Magazine Memorial: दिल्ली का फेमस ब्रिटिश मैगजीन मेमोरियल, जहां अंग्रेज रखते थे गोला-बारूद

British Magazine Memorial
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दिल्ली का फेमस ब्रिटिश मैगजीन मेमोरियल

दिल्ली के ब्रिटिश मैगजीन मेमोरियल 1857 की क्रांति का ऐतिहासिक जगह है। यहां पढ़ें इस ऐतिहासिक जगह के बारे में पूरी जानकारी।

British Magazine Memorial: 19वीं सदी के शुरुआत में, जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी दिल्ली पर अपना हक जमाने की कोशिश कर रही थी। दूसरी तरफ, मुगल शहजादे दारा शिकोह की हवेली की जमीन पर ब्रिटिश मैगजीन बनवाया गया था। इस मैगजीन को बनाने का मकसद हथियारों और गोला-बारूद को छिपाकर सुरक्षित रखना था। इसके नजदीक कश्मीरी गेट होने के कारण यह ब्रिटिश सेना के लिए एक अहम जगह साबित हुई थी। आगे चलकर यही इमारत 1857 की क्रांति की गवाह बनी थी।

आज भी यह पुरानी दिल्ली के कश्मीरी गेट के पास भारतीय इतिहास की गवाह के रूप में खड़ी है। ब्रिटिश मैगजीन 1857 की क्रांति में हिंदुस्तान की ओर से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ की गई बगावत का हिस्सा है। जो आज भी हिंदुस्तान के सैनिकों के जज्बे और विद्रोह की आग की याद दिलाता है। इस इमारत को मजबूत दीवारों और सुरक्षित डिजाइन से एक किले के रूप में बनाया गया था।

1857 की क्रांति का विद्रोह

साल 1857 में भारतीयों के बीच ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी थी। आगे चलकर इस ज्वाला ने क्रांति का रूप ले लिया। साल 1857 मई में शुरू हुआ यह विद्रोह एक आग की तरह दहक उठा था। यह विद्रोह मेरठ से शुरू हुआ और दिल्ली तक पहुंच गया। दिल्ली क्रांतिकारियों के लिए विद्रोह का अहम गढ़ बनी थी। 10 मई 1857 को स्वतंत्रता सेनानी दिल्ली पहुंचे और मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को इस आंदोलन का हिस्सा बनाकर ब्रिटिश मैगजीन को अपना निशाना बनाया लिया ।

मैगजीन को उड़ा देने का प्लान

जैसे ही लेफ्टिनेंट जॉर्ज विलॉबी को सेनानियों के दिल्ली पहुंचने की खबर मिली तो सबसे पहले उसने मैगजीन की सुरक्षा करने की ठान ली थी। उसने कहा कि किसी भी हाल में वो सेनानियों को मैगजीन तक नहीं पहुंचने देगा। अगर वो नहीं बचा पाया तो हाथ लगने से पहले उसे उड़ा देंगे। वह दो लेफ्टिनेंट फॉरेस्ट, रेनर छह कंडक्टर और दो सार्जेंट के साथ मैगजीन की सुरक्षा में लग गया था

बिछाया गया था बारूद

इस घटना का जिक्र जॉन केव-ब्राउन की किताब 'द पंजाब एंड दिल्ली' में किया गया है। इस किताब के अनुसार, विलॉबी ने मैगजीन के सभी दरवाजों को बंद करवा दिया, दोगुना बारूद भरकर तोपों को तैयार कर दिया और बारूद की लाइन बिछा दी ताकि जरूरत पड़ी तो मैगजीन को उड़ा दिया जाएगा। कंडक्टर स्कली को एक पेड़ की ओट में तैनात किया गया ताकि इशारा मिलते ही बारूद में आग लगा दे।

अंग्रेजों ने मैगजीन को किया ध्वस्त

सेनानियों ने सीढ़ी लगाकर दीवार पर चढ़ना शुरू किया, वैसे ही ब्रिटिश सैनिकों ने गोला बारूद की बौछार शुरु कर दी। पांच घंटे तक नौ ब्रिटिश सैनिकों ने हिंदुस्तानी सैनिकों से डटकर मुकाबला किया। परन्तु बारूद खत्म होते ही उनके मदद की उम्मीद टूट गई। विलॉबी ने अपना आखिर कदम उठाया और बकली ने स्कली को इशारा दे दिया, बारूद में आग लगा दी गई और एक जोर का धमाका हुआ, जिसकी आवाज 40 मील दूर मेरठ तक सुनाई दी थी।

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