Delhi High Court: सरकारी जमीन पर कब्जे को लेकर हाईकोर्ट का आदेश, DDA को बुलडोजर एक्शन छूट, क्या है मामला

Delhi High Court Decision
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दिल्ली हाईकोर्ट।
Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने वाले लोगों को कब्जा जारी रखने की मांग करने का अधिकार नहीं है, जब तक उनके पुनर्वास दावों का समाधान नहीं हो जाता है।

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकारी जमीन पर अतिक्रमण को लेकर बड़ा आदेश दिया है। एक मामले में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाले लोगों को पुनर्वास की मांग करने का संवैधानिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जिन लोगों ने सरकारी जमीन पर कब्जा किया है, वे लोग कब्जा जारी रखने के अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं जब तक कि उनके पुनर्वास दावों का समाधान नहीं हो जाता है।

इसकी वजह से सार्वजनिक परियोजनाओं में बाधा आती है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (DDA) को अनुमति दी कि वह कालकाजी के भूमिहीन कैंप में कानूनी रूप से ध्वस्तीकरण की कार्रवाई कर सकता है।

क्या है पूरा मामला?
दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जो झुग्गी बस्तियों में रहने वाले 1,200 लोगों से जुड़ी थी। इस याचिका में मांग की गई थी कि DDA को किसी भी तरह की तोड़फोड़ गतिविधि को रोकने, स्थल पर यथास्थिति यानी मौजूदा स्थिति बनाए रखने और याचिकाकर्ताओं को उनकी झुग्गियों से जबरन बाहर नहीं निकालने का निर्देश दिया जाए।

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस धर्मेश शर्मा ने कहा कि दाखिल की गई याचिकाएं केवल कई पक्षों के गलत तरीके से जुड़े होने की वजह से त्रुटिपूर्ण थीं। साथ ही दिल्ली झुग्गी और झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन नीति द्वारा तय किए गए मानदंडों को भी पूरा नहीं करती थीं। हाईकोर्ट ने 6 जून को सुनाए गए आदेश में कहा, 'किसी भी याचिकाकर्ता को जेजे क्लस्टर पर लगातार कब्जा बनाए रखने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है, जिससे आम जनता को नुकसान हो।'

पुनर्वास को लेकर क्या बोला हाईकोर्ट
याचिकाकर्ताओं ने यह भी अनुरोध किया गया था कि दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) की ओर से प्रभावित निवासियों का उचित और सर्वे करके 2015 की नीति के तहत उनका पुनर्वास करने का निर्देश दिया जाए। इस मामले पर हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को पुनर्वास की मांग करने का कोई निहित अधिकार नहीं है, क्योंकि यह उनके जैसे अतिक्रमणकारियों के लिए कोई पूर्ण संवैधानिक अधिकार नहीं है।

कोर्ट ने कहा 'पुनर्वास का अधिकार पूरी तरह से उस प्रचलित नीति से उत्पन्न होता है जो उन्हें बांधती है। पुनर्वास के लिए पात्रता का निर्धारण सार्वजनिक भूमि से अतिक्रमणकारियों को हटाने से अलग प्रक्रिया है।'

कुछ लोगों को पुनर्वास की अनुमति
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि नीति के तहत अतिक्रमणकारी अपने पुनर्वास दावों के समाधान तक सार्वजनिक भूमि पर कब्जा बनाए रखने के अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं। इससे सार्वजनिक परियोजनाओं में बाधा उत्पन्न होगी। इस सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उनमें से कुछ लोगों के पुनर्वास की अनुमति दे दी। साथ ही DDA निर्देश दिया कि उन्हें EWS कैटेगरी के फ्लैट अलॉट किए जाएं।

बता दें कि कालकाजी के भूमिहीन कैंप में करीब तीन दशक पुरानी झुग्गी बस्ती है। यहां पर उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों से आए लोग रहते हैं।

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