Delhi High Court: भ्रष्टाचार मामले में हेड कॉन्स्टेबल को झटका, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- 'जनता का विश्वास कमजोर'

हेड कॉन्स्टेबल भ्रष्टाचार मामले की दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई।
Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार के एक मामले में आरोपी दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल को झटका देते हुए अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह अफसरों का भ्रष्टाचार जनता के विश्वास को खत्म करता है और साथ ही शांतिपूर्ण समाज के लिए बनाई गई न्याय प्रणाली को भी नुकसान पहुंचाता है।
बता दें कि भ्रष्टाचार के आरोपी हेड कॉन्स्टेबल देवेंद्र कुमार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की थी। इस याचिका में ये भी कहा गया कि ये मामला भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत नहीं आता। इस याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। साथ ही हेड कॉन्स्टेबल के तर्क को भी खारिज कर दिया।
'समाज को नुकसान पहुंचाते हैं भ्रष्टाचार के मामले'
जस्टिस गिरीश कठपालिया ने 14 पन्नों के अपने आदेश में कहा कि पुलिस भ्रष्टाचार के मामले, खासकर वो मामले जो गरीब और हाशिए पर पड़े समुदायों को निशाना बनाते हैं। ऐसे मामले अन्याय को बढ़ावा देते हैं। साथ ही पूरे समाज को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाते हैं और नकारात्मक असर डालते हैं।
क्या है पूरा मामला?
जानकारी के अनुसार, कालू नाम के एक व्यक्ति को 'बैड कैरेक्टर' वाला बताते हुए, उसके खिलाफ मामला दर्ज कराया गया था। इस दौरान कालू ने आरोप लगाया था कि हेड कॉन्स्टेबल देवेंद्र यादव और एक अन्य हेड कॉन्स्टेबल ने उसे झूठे केस में फंसाने से बचाने के लिए 60 हजार रुपए की रिश्वत मांगी। उसने बताया कि देवेंद्र कुमार ने 20 हजार रुपए लिए और बाकी 40 हजार दूसरे कॉन्स्टेबल ने लिए।
'भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के दायरे में नहीं आता ये मामला'
इस मामले में देवेंद्र की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ने दलील दी कि ये मामला जबरन वसूली से संबंधित है। ये मामला भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के दायरे में नहीं आती। वकील ने ये भी कहा कि शिकायत दर्ज करने में 15 दिन की देरी की गई है। इस आधार पर देवेंद्र यादव को अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए।
दिल्ली पुलिस ने अग्रिम जमानत का किया विरोध
हालांकि दिल्ली पुलिस ने इस मामले में देवेंद्र की अग्रिम जमानत का विरोध किया। दिल्ली पुलिस की तरफ से कहा गया कि ये कृत्य भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के दायरे के तहत अपराध है। हेड कॉन्स्टेबल देवेंद्र यादव ने लोक सेवक के रूप में रिश्वत मांगी। इस दौरान देवेंद्र और उसका साथी वर्दी में थे।
अदालत ने की ये टिप्पणी
इस पर अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा, ' पुलिस व्यवस्था के कुछ हिस्से पर भ्रष्टाचार की छाया लगातार छाई हुई है। इसके कारण जनता का विश्वास पुलिस पर से कमजोर हो रहा है। भ्रष्टाचार के कारण समाज में अशांति व्यवस्था के प्रति निराशा को जन्म देती है। इससे समाज के लिए बनाई गई न्यायिक व्यवस्था पर असर पड़ता है।'
'कालू ही नहीं पूरा समाज भ्रष्टाचार का शिकार है'
जस्टिस गिरीश कठपालिया ने भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने की वकालत करते हुए कहा कि ऐसे भ्रष्टाचार के अपराधों से सिर्फ कालू ही बल्कि हम सब और पूरा समाज इसका शिकार है। भ्रष्टाचार के प्रति समाज का दृष्टिकोण जीरो टेलरेंस का नहीं बल्कि एब्स्ल्यूट टॉलरेंस का होना चाहिए।
जस्टिस ने कहा, 'जब पुलिस अफसरों की भ्रष्टाचार में लिप्त होने की बात आती है, तो ये सोजना जरूरी है कि एक पुलिस अधिकारी, जिसे कई छापों में शामिल होने का अनुभव होता है, वो इतनी आसानी से नोटों की गड्डी स्वीकार कर लेता है। ऐसे मामलों में ये तर्क देना कि कथित अपराधझ जबरन वसूली की श्रेणी में आता है, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत ये अपराध नहीं है, ये पूरी तरह से ठीक नहीं है।'
