Delhi MCD: 19 सालों से पक्के नहीं हुए निगम कर्मचारी, टालमटोल के कारण अटकी फाइल

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दिल्ली नगर निगम।

Delhi MCD: दिल्ली नगर निगम में इंजीनियरिंग विभाग के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को पक्का करने के लिए सालों पहले आदेश दिए जा चुके हैं। हालांकि टालमटोल के कारण फाइल लटकी हुई हैं।

दयाराम/ नई दिल्ली: दिल्ली नगर निगम में बहुत से ऐसे कर्मचारी हैं, जो दिहाड़ी यानी दैनिक वेतनभोगी हैं। इन लोगों को पक्का करने के लिए साल 2022 में ही आदेश दिया गया था। हालांकि 10 दिनों तक तो काम तेजी से चला लेकिन इसके बाद वो आदेश भी ठंडे बस्ते में चला गया। टालमटोल के कारण नियमितिकरण की फाइल अधर में लटकी रह गई।

जानकारी के अनुसार, दिल्ली नगर निगम की लापरवाही के कारण पिछले 19 सालों से इंजीनियरिंग विभाग के करीब 150 कर्मचारी पक्के नहीं हो पाए हैं, जिसके चलते वे मानसिक रूप से काफी परेशान हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर इंजीनियरिंग विभाग के एक कर्मचारी ने बताया कि सफाई कर्मियों पर निगम प्रशासन ज्यादा ध्यान दे रहा है जबकि हम पर नहीं।

वर्ष 2006 से 2009 के बीच नियुक्त हुए करीब 150 दैनिक वेतनभोगी/ मस्टरोल सभी कर्मचारी आज भी नियमित होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जबकि उनका हक 17 साल पहले ही मिल जाना चाहिए था। उन्होंने बताया कि दक्षिणी दिल्ली नगर निगम ने 23 फरवरी 2022 को एक आदेश जारी किया था। इस आदेश के तहत 11 अप्रैल, 2006 से 31 मार्च, 2009 तक लगे सभी मस्टरोल कर्मियों को एक नीति के तहत नियमित करने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। आदेश जारी होने के 10 दिन के अंदर तीनों नगर निगमों का एकीकरण कर दिया गया। इसके बाद ये आदेश ठंडे बस्ते में चला गया।

बताया गया कि स्थायी समिति अध्यक्ष ने निगम आयुक्त को इंजीनियरिंग विभाग के 11 अप्रैल 2006 से 31 मार्च 2009 तक नियुक्त सभी दैनिक वेतनभोगी मस्टरोल कर्मियों को 2022 में दीवाली से पहले पक्का किए जाने की बात कही गई थी। वहीं अब एक बार फिर निगम आयुक्त को जल्द पक्का किए जाने के लिए पत्र भी लिखा है।

बता दें कि एकीकृत निगम में विशेष अधिकारी अश्विनी कुमार को उस समय सदन और स्थायी समिति की शक्तियां प्राप्त थीं और उनके कार्यकाल में इस प्रक्रिया को लागू करने की दिशा में कदम भी उठे। मगर प्रशासनिक टालमटोल के चलते अभी तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। हकीकत यह है कि 10 अप्रैल 2006 तक नियुक्त सभी मस्टरोल कर्मियों को नियमित कर दिया गया है, लेकिन 11 अप्रैल, 2006 से 31 मार्च, 2009 तक लगे कर्मियों के साथ खुला भेदभाव हुआ है। उनकी फाइल पूरे दस्तावेजों के साथ निगम के इंजीनियरिंग विभाग के मुख्यालय में पड़ी हैं, लेकिन उस पर कोई अमल नहीं हो रहा।

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