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में भी डॉक्टरों की एक बड़ी संख्या अलग-अलग कारणों के चलते भावनात्मक और मानसिक रूप से परेशान पाए गए हैं। यह अध्ययन बताता है कि 82.7 प्रतिशत डॉक्टर्स तनाव से जूझ रहे हैं, जबकि 46 प्रतिशत डॉक्टर्स ने खुलासा किया कि हिंसा होने के डर की वजह से परेशान रहते हैं। इसके अलावा इस अध्ययन ने यह भी खुलासा किया कि 24.2 प्रतिशत डॉक्टर्स को अपने खिलाफ केस दर्ज होने का डर है।

खास बात है कि आम लोग जहां ऐसी चिंताओं को अपने डॉक्टर्स के समक्ष खुलकर इजहार कर लेते हैं, वहीं डॉक्टर्स कई कारणों के चलते अपनी इस पीड़ा को भी साझा नहीं कर पाते हैं। यही वजह है कि धीरे-धीरे डॉक्टर्स आत्महत्या की भी सोचने लगते हैं।

डॉक्टर्स अपनी तकलीफ साझा क्यों नहीं करते
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के डॉक्टर्स तनाव झेल रहे हैं। उत्तर भारत के एक हॉस्पिटल में अध्ययन किया गया तो पाया कि 30.1 फीसद रेजडेंट डॉक्टर्स ने खुद को अवसादग्रस्त बताया। 16.7 फीसद रेजिडेंट डॉक्टरों ने माना कि उन्होंने अपने तनाव की वजह से आत्महत्या करने की भी सोची। इनमें से 90 प्रतिशत डॉक्टर्स ऐसे थे, जो सुसाइड करने में सिर्फ एक कदम दूर थे।

यूके में 20 प्रतिशत, कनाडा में 80 प्रतिशत और ऑस्ट्रेलियाई सर्वेक्षण में 24.8 फीसद डॉक्टरों में सुसाइड करने के विचार अधिक पाए गए। एनएलएम की यह रिपोर्ट बताती है कि डॉक्टर्स अपनी परेशानियों को इसलिए साझा नहीं करते क्योंकि उन्हें डर रहता है कि कहीं उनका लाइसेंस रद्द न हो जाए।

किन तकलीफों से जूझ रहे 'भगवान'
महिला डॉक्टर हो या पुरुष डॉक्टर, अलग-अलग स्तर का तनाव झेल रहे हैं। सबसे पहले घरेलू और व्यवासयिक तनाव की बात करते हैं। डॉक्टर्स को परिस्थितियों के अनुरूप कई घंटों तक लगातार कार्य करना पड़ता है। इसके चलते एक डॉक्टर को परिवार के कार्यक्रमों में शामिल होने का मौका नहीं मिलता। इस कारण धीरे-धीरे घरेलू स्थिति बिगड़ती जाती है।

वहीं, व्यवसायिक तनाव वह होता है, जब डॉक्टर कई घंटों तक लगातार कार्य करने, छुट्टी न मिलना, प्रमोशन न मिलना जैसे कारणों के चलते अवसाद में जाने लगता है। एनएलएम की रिपोर्ट बताती है कि व्यवासयिक तनाव के लिहाज से महिला चिकित्सकों को पुरुष चिकित्सकों की तुलना में अधिक कष्ट सहना पड़ता है। इसी प्रकार घरेलू विवाद की बात करें तो यहां भी महिला चिकित्सकों को ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है।

भारत रत्न वीसी रॉय की याद में एक जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे मनाया जाता है।

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डॉक्टर्स और तलाक

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में ऑनलाइन प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि महिला चिकित्सकों में पुरुष चिकित्सकों की तुलना में तलाक की संभावना अधिक होती है। सर्वे में पाया गया कि अन्य पेशेवरों की तुलना में महिला चिकित्सकों का तलाक प्रतिशत डेढ़ गुना अधिक है। विशेषकर जो महिला डॉक्टर्स सप्ताह में 40 घंटे से अधिक काम कर रही थी, उन्हें तलाक की चुनौती से जूझना पड़ा।

शोधकर्ता और फिजिशियन डॉक्टर डैन ली के मुताबिक, महिला चिकित्सक का पति डॉक्टर न होकर किसी अन्य पेशे से होता है तो तलाक की संभावना अधिक होती है। पति से ज्यादा पैसा कमाना, घर के कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए पूरा समय न देना, काम का तनाव घर पर ले जाना, बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी का असंतुलन जैसी समस्याएं तलाक का कारण बन जाती है। इसके उलट, अगर पति और पत्नी, दोनों डॉक्टर्स हैं तो तनाव हो सकता है, लेकिन तलाक की संभावना पहली स्थिति की तुलना में कम रहती है।

हिंसा का भी करना पड़ रहा सामना
अपोलो हॉस्पिटल दिल्ली के ऑर्थोपेडिक सर्जन और प्रोफेसर डॉ. अमित कुमार अग्रवाल का कहना है कि डॉक्टरों को मानसिक और पेशेवर चुनौतियों के साथ ही कई बार हिंसा का भी सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि लंबी और अनियमित ड्यूटी से मानसिक तनाव और थकान, हर समय सटीक निर्णय लेने का दबाव, मरीजों और परिजनों की ऊंची अपेक्षाओं को संभालना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा कि कभी कभी असंतुष्ट लोगों द्वारा चिकित्सकों से हिंसा और दुर्व्यवहार किया जाता है।

इंटरनल मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉक्टर एआर खान बताते हैं कि डॉक्टर और मरीज के बीच आपसी विश्वास बहुत जरूरी है। अगर भरोसा खत्म हो जाए, तो कोई भी डॉक्टर किसी दुर्लभ बीमारी का इलाज करने का जोखिम नहीं उठाएगा। साथ ही, किसी मरीज को अपने डॉक्टर पर भरोसा नहीं होगा तो ठीक होने की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाएगा। उपचार तब शुरू होता है, जब मरीज और चिकित्सक दोनों परस्पर विश्वास रखते हैं।

एक चिकित्सक के लिए असाधारण तनाव 'पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर' पीड़ित मरीज के बराबर है, जो कि लगातार अघात के चलते सुसाइड तक की सोचने लगता है। ऐसे में चिकित्सकों को समाज से समर्थन की आवश्यकता होती है ताकि मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत रहकर समाज की निरंतर सेवा करते रहें।

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