छत्तीसगढ़ का लोकपर्व पोरा: किसानी की मेहनत से थके पशुधन की पूजा कर तरह-तरह के पकवान खिलाते हैं किसान

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किसानों ने पोरा के लिए बैलों को सजाया 

पोरा का पर्व छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में रचा बसा है। लोग बैलों की पशुधन कर पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद लेते हुए इस दिन को धूमधाम से मानते हैं।

तरुणा साहू- रायपुर। छत्तीसगढ़ अपनी समृद्ध लोक संस्कृति और परंपरा के लिए जाना जाता है। यहां पर हर माह कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है। कृषि प्रधान प्रदेश होने की वजह से यहां के त्यौहार प्रकृति के करीब है इसी में से एक है, पोरा तिहार ( पोला ) जिसे पूरे हर्षोल्लास के साथ ग्रामीण अंचलों में मनाया जाता है। ऐसे में आइये जानते हैं क्या है पोरा तिहार।

पोरा तिहार मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में धूमधाम से मनाया जाता है। यह परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। इसे भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस त्यौहार में विशेष रूप से पशुधन की पूजा कर उनका धन्यवाद करते हैं। इस दिन किसान अपने बैलों को रंग- बिरंगे रंगों में सजाते हैं और उनका आकर्षक श्रृंगार भी करते हैं। इस दिन बैलों की सुंदरता देखने लायक होती है। साथ ही किसान अपने बैलों को लेकर बैल दौड़ में भी भाग लेते हैं। ग्रामीण अंचलों में इस दिन बैल दौड़ कराया जाता है।


मिट्टी के बैल बनाकर की जाती है पूजा
पोरा तिहार विशेष तौर पर पशुधन की पूजा के लिए भी जाना जाता है। इस दिन घर की महिलाएं मिट्टी के बैल और शिवलिंग बनाकर निर्जला व्रत रख विधिवत पूजा- अर्चना करते हैं। इसके बाद महिलाएं एक- दूसरे के घर भोज कर इस उत्सव को धूमधाम से मानते हैं।

बहनों को तीजा लाने की है परंपरा
छत्तीसगढ़ में पोरा के साथ एक शब्द तीजा भी जुड़ता है। यहां पर इस पर्व के दिन बहनों को भाई तीजा लेने के लिए उनके ससुराल जाते हैं। बहने भाई के घर तीजा आकर उपवास रखकर इस परंपरा का निर्वाह करती है। इस दौरान भाई अपनी बहन को उपहार स्वरुप साड़ी और श्रृंगार की वस्तुएं भेंट करता है। उसके बाद तीजा पर्व ख़त्म हो जाने पर उसे वापस छोड़ने जाता है।

महिलाएं खाती है करू भात
यह त्यौहार तीन दिन तक मनाया जाता है, पहले दिन को पोरा कहा जाता है इस दिन से पर्व की शुरुआत होती है। इसके एक दिन बाद रात को करू भात खाते हैं। करू भात में विशेष तौर पर करेला सब्जी बनाया जाता है इसलिए इसे करू भात कहते हैं। इसके अगले दिन महिलाएं एक दिन- रात निर्जला व्रत रखती हैं। वहीं अगले दिन फरहर ( समाप्त ) करते हैं। इस दिन महिलाएं नए वस्त्र धारण कर विधि- विधान से शिव भगवान और नंदी की पूजा करतीं हैं। इसके बाद महिलाएं एक- दूसरे के घर भोज करने जाती हैं।


मिट्टी के बर्तन और बैलों की रहती है डिमांड
पोरा- तीजा के आते ही प्रदेश के गांव से लेकर शहर तक के बाजार गुलज़ार हो जाते हैं। यहां के हर बाजार में मिट्टी के बने रंग- बिरंगे बैल और बर्तन सजे होते हैं। देखने में यह काफी सुन्दर और आकर्षक होता है। बैल को नादिया बईला भी कहा जाता है। मान्यता है कि, बैल की पूजा करने के बाद घर के छोटे बच्चे इसे लेकर घर- घर जाते हैं। इस दौरान वे लोगों से नंदी भगवान के नाम पर दान मांगते हैं। वहीं मिट्टी के बर्तन को घर की बेटियां खेलती है।


छत्तीसगढ़िया व्यंजनों का मिलता है स्वाद
पोरा त्यौहार के दिन घरों- घर अलग- अलग प्रकार के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाये जाते हैं। इनमें ठेठरी, खुरमी, नमकीन, मीठा मुठिया के नाम शामिल है।इसके अलावा अन्य स्वादिष्ट पकवान भी बनाये जाते हैं।

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