Delhi Maharani Bagh: दिल्ली का महारानी बाग, 13वीं सदी में हुआ निर्माण, दिल्ली के लोगों की कैसे बना पसंद?

महारानी बाग दिल्ली।
Delhi Maharani Bagh: राजधानी दिल्ली आज के समय में जिस प्रकार से लोगों के लिए इतनी जरूरी है। ठीक उसी प्रकार से यह प्राचीन समय में भी भारत के लिए उतनी ही जरूरी रही होगी। वो इसलिए क्योंकि जितने युद्ध अकेले दिल्ली के लिए इस देश में लड़े गए। शायद ही उतनी लड़ाईयां भारत के किसी दूसरे शहर के लिए लड़ी गईं होगीं। क्योंकि इसका इतिहास सिर्फ मध्यकाल या प्राचीन काल तक सीमित नहीं है बल्कि इसका वर्णन हिन्दू धर्म के ग्रंथों में भी मिलता है। यही वजह कि इसके गली-गली में कोई न कोई कहानी या किस्सा छुपा हुआ है। आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी से रूबरू करांएगें। कहानी महारानी बाग की... दिल्ली के ईस्ट का यह क्षेत्र न केवल अमीर लोगों की पसंद है। बल्कि इसका इतिहास 13वीं सदी के सुल्तानों के समय का है। बहुत से लोगों के मन में ये सवाल जरूर आता है कि आखिर इस जगह का नाम महारानी बाग कैसे पड़ा? आइए जानते हैं...
सुल्तान कैकुबाद की शान
महारानी बाग के बारे में जानने के लिए आपको तेरहवीं सदी के इतिहास के बारे में जानना होगा। दरअसल, 1287 से 1290 के बीच सुल्तान मुइज़ुद्दीन कैकुबाद ने यमुना नदी के किनारे किलोकरी में एक भव्य महल बनवाया था। इस महल को पैलेस ऑफ मिरर्स के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि इस महल की दीवारें शीशों से जड़ी हुई थीं, जो चांदनी रात में चमकती थीं। कैकुबाद जो गुलाम वंश के आखिरी सुल्तान बलवान का पोता था। बताया जाता है कि उसने इसे अपनी राजधानी बनाया। वहीं यह महल चारों तरफ से हरे-भरे बागों से घिरा था और सुल्तान अपने परिवार और रानियों के साथ इस महल में रहता था। इतिहासकारों का मानना है कि यह जगह शाही जीवन की प्रतीक थी। जहां सुल्तान की महारानियों का विशेष महत्व था। शायद इसी वजह से बदलते समय के साथ इस जगह का नाम महारानी बाग रखा गया, जो रानियों के लिए मशहूर था।
कहानी यहीं खत्म नहीं हुई कैकुबाद को पैरालिसिस हुआ और मात्र 18 साल की आयु में उसकी हत्या कर दी गई। इसके बाद सत्ता की बागडोर खिलजी वंश के हाथों में आ गई और यह धीरे-धीरे खंडहर में बदल गया। अगर कुछ बचा तो वो शाही बाग की यादें जो आज भी महारानी बाग के नाम से जाना जाता है।
1960 में मिला नया जीवन
कई सौ साल बीतने के बाद साल 1960 में इस बाग को फिर से एक नया जीवन मिला। हरियाणा की राजनीति से ताल्लुक रखने वाले एक प्रसिद्ध उद्योगपति ने एचके. संघी यहां रेसिडेंशियल फॉर्म हाउस विकसित किए। शुरुआत में यहां बड़े-बड़े प्लॉट्स उन उद्योगपतियों को दिए गए, जो यहां शांत और हरे-भरे वातावरण में जीना चाहते थे। संघी परिवार आज भी इस इलाके में बड़े प्लॉट्स का मालिक है। लेकिन नाम वही पुराना चला आ रहा है महारानी बाग। आज इसकी गिनती दिल्ली के सबसे महंगे इलाकों में होती है। जहां बड़े-बड़े बंगले, पार्क और बाजार मौजूद हैं, लेकिन इसका आधार वही सुल्तानी दौर है। जिसका सपना एक युवा सुल्तान ने देखा था, जो अधूरा रह गया।
आज कैसा है महारानी बाग?
आज के महारानी बाग की पहचान एक ऐसे इलाके के रूप में होती है। जहां पैसे वाले और शक्तिशाली लोग रहते हों। यहां चौड़ी-चौड़ी सड़कें, हरे-भरे पार्क और छोटे-छोटे घर ऐसे लगते हैं जैसे छोटे-छोटे महल हों। वहीं इसका नाम हमको याद दिलाता है कि दिल्ली शहर किस प्रकार से नए और पुराने का अद्भुत मिश्रण है।
