विश्व पर्यावरण दिवस: भारत की जड़ें पर्यावरण को लेकर कितनी गहरी, इन वट वृक्षों से समझिए, जिन्हें जोड़ा गया धर्म और आस्था से

विश्व पर्यावरण दिवस :भारत की जड़ें पर्यावरण को लेकर कितनी गहरी, इन वट वृक्षों से समझिए, जिन्हें जोड़ा गया धर्म और आस्था से
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भारत की जड़ें पर्यावरण को लेकर कितनी गहरी 

भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति के साथ एक आस्था और धर्म का रिश्ता रहा है। पर्यावरण को पवित्रता से जोड़ा गया। पृथ्वी को मां कहा गया।

रायपुर। भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति के साथ एक आस्था और धर्म का रिश्ता रहा है। पर्यावरण को पवित्रता से जोड़ा गया। पृथ्वी को मां कहा गया। वृक्षों, नदियों और पशुओं की पूजा की गई। भारतीय संस्कृति में गंगा, जुमना, सरस्वती और सिंधु नदियों को पूजा गया। वृक्षों को जीवन का प्रतीक माना जाता है। वेदों में वृक्षों को पृथ्वी की संतान कहा गया है. तुलसी और पीपल जैसे वृक्षों को विशेष रूप से पवित्र माना जाता है, और उनकी पूजा की जाती है। पर्यावरण दिवस पर हम ऐसे ही वट वृक्षों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें धर्म से जोड़कर सहेजा गया। जिनकी पूजा की गई। लालसा और लालच में उलझे वर्तमान समाज के लिए सबक की तरह है।

उज्जैन के ऋण मुक्तेश्वर धाम क्षिप्रा नदी के किनारे पर पांडव कालीन एक विशालकाय बरगद का वृक्ष है संभवतः यह वटवृक्ष भारत का सबसे पुराना वृक्ष है। माना जाता है कि इसके नीचे बैठकर ऋषि-मुनियों ने तपस्या की और सिद्धियां प्राप्त कीं। सिद्धवट वृक्ष को मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान और पूजा करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिद्धवट वृक्ष के नीचे पिंड दान और तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। इसलिए, कई लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए यहां आते हैं। सिद्धवट वृक्ष का संबंध भगवान शिव से है। ऐसा माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे भगवान शिव ने ध्यान लगाया था। इसलिए, यह वृक्ष शिव भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र है। मध्य प्रदेश का राजकीय वृक्ष बरगद है। इसे साल 1981 में मध्य प्रदेश का राजकीय वृक्ष घोषित किया गया था। बरगद का वैज्ञानिक नाम फ़ाइकस वेनगैलेंसिस है। प्रयागराज का अक्षयवट भगवान राम इसके नीचे रुके थे प्रयागराज के त्रिवेणी संगम से करीब 1 किमी की दूरी पर अकबर के किले में अक्षयवट खड़ा है। इस वट वृक्ष को औरंगजेब और अंग्रेजों ने नष्ट करने का प्रयास किया था। कहते हैं कि जब भगवान राम वनवास के लिए निकले तो सीता और लक्ष्मण के साथ अक्षयवट के नीचे एक रात रुककर विश्राम किया था। ब्रह्मा जी ने अक्षयवट के पास स्थित हवनकुंड में प्रथम यज्ञ और हवन किया था। इसमें 33 करोड़ देवी-देवताओं का आह्वान किया गया था।

मथुरा-वृंदावन का वंशीवट

भगवान शिव ने गोपी बनकर देखा था महारास
बंसी वट, जिसे बंसी वट महारास स्थली के नाम से भी जाना जाता है, वृंदावन में एक प्रसिद्ध और पवित्र स्थान है। यहीं पर भगवान कृष्ण ने गोपियों को बुलाने के लिए अपनी बांसुरी बजाई थी और रास लीला की थी। ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दौरान, कृष्ण ने बंसी वट में अपनी बांसुरी बजाई, और मधुर ध्वनि पूरे वृंदावन में फैल गई। गोपियों ने जादुई संगीत सुना और सब कुछ छोड़कर कृष्ण के पास चली गईं। बंसी वट से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी भगवान शिव के बारे में है।

नासिक (पंचवटी) का पंचवट

यहां राम परिवार ने बिताया था वनवास
नासिक का पंचवटी, जो महाराष्ट्र में नासिक शहर में गोदावरी नदी के किनारे स्थित है, एक पवित्र स्थान है, जो रामायण से जुड़ा हुआ है। यहां पांच वृक्षों का समूह है, जिनके नीचे भगवान राम, सीता और लक्ष्मण ने अपना वनवास बिताया था। इनमें पूरब दिशा में पीपल, दक्षिण दिशा में आंवला, उत्तर दिशा में बेल, पश्चिम दिशा में वट वृक्ष (बरगद) एवं अग्निकोण पर अशोक वृक्ष है। पंचवटी के नामकरण के पीछे एक कहानी है। यहाँ पहले पांच वट वृक्ष थे, इसलिए इस स्थान को पंचवटी कहा गया। साथ ही, यह भी माना जाता है कि हरिनाम बाबा नासिक के त्र्यंमबकेश्वर से यहां आए थे।

गया का गयावट

इस वटवृक्ष का रोपण स्वयं ब्रम्हा जी ने किया था
उज्जैन के सिद्ध वट के बाद यहां गया में गया वट के पास पितरों का पिंडदान किया जाता है। श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान की नगरी गया में एक अति प्राचीन और विशाल वटवृक्ष हैं जिसे गयावृक्ष कहा जाता है। गया का नाम गयासुर नामक एक असुर पर रखा गया था। वर्तमान में इस वृक्ष को बोधिवृक्ष कहते हैं। गया का गयावट या अक्षयवट बिहार के गया शहर में मंगला गौरी मंदिर के समीप ही स्थित है।

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