Air Pollution Alert for Children: दिल्ली का प्रदूषण मासूमों को बना रहा शिकार, DTU की रिपोर्ट में हुए चौंकाने वाले खुलासे

Study Report on Pollution: दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार चिंताजनक होती जा रही है। लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है। हालांकि इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों, खासतौर पर नवजात शिशुओं में देखने को मिल रहा है। हाल ही में डीटीयू (दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी) ने एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासा हुए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक तीन माह के शिशुओं के फेफड़ों में सूक्ष्म प्रदूषक कण पहुंच रहे हैं, जो बच्चों के फेफड़ों के गहरे हिस्सों में जमा हो जाते हैं। इसकी वजह से बच्चों में अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों का कैंसर जैसी कई बीमारियां होने का खतरा बढ़ रहा है।
WHO(विश्व स्वास्थ्य संगठन) की चेतावनी
सर्दी के मौसम में इन बीमारियों के बढ़ने का खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि इस मौसम में प्रदूषण कण ज्यादा समय के लिए हवा में रहते हैं। विश्व स्वास्थ संगठन ने भी इसके लिए चेतावनी जारी करते हुए बताया कि PM 2.5 जैसे कण मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक हैं। ये कण बच्चों के लिए अधिक घातक है क्योंकि इससे बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है और सांस संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। ऐसी समस्या जीवन भर परेशान करती है।
बच्चों को बचाने के उपाय
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा होता है। सर्दियों के मौसम में एक्यूआई लेवल 500 तक पहुंच जाता है। ये स्तर लोगों के लिए बेहद खतरनाक श्रेणी में आता है। इससे बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है। ऐसे में अगर आप भी दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं, तो आपको अपने बच्चों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। इसके लिए आपको कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए।
- घर से बाहर निकलने से पहले बच्चों को मास्क पहनाएं।
- सुबह-शाम बाहर ना ले जाएं, इस समय पर AQI अधिक होता है।
- घर में एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें।
- विटामिन C से भरपूर और पौष्टिक भोजन दें। ऐसा भोजन इम्यूनिटी सिस्टम को बढ़ाने में मददगार होता है।
डीटीयू (दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी) की रिपोर्ट
डीटीयू ने बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर हाल ही में एक शोध किया। जिसके मुताबिक हवा में मौजूद सूक्ष्म प्रदूषण कण बच्चों के फेफड़ों के अंदर एल्वियोलर तक पहुंच रहे हैं। ये कण एल्वियोलर में जाकर जमा हो जाते हैं। बता दें कि एल्वियोलर फेफड़ों का वह हिस्सा है, जहां गैसों का विनिमय (ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड) होता है। अगर यहां कण जमा हो जाएं, तो सांस लेने की क्षमता प्रभावित होती है।
प्रदूषण का असर
- वायु प्रदूषण के कारण सबसे ज्यादा असर छोटे बच्चों में पाया गया। इसमें तीन माह से लेकर तीन साल तक के बच्चे शामिल हैं। सर्दी के समय में इन बच्चों के फेफड़ों में 1 से 2 लाख तक सूक्ष्म कण जमा पाए गए।
- वहीं 8 से लेकर 21 वर्ष तक के लोगों में ये आंकड़ा 6 से 8 लाख सूक्ष्म कणों तक पहुंच गया है। हालांकि गर्मी के समय इन कणों की संख्या कम पाई गई।
- प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों का खतरा सड़क के आसपास रहने वालों में ज्यादा पाया गया। रिपोर्ट के अनुसार, सड़क के किनारे काम करने वाले लोगों के फेफड़ों में जमा होने वाले कणों की मात्रा 5 गुना ज्यादा पाई गई।
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