Nirbhaya Day: दिल्ली में 16 दिसंबर की वो काली रात...सालों बाद भी झकझोर देता है निर्भया कांड

The story of December 2012
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16 दिसंबर साल 2012 की कहानी 

16 दिसंबर साल 2012 की वह काली रात जब पूरा मानव समाज शर्मिंदा हुआ था। निर्भया कांड 13 साल बाद भी लोगों की उसके बारे में सोच कर रूह कांप जाती है

Nirbhaya Day: दिल्ली शहर में आज ठीक 13 साल पहले एक ऐसी घटना घटी थी। जिसने केवल दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश और मानवता को शर्मसार कर दिया था। एक 23 साल की छात्रा के साथ ऐसा घिनौना कृत्य किया गया, जो शायद दुनियां के किसी बुरे से भी बुरे समाज में जायज न हो। पैरामेडिकल की छात्रा इस शहर में आई तो थी अपने सपनों को पंख लगाने, लेकिन उसकी जिंदगी को एक चलती हुई बस में कुछ दरिंदो ने छीन लिया था, जिसके बाद पीड़िता का नाम निर्भया पड़ गया।

साल था 2012 और दिन 16 दिसंबर,निर्भया अपने दोस्त के साथ फिल्म देखकर लौट रही थी। इसके बाद वह एक प्राइवेट बस में बैठ गए। बस में पहले से 6 लोग मौजूद थे। शुरुआत में सब कुछ सामान्य लगा लेकिन अचानक बस ड्राइवर ने अपना रास्ता बदला लिया और बस में पहले से मौजूद दरिंदे निर्भया के साथ तरह तरह की हरकतें करने लगे। लेकिन जब निर्भया के दोस्त ने इसका विरोध किया तो उसे लोहे की रॉड से पीट-पीटकर लहूलुहान कर दिया।

सभी ने उस पीड़िता के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। अपराधियों ने क्रूरता की सारी हदे पार करते हुए उसे बहुत तड़पाया। दरिदों ने पीड़िता के साथ इतनी बर्बरता कर दी,उसकी आंत तक बाहर निकल आई थीं। वारदात को अंजाम देने के बाद अपराधी पीड़िता को कड़कड़ाती ठंड में सड़क पर फेंक कर फरार हो गए थे। गंभीर अवस्था में पीड़िता को अस्पताल में भर्ती करवाया गया, लेकिन दुर्भाग्यवश निर्भया ने जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ते हुए 29 दिसंबर 2012 को दम तोड़ दिया।

इस घटना के बाद दिल्ली सहित देश के अन्य शहरों में भी लोग सड़कों पर उतर आए। लोगों ने निर्भया को न्याय दो के नारे लगाए। लोगों सड़कों पर इस तरह से प्रदर्शन करने लगे कि अंत में सरकार को भी झुकना पड़ा। इन आंदोलनों की वजह से सरकार ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर सख्त कानून बनाए। निर्भया फंड जैसे योजनाओं को लाया गया। लोगों की इस भीड़ ने महिलाओं सुरक्षा से संबंधित बनने वाले कानूनों में अहम भूमिका निभाई।

इस बड़े अपराध में 6 अपराधी शामिल थे। जिनमें से रामसिंह नाम के आरोपी ने सजा से पहले ही तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली। इनमें से एक नाबालिग आरोपी को कोर्ट ने 3 साल सुधार गृह में रखने के बाद साल 2015 में रिहा कर दिया था। इसके अलावा बाकी बचे 4 आरोपियों को एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद 20 मार्च 2025 को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई।

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