Delhi High Court: 'एक साल तक अलग...,'आपसी सहमति से तलाक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला

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दिल्ली हाईकोर्ट ने आपसी सहमति से तलाक लेने वाले कपल के लिए सुनाया फैसला। 

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने आपसी सहमति से तलाक लेने वाले पति-पत्नी को लेकर राहतभरा फैसला सुनाया है। यहां पढ़ें कोर्ट के फैसले के बारे में...

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने आपसी सहमति से तलाक को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। मामले में सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी(1) के तहत तलाक की पहली अर्जी दाखिल करने से पहले पति-पत्नी के लिए 1 साल तक अलग-अलग रहना हर हाल में जरूरी नहीं है। हाईकोर्ट का कहना है कि इस अवधि को अधिनियम की धारा 14(1) प्रावधानों के तहत माफ किया जा सकता है।

जस्टिस नवीन चावला, जस्टिस अनुप जयराम भंभानी और जस्टिस रेणु भटनागर की बेंच ने कहा कि 'उपयुक्त मामलों में धारा 14(1) के प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए 1 साल की अलगाव अवधि से छूट दी जा सकती है।' कोर्ट ने यह भी कहा कि 'पहली अर्जी से जुड़ी इस छूट का असर दूसरी अर्जी पर नहीं पड़ेगा।' वहीं धारा 13बी(2) के तहत दूसरी अर्जी के लिए तय 6 महीने की अवधि पर अदालत अलग और स्वतंत्र रूप से विचार करेगी।

अदालत का यह भी कहना है दोनों अवधियों 1 साल और 6 महीने को लेकर कोर्ट अपना-अपना फैसला ले सकती है। अगर कोर्ट को लगता है कि दोनों ही अवधियों को माफ करना सही है, तो तलाक की प्रकिया तुरंत प्रभाव से पारित की जा सकती है। ऐसे में लंबे वक्त से कानून की प्रक्रिया में उलझे कपल्स को राहत मिलेगी।

रिश्ता जबरन निभाना सही नहीं-कोर्ट

बता दें कि हाईकोर्ट पहले भी कुछ सिंगल बेंच के फैसलों पर असहमति जता चुका है, जिसमें कहा गया था कि धारा 13बी एक पूरा कानून है और उस पर धारा 14(1) लागू नहीं होती। दिल्ली हाई कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने स्पष्ट करते हुए कहा था कि धारा 14(1) का प्रक्रियात्मक प्रक्रिया धारा 13बी(1) पर लागू हो सकता है, ताकि लोगों को एक ऐसे विवाह के रिश्ते में जबरन नहीं बांधना चाहिए, जो व्यावहारिक तौर पर खत्म हो चुका है।

अदालत ने यह भी कहा कि अगर शादी को 1 साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है। अगर कपल आपसी सहमति से अलग रहने के लिए कहता है, तो उस पर संदेह करने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने जोर देकर यह भी कहा कि विवाह की सामाजिक गरिमा अहम है, लेकिन टूट चुके रिश्ते को जबरदस्ती बनाए रखना यह पति-पत्नी के सम्मान के खिलाफ है।

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