विश्व पर्यावरण दिवस: बस्तर के दामोदर ने खड़ा किया 400 एकड़ में जंगल, बचाने के लिए ठेंगा पाली का नियम

बस्तर के दामोदर ने खड़ा किया 400 एकड़ में जंगल
महेंद्र विश्वकर्मा - जगदलपुर। दामोदर वर्ष 1970 में 12 वीं की पढ़ाई के बाद गांव पहुंचे। उन्होंने देखा कि गांव के पीछे की हरी भरी जमीन पर एक भी पेड़ नहीं है, वन विभाग ने बहुत सारे पेड़ काट दिए थे, बाकि बचे पेड़ों को गांव वालों ने साफ कर दिया था। उन्होंने पेड़ों को बचाने और ग्रामीणों को जागरूक करने का फैसला किया।
दामोदर ने बताया कि, काम आसान नहीं था शुरूआत में ग्रामीणों का विरोध झेलना पड़ा, विरोध के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और वर्ष 1977 में सरपंच बनने के बाद मिशन से पीछे नहीं हटे। उन्होंने मौसम के अनुकूल पौधों को लगाने का काम शुरू किया, पौधे लगाने से ज्यादा बड़ी चुनौती संरक्षण की थी, इसलिए उन्होंने ग्रामीणों के लिए ठेंगा पाली का नियम बनाया।
जंगल बचेंगे तो हम भी बचेंगे
दामोदर आज देश भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्थाओं से चर्चा करते हैं। चर्चा का केंद्र बिंदु पेड़ों को बचाने के उपायों पर होता है, प्रकृति के लिए समर्पण भाव को देखते हुए स्विट्जरलैंड और फिलीपींस में दामोदर को सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने तेजी से काटे जा रहे जंगलों की कटाई पर चिंता जताई है। जंगल के बिना जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती, जंगल बचेंगे तो हम भी बचेंगे, इसलिए लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होना जरूरी है।
बुजुर्ग ने जमीन को बदला जंगल में
ठेंगा मतलब (डंडा) और पाली मतलब (पारी) नियम के तहत गांव के तीन सदस्य रोजाना जंगलों की सुरक्षा करने लगे। डंडे को कपड़े से लपेट कर देव का रूप दिया गया, जंगल की सुरक्षा में नहीं जाने वाले ग्रामीणों पर अर्थदंड भी लगाया जाने लगा। जंगलों को नुकसान पर पंचायत अर्थदंड देती, दामोदर के लगातार प्रयास से ग्रामीणों का भी हौसला बढ़ने लगा। बुलंद हौसले की बदौलत गांव के आसपास 400 एकड़ में घना जंगल तैयार हो गया। उन्होंने बताया कि जंगल को देखने वन विभाग के अधिकारी भी आते हैं. विशेषकर आज तक उनके जंगलों में कभी आग नहीं लगी है।
सबकी होनी चाहिए दामोदर जैसी सोच
वन विभाग जगदलपुर वृत्त के मुख्य वन संरक्षक आरसी दुग्गा ने बताया कि, दामोदर की सोच जैसे सभी लोगों की सोच होनी चाहिए, जिससे जंगल बचेंगे। साथ ही ज्यादातर बादाम के पौधों का रोपण करें।
