Delhi Sapru House: 70 साल का हुआ दिल्ली का सप्रू हाउस, क्यों है भारत के लिए बेहद खास? जानें इसका इतिहास

दिल्ली का सप्रू हाउस
Delhi Sapru House: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मंडी हाउस इलाके में बाराखंबा रोड पर स्थित सप्रू हाउस को 70 साल पूरे हो गए हैं। यह खूबसूरत इमारत मकराना संगमरमर के खंभों के साथ आर्ट डेको स्टाइल में बनाई गई है। सप्रू हाउस भारतीय विश्व मामलों की परिषद (ICWA) का हेडक्वार्टर है। इसे साल 1955 में बनाया गया था। इसके अंदर स्तूप जैसा गुंबद, प्रवेश द्वार मेहराब और स्तंभों वाला बाहरी भाग बनाया गया है।
सप्रू हाउस ने 70 सालों तक राजधानी दिल्ली को विकसित होते हुए देखा है। इतिहास के नजरिए से यह इमारत भारत के लिए बहुत खास है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सप्रू हाउस के 70 साल पूरे होने पर विदेश मंत्रालय के एडिशनल सेक्रेटरी नूतन कपूर महावर ने कहा कि इस संस्थान में कुछ सबसे चतुर और प्रतिभाशाली विदेश नीति के विद्वान तैयार किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में ICWA के पास ज्ञान साझा करने के लिए दुनिया भर के थिंक-टैंक्स और संस्थानों के साथ 100 से ज्यादा समझौता ज्ञापन (MOU) हैं।
क्या है सप्रू हाउस का इतिहास?
भारत की आजादी के पहले ही साल 1943 में ICWA स्थापित किया गया था, जो अंतरराष्ट्रीय मामलों पर देश का पहला थिंक-टैंक था। इसकी स्थापना में तेज बहादुर सप्रू का बड़ा योगदान रहा। इसके चलते बाद में इसे 'सप्रू हाउस' नाम भी दिया गया। इसके बाद मई 1955 में ICWA की स्थायी इमारत बनी। उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसका उद्घाटन किया। पूर्व डिप्लोमैट टीसीए राघवन और विवेक मिश्रा ने इस पर एक बुक लिखी है, जिसका नाम “सप्रू हाउस: ए स्टोरी ऑफ इंस्टीट्यूशन-बिल्डिंग इन वर्ल्ड अफेयर्स” है।
इसमें लिखा गया है कि साल 1949 में इसके निर्माण के लिए 10 लाख रुपए इकट्ठा करने के लिए एक फंड कलेक्शन कैंपेन शुरू किया गया था। इसमें इंदौर के महाराजा यशवंत राव होल्कर ने 1.5 लाख रुपए का दान दिया था। वहीं, तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने एक हजार रुपए और पीएम जवाहरलाल नेहरू ने 500 रुपए दान किए थे। अधिकारियों का कहना है कि ICWA ने भारत को अपनी बात स्वतंत्र तरीके से दुनिया के सामने रखने का मौका दिया।
सप्रू हाउस क्यों है खास?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ज्वाइंट सेक्रेटरी हितेश जे. राजपाल का कहना है कि यहां पर इंडियन स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की स्थापना हुई थी। इसे बाद में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर कर दिया गया। इस संस्थान की ओर से साल 1947 में एशियाई संबंध सम्मेलन आयोजित किया गया था।
जानकारी के मुताबिक, फरवरी 1958 में वियतनाम के तत्कालीन राष्ट्रपति हो ची मिन्ह को सप्रू हाउस में सम्मानित किया गया था। इनके अलावा संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून, ब्रिटिश प्रधान मंत्री मार्गरेट थैचर और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग जैसी बड़ी हस्तियां यहां पर आ चुकी हैं।
बता दें कि सप्रू हाउस ने सिर्फ डिप्लोमेटिक ही नहीं, बल्कि कल्चरल प्रोग्राम की भी मेजबानी की है। इसमें हो ची मिन्ह के सम्मान में अमृता प्रीतम की कवितामय श्रद्धांजलि और मशहूर गजल गायिका बेगम अख्तर की प्रस्तुति तक शामिल हैं।
कलाकारों के लिए भी रहा खास
दिल्ली का सप्रू हाउस, डिप्लोमैट चर्चा के साथ ही कॉन्सर्ट और कलाकारों के लिए खास स्थल में बदल गया था। साल 1960 के दशक में कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’, शिव बटालवी और हरिवंश राय बच्चन जैसे कई कवियों ने अपनी प्रस्तुति दी थी। बता दें कि बाद में ICWA अधिनियम, 2001 के तहत सप्रू हाउस में सांस्कृतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी गई।
सप्रू हाउस में लाइब्रेरी भी मौजूद
भारत की इस ऐतिहासिक इमारत में एक ICWA लाइब्रेरी है। इसमें भारत की आजादी के पहले की 10 हजार से ज्यादा किताबें, जर्नल्स और डिप्लोमैटिक रिकॉर्ड रखे हुए हैं। अधिकारियों का कहना है कि इस लाइब्रेरी पर कम लोग ही ध्यान देते हैं। बता दें कि ये लाइब्रेरी डिप्लोमैट, सांसद, सिविल सेवक, पत्रकार, इतिहासकार, एकेडमिक्स और पीजी छात्रों समेत अन्य कई लोगों के लिए खुली रहती है।
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