Delhi Water Crisis: 'धान की फसल, पेयजल संकट', क्या दिल्ली के लोगों को कभी पर्याप्त पानी मिलेगा?

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गुरुग्राम में पेयजल संकट। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

पंजाब और हरियाणा के बीच पानी को लेकर सियासी जंग जारी है। इस बीच एक रिपोर्ट ने इस जंग के थमने की बजाए तेज होने की आशंका बढ़ा दी है।

पंजाब और हरियाणा के बीच पानी को लेकर चल रही सियासी जंग के बीच दिल्ली को भी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। दिल्ली भाजपा की सरकार भले ही दावे करे, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो पंजाब में जिस तरह से भूजल स्तर का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसके चलते आने वाले सालों में दिल्ली के लिए पेयजल संकट और भी गहरा सकता है। तो चलिये वो गणित समझाने का प्रयास करते हैं, जिसके चलते न केवल दिल्ली और हरियाणाा बल्कि स्वयं पंजाब के लिए भी बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पंजाब ने एक जून से आधिकारिक तौर पर धान की रोपाई का ऐलान कर दिया है। हर साल पंजाब में चावल की फसल पर करीब 36 ट्रिलियन पानी इस्तेमाल होता है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो पंजाब में सालाना 180 लाख टन चावल का उत्पादन होता है। एक किलोग्राम चावल की फसल के लिए करीब 2000 से 3000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इस हिसाब से जोड़ा जाए तो कुल 54,000,000,000,000 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। लेकिन, पंजाब इस पानी की भरपाई कराने में भी असमर्थ है।

यही वजह है कि पानी को लेकर पंजाब और हरियाणा-दिल्ली के बीच जंग जैसी स्थिति देखी गई है। जानकारों का कहना है कि पंजाब में जिस तरह से चावल की फसल पर पानी खर्च हो रहा है, उसे देखकर कहा जा सकता है कि भाखड़ा बांध को भी चार बार खाली कर दिया जाए तो भी पंजाब की प्यास बुझना मुश्किल लगता है।

भाखड़ा बांध को 4 बार खाली करना होगा

मीडिया रिपोर्ट्स में विशेषज्ञों के हवाले से बताया गया कि भाखड़ा बांध की क्षमता 9.34 ट्रिलियन लीटर की है। पंजाब में धान की फसल पर 36 ट्रिलियन पानी खर्च हो जाता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि पानी की आपूर्ति के लिए भाखड़ा बांध को 4 बार खाली करना होगा। जिस तरह से पंजाब में भूमिगत जलस्तर गिरा है, उसके बाद भी भाखड़ा बांध को चार बार खाली करने के बावजूद पानी को लेकर चुनौतियां बनी रहेंगी।

हर हफ्ते 30 लाख लीटर पानी खींचा जा रहा

द ट्रिब्यून की 31 मार्च को प्रकाशित खबर के मुताबिक, पंजाब में 14 लाख ट्यूबवेल हैं, जो कि हर हफ्ते 30 लाख लीटर से ज्यादा भूमिगत पानी खींच रहे हैं। ट्यूबवेल चलाने पर जो बिजली खर्च की जा रही है, वह भी निशुल्क उपलब्ध कराई जा रही है। ऐसे में पंजाब में पानी और बिजली, दोनों को लेकर स्थिति चुनौतीपूर्ण है। रिपोर्ट में बताया गया कि भूमिगत जलस्तर को सुधारने में सालों लग जाते हैं। ऐसे में इस मुद्दे पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

पंजाब को विकल्पों पर ध्यान देना होगा

एक अन्य रिपोर्ट में पंजाब के किसानों को धान की जगह अन्य फसलों पर भी ध्यान देने पर विचार करने का सुझाव दिया है। बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया के विशेषज्ञों ने भी धान की जगह मक्का जैसी फसलों को उगाने की सलाह दी है। बताया है कि 50 फीसदी धान की फसल की जगह मक्का की फसल उगानी चाहिए। इस फसल की सिंचाई के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है। रिपोर्ट में बताया गया कि अगर इस पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में भूमिगत जलस्तर को लेकर और भी चुनौतीपूर्ण हालात बन सकते हैं।

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