Delhi HC: 'रूसी मां बच्चे को भारत के अधिकार क्षेत्र से बाहर न कर दे', पिता को मिली कस्टडी

दिल्ली हाईकोर्ट ने 5 साल से कम आयु के बच्चे की कस्टडी पर अहम फैसला।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि पांच साल के कम आयु के बच्चों को सामान्यत: मां की कस्टडी में रहना चाहिए, लेकिन विशिष्ट परिस्थितियों में बच्चे का पिता के साथ रहना उसके सर्वोत्तम हित में हो सकता है। माननीय हाईकोर्ट ने बच्चे को पिता की अभिरक्षा में रखने के पारिवारिक अदालत के फैसले को बरकरार रखा। साथ ही, बच्ची की कस्टडी की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस जोड़े ने 2013 में शादी की थी। रूस में रहने के दौरान उनकी बेटी का जन्म हुआ। इसके बाद वे भारत आ गए। यहां इस जोड़े के बीच घरेलू कलह होने लगे, जो कि कस्टडी और तलाक की कगार तक पहुंच गए। मां ने दिल्ली स्थित रूसी दूतावास समेत कई जगह शरण ली। वहीं, पिता देहरादून स्थित अपनी पैतृक संपत्ति में रह रहे थे। मामला जब फैमिली कोर्ट के पास पहुंचा तो बताया गया कि पिता के पास स्थिर निवास और आय है।
वहीं, रूसी मां के बारे में बताया गया कि वे गोवा में नृत्य एवं योग प्रशिक्षक के रूप में काम कर रही हैं, जिससे लगभग 25000 रुपये प्रति माह की कमाई होती है। फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद बच्ची की कस्टडी पिता को सौंपने का फैसला सुनाया।
रूसी मां ने इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। मामले पर विचार करने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने बच्चे की कस्टडी पिता को देने के पारिवारिक न्यायालय के आदेश पर सहमति व्यक्त की। न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि मां और बेटी, दोनों के पास रूसी पासपोर्ट हैं। पीठ ने तर्क दिया कि मां ने पहले भी रूसी दूतावास की सहायता से निकास परमिट मांगा था। इस बात की आशंका है कि अपीलकर्ता मां स्वयं और बच्चे को भारतीय न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर सकती है।
पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत एक मामले का भी उल्लेख किया। पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने एक बच्चे की संयुक्त कस्टडी रूसी मां और भारतीय पिता को दी थी। यह मामला अभी तक लंबित है। रूसी सरकार ने रूसी महिला को बच्चे के साथ भारत छोड़ने में सहायता प्रदान की थी। कई बार प्रयास किए गए, लेकिन अभी तक यह मामला लंबित है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्पष्ट रूप से कहा है कि संबंधित अधिकारियों की लापरवाही के कारण, बच्चे को न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से 'छीन' लिया गया। भारत सरकार के ठोस प्रयासों के बावजूद यह मामला कूटनीतिक लालफीताशाही में अभी तक उलझा है।
उच्च न्यायालय ने फैमिली कोर्ट के इस तर्क से सहमति जताई कि हिंदू अल्पवयस्कता एवं संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6 के अनुसार, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चे को सामान्यता मां की अभिरक्षा में रहना चाहिए। हालांकि वर्तमान मामले की विशिष्ट परिस्थितियों को देखते हुए बच्चे का पिता के साथ रहना उसके सर्वोत्तम हित में हो सकता है। हाईकोर्ट ने इस मामले को सुनने के बाद फैमिली कोर्ट का फैसला बरकरार रखा है।
