Delhi High Court: गरीब छात्रों को महंगी किताबें क्यों? दिल्ली हाईकोर्ट ने किया नोटिस जारी

दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार, सीबीएसई और एनसीईआरटी को जारी किया नोटिस।
दिल्ली के निजी स्कूलों में ईडब्ल्यूएस के छात्रों को महंगे निजी प्रशासकों की किताबें और अत्याधिक मूल्य वाली शैक्षणिक सामग्री खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इससे संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार, सीबीएसई और एनसीईआरटी को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई के लिए 12 नवंबर की तारीख तय की गई है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने निजी स्कूलों के ईडब्ल्यूएस के छात्रों को 'व्यवस्थित रूप से बाहर रखने' संबंधी याचिका पर सुनवाई की। याचिकाकर्ता जसमीत सिंह साहनी का दावा है कि बतौर शिक्षा नीति शोधकर्ता और सामाजिक कार्याकर्ता, पूरे भारत में शैक्षिक समानता और गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा के लिए अधिकार आधारित पहुंच के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि निजी स्कूल संचालक या तो गरीब छात्रों को एडमिशन ही नहीं देते या फिर उन्हें निजी प्रशासकों की महंगी पुस्तकें और सामग्री खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। इस कारण कई बच्चों को स्कूलों से हटना पड़ता है। उनकी मांग है कि गरीब छात्रों पर निजी प्रशासकों की महंगी किताबें खरीदने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए।
यह प्रथा आरटीई नियमों के खिलाफ
याचिकाकर्ता की ओर से वकील अमित प्रसाद और सत्यम सिंह ने कहा कि निजी प्रशासकों की पुस्तकों पर सालाना खर्च 12000 रुपये तक है, लेकिनल एनसीईआरटी की पुस्तकें 700 रुपये से कम कीमत पर उपलब्ध हैं। याचिका में कहा गया कि बच्चों को महंगी पुस्तकें खरीदने के लिए बाध्य करना सीबीएसई संबद्धता उपनियमों और आरटीई नियमों का उल्लंघन करती है। उन्होंने कहा कि यह प्रथा समावेशी शिक्षा का मूल उद्देश्य भी समाप्त करती है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार, सीबीएसई और एनसीईआरटी को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 12 नवंबर को होगी।
