Delhi Flag Staff tower: दिल्ली का फ्लैग स्टाफ टावर, जहां 1857 में जान बचाने के लिए छिपे थे अंग्रेज

Delhi Flag Staff tower
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दिल्ली का फ्लैग स्टाफ टावर

दिल्ली के कमला नेहरू रिज पर स्थित फ्लैग टावर 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का ऐतिहासिक गवाह है। कहा जाता है कि यहां अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिवारों ने छिपकर अपनी जान बचाई थी।

Delhi Flag Staff tower: दिल्ली के कमला नेहरू रिज पर बना फ्लैग स्टाफ टावर इतिहास की पुरानी यादों को संजोए हुई शांत खड़ा है। यह एक पुराना स्मारक है, जो हमें 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाता है। उस लड़ाई में अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिवार वालों ने इसके नीचे छिपकर अपनी जान बचाई थी। जब भी लोग इस टावर की ओर देखते हैं, तो ये उस दौर की याद दिलाता है, जिस समय विद्रोह की आग ने दिल्ली को पूरी तरह घेर लिया था। आइए जानते हैं पूरी कहानी...

किस काम के लिए बनाया गया टावर?


फ्लैग स्टाफ टावर का निर्माण साल 1828 के आसपास कमला नेहरू रिज पर किया गया था। यह दिल्ली की सबसे ऊंची इमारतों में से एक है। पहले यह टावर ब्रिटिश छावनी का अहम हिस्सा हुआ करता था। इसका इस्तेमाल अंग्रेजों द्वारा सिग्नल टॉवर के रूप में किया जाता था। इसके चारों ओर बंजर जमीन और झाडियां थीं, वहां से ही अंग्रेज सैन्य संदेश दूर-दूर भेजा करते थे। परन्तु 1857 में यह संदेश पहुंचाने के लिए नहीं बल्कि अंग्रेजों की जान बचाने के काम आया था।

दिल्ली में 1857 के विद्रोह का भूचाल


साल 1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा मोड़ था। इस स्वतंत्रता संग्राम ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव को झकझोर कर रख दिया था। यह संग्राम मेरठ से शुरू हुआ और तेजी से दिल्ली तक पहुंच गया। विद्रोही सिपाहियों ने 11 मई 1857 की सुबह दिल्ली पर हमला बोल दिया। अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिवार वालों में डर का माहौल था। विद्रोहियों ने सिविल लाइंस ,अंग्रेजों और उनके सहयोगियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था। ऐसे में अंग्रेजों ने फ्लैग स्टाफ टावर के नीचे छिपकर अपनी और अपने लोगों की जान बचाई थी।

विष्णु भट्ट गोडसे वायसराय ने अपनी किताब '1857 द रियल स्टोरी ऑफ ग्रेट अपराइजिंग' में लिखा है कि उस समय अंग्रेज अपने परिवार के साथ आकर टावर के नीचे छिप गए थे। उन्हें उम्मीद थी कि मेरठ से ब्रिटिश सेना उनकी मदद के लिए जरूर आएगी।

क्यों फूटा विद्रोहियों का गुस्सा

विद्रोही सिपाहियों का यह गुस्सा अंग्रेजों की नीतियों, जैसे कि सूअर की चर्बी वाले कारतूसों का इस्तेमाल किया जाना समेत कई दमनकारी नीतियों और भारतीय संस्कृति के अपमान का नतीजा था। विद्रोहियों ने दिल्ली के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया था और बहादुर शाह जफर को विद्रोह का प्रतीक बनाकर मुगल शासन की बहाली की घोषणा कर दी। फ्लैग टावर में छिपे लोगों को समझ आ गया कि स्थिति उनके कंट्रोल से बाहर हो चुकी है। कुछ लोगों ने मदद की उम्मीद लगाए रखी, तो कुछ ने भागने की योजनी बनाई। लेकिन विद्रोहियों ने अंग्रेजों की सारी उम्मीद और योजनाओं पर पानी फेर दिया था।

अंग्रेजों का फ्लैग स्टाफ टावर पर दोबारा कब्जा

जून 1857 में अंग्रेजों ने दिल्ली पर दोबारा कब्जा करने की कोशिश शुरू कर दी थी। क्योंकि रिज वाला इलाका और फ्लैग टावर उनकी रणनीति का अहम हिस्सा था। 7 जून को टावर पर कब्जा करने के लिए दोनों पक्षों में भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में अनेक भारतीय सैनिक मारे गए। लेकिन शाम तक अंग्रेजों ने दिल्ली के फ्लैग टावर पर दोबारा कब्जा कर लिया। जो टावर उनकी शरणस्थली बना था, अब वही टावर उनकी वापसी का प्रतीक बन गया था।

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