बेजान कलाइयों में रक्षासूत्र: शहीद भाइयों को देखकर बहनों की आंखें हो रही नम

रक्षाबंधन
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शहीद भाइयों की बेजान कलाइयों में राखी बांधती हुई बहनें (फाइल फोटो) 

भाई बहन के अमर प्रेम के रिश्ते को जिंदा रखे हुए है। प्यार के इस बंधन के डोर में शहीद भाइयों की कलाइयों में राखी बांधने पहुंचती है।

रफीक खान- कोटा। दक्षिण बस्तर में यूं तो कई ऐसी कहानियां हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। इनमें से एक कहानी ऐसी है, जो भाई बहन के अमर प्रेम के रिश्ते को जिंदा रखे हुए है। वह है बेजान कलाइयों में रक्षा सूत्र की। प्यार के इस बंधन के डोर में शहीद भाइयों की कलाइयों में राखी बांधने पहुंचती है तो आंखे नम हो जाती है। यह परंपरा विगत डेढ़ दशक से दक्षिण बस्तर के सुकमा जिला के एर्राबोर ग्राम पंचायत में देखने को मिलता है।

ज्ञात हो कि माओवादियों के खिलाफ सलवा जुडूम अभियान वर्ष 2005-6 चली थी। जिसमें सुरक्षा के तौर पर एसपीओ जवानों की तैनाती राज्य शासन द्वारा की गई थी। इस अभियान में नक्सलियों से लड़ाई लड़ते हुए उरपालमेटला गांव के समीप नक्सलियों के साथ चली मुठभेड़ में जवानों ने शहादत दी थी। जिनकी याद में राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर स्थित एर्राबोर में बने शहीद स्मारकों में बहनें शहीद अपने भाइयों के कलाइयों में राखी प्रति वर्ष बांधने पहुंचती है। 9 जुलाई 2007 को घटित इस मुठभेड़ में 23 परिवार के भाइयों ने उरपालमेटला गांव में बलिदान दिया था। जिनमें से अधिकतर जवान कोंटा विकासखंड के एर्राबोर, मराईगुड़ा और मुलाकिसोली पंचायत के थे। जिनकी याद में यहां स्मारक बने है और बहनें प्रतिवर्ष राखी बांधने यहां पहुंचती हैं।

18 साल बाद भी यादें हैं ताजा
नक्सल आतंक का यह जीता जागता उदाहरण है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर एर्राबोर में कतार में बनाए गए शहीद जवानों की मूर्तियों को देखकर हर कोई पुरानी हिंसक बातों को याद कर सहम जाता है। रक्षाबंधन में अपने भाई को याद करती बहनें सुनी कलाइयों पर राखी बांधती है। घटना को 18 साल बीत चुके है, लेकिन बहनों के याद में यह घटना कभी न मिटने वाली दास्तान बनकर रह गई है। गांव वाले भी सहम जाते हैं, क्योंकि उन्होंने इस इलाके में नक्सलियों का खूनी खेल देखा है।

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