छत्तीसगढ़ में डीएपी की शॉर्टेज: अब सोसाइटियों से एनपीके भी गायब, ओडिशा से लाई जा रही खाद

छत्तीसगढ़ में डीएपी की शॉर्टेज :  अब सोसाइटियों से एनपीके भी गायब, ओडिशा से लाई जा रही खाद
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File Photo 

खेती-किसानी का सीजन आ चुका है, लेकिन किसानों को अभी तक सुलभता से खाद नहीं मिल रही है ।

रायपुर। खेती-किसानी का सीजन आ चुका है, लेकिन किसानों को अभी तक सुलभता से खाद नहीं मिल रही है। हालात यह हैं कि, डीएपी खाद नहीं होने पर विकल्प के तौर पर दे रहे एनपीके खाद भी सोसायटियों में उपलब्ध नही है, जिसके कारण किसानों को खुले बाजार में महंगी कीमत में खाद खरीदनी पड़ रही है। वहीं,गरियाबंद इलाके में तो किसानों को ओडिशा जाकर खाद खरीदने पर मजबूर होना पड़ा है। खेती किसानी और खाद की स्थिति को लेकर हरिभूमि ने प्रदेश के कुछ हिस्सों में पड़ताल की। जिसमें पाया गया कि खरीफ सीजन में किसान धान और मक्के की फसल की खेती में जुट गए हैं, लेकिन गरियाबंद के मैनपुर क्षेत्र के सहकारी समितियों में किसानों को पर्याप्त खाद उपलब्ध नहीं है। वनांचल की सहकारी सोसायटियों से खाद गायब है। लगातार हल्की बारिश के बाद मैनपुर वनांचल क्षेत्र मे किसान अब धान की बोआई के साथ ही मक्का की बोआई मे लग गए हैं।

इस क्षेत्र में लगभग 15 हजार हेक्टेयर मे मक्के की खेती होती है और 8 हजार हेक्टेयर में मक्का की बोआई कार्य पूर्ण हो चुका है, लेकिन किसानों को डीएपी खाद नहीं मिल पा रही है। साथ ही डीएपी खाद के रूप में एनपीके खाद भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है। मिली जानकारी के अनुसार मैनपुर विकासखंड क्षेत्र में 1 हजार टन डीएपी खाद की जरूरत है, लेकिन अबतक मात्र 126 टन ही डीएपी खाद उपलब्ध हो पाई है। वहीं दूसरी ओर एनपीके खाद यहां 700 टन उपलब्ध है, जबकि एनपीके खाद की जरूरत किसानों को 1500 टन की है। इन इलाकों मे मक्का की खेती हजारों हेक्टेयर में किया जाता है। मैनपुर के बोईरगांव, शोभा, गोना, गौरगांव, कुचेंगा, गरहाडीह, भूतबेड़ा, गरीबा, साहेबिनकछार, इंदागांव, तौरेंगा, साहेबिनकछार, जांगड़ा, जुगाड़, नागेश, छोटे गोबरा, दबनई, ठेमली, पथरी, बरगांव, कुर्रुभाठा, चलनापदर, अमलीपदर, उरमाल क्षेत्र में किसान बड़े पैमाने पर मक्के की खेती करते हैं और इन दिनों खेती किसानी का काम प्रारंभ हो गया है। किसान मिलाप राम, कमलू नेताम, जगमोहन पांडे, हरकू नेताम, गिरवर सिंह, नागेश्वर मरकाम, जगतराम, दुर्योधन ने बताया डीएपी खाद सहकारी सोसायटियों मे नहीं मिल रही है, जिसके कारण बेहद परेशान हैं।

शॉर्टेज का हवाला देकर पहले ही डीएपी के टारगेट में कटौती कर दी गई
दुर्ग जिले में खेती किसानी के बीच सोसायटियों में डीएपी खाद की बेहद किल्लत है। हालात यह है कि, डीएपी खाद नहीं होने पर विकल्प के तौर पर दे रहे एनपीके खाद भी सोसायटियों में उपलब्ध नही हैं। जिसके चलते किसानों को सोसायटियों से कर्ज लेकर बाजार में खाद खरीदने मोटी रकम खर्च करनी पड़ रही हैं। सोसायटियों के गोदाम जहां खाली है, वहीं बाजार में प्रति बोरी 17 से 18 सौ रुपए तक खर्च करना पड़ रहा है। जिले की 87 सोसायटियों में डीएपी 18:46 की पहले की कमी बनी हुई है। नवरत्न कंपनी की इस डीएपी का भंडारण पांच हजार टन किया गया था, जिसे किसानों को वितरण भी कर दिया गया हैं, जबकि पिछले साल 14 हजार टन डीएपी वितरण किया गया था। इस बार शॉर्टेज का हवाला देकर पहले ही डीएपी के टारगेट में कटौती कर दी गई। जिला सहकारी केन्द्रय बैंक के सीईओ एके जोशी ने बताया कि, सोसायटी में डीएपी के किल्लत बनी हुई है। उन्होने बताया कि, एनपीके खाद भी नही है। किसान संतु पटेल, गिरीश दिल्लीवार, मेघराज मढ़रिया, मनोज मिश्रा, परमानंद यादव, ढालेश साहू, गीतेश्वर साहू, उत्तम चंद्राकर, बाबूलाल साहू, बद्री प्रसाद पारकर, लोचन सिंहा, आईके वर्मा और राजकुमार गुप्त ने बताया कि जिलेभर में डीएपी खाद की समस्या बनी है। अगर सात दिन में पूर्ति नही की गई तो आंदोलन किया जाएगा।

40 प्रतिशत किसान अब भी कर रहे हैं इंतजार
बलौदाबाजार के सुहेला क्षेत्र के किसानों के लिए यूरिया और डीएपी खाद का वितरण आधा-अधूरा रह गया है। जानकारी के अनुसार अब तक लगभग 60 प्रतिशत किसानों को ही खाद वितरित किया जा सका है, जबकि शेष 40 प्रतिशत किसान अब भी खाद मिलने का इंतजार कर रहे हैं। कृषि विभाग के स्थानीय प्रबंधक का कहना है कि क्षेत्र में डीएपी की कमी बनी हुई है, जिसके चलते शत-प्रतिशत वितरण संभव नहीं हो पाया है, जबकि यूरिया की उपलब्धता कुछ हद तक संतोषजनक बताई जा रही है, फिर भी किसान दोनों प्रकार की खाद की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं। स्थानीय किसान संगठनों ने इस स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा है कि यदि शीघ्र खाद की आपूर्ति नहीं हुई, तो आगामी फसल सीजन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। किसानों की मांग है कि शासन स्तर से तत्काल कार्रवाई कर खाद की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।

निजी कृषि केंद्रों में डीएपी का भरपूर स्टाक पहुंच रहा
धमतरी में भी सोसाइटियों से डीएपी खाद गायब है। यही खाद कृषि केंद्रों में महंगे दाम पर बिक रही है। कई दुकानों में किसानों को लादन थमाया जा रहा है। सोसाइटियों में डीएपी के विकल्प के रूप में एनपीके खाद उपलब्ध है, लेकिन यह खाद डीएपी की तुलना में काफी महंगी है। सहकारी साख समितियों में सीमित मात्रा में डीएपी खाद पहुंची थी, जो माह भर पहले ही खत्म हो गई है। अब लगभग सभी समितियों में डीएपी का स्टाक खत्म हो गया है। विडंबना यह है कि समितियों में डीएपी की दूसरी खेप पहुंची ही नहीं है, लेकिन निजी कृषि केंद्रों में डीएपी का भरपूर स्टाक पहुंच रहा है। अब किल्लत का फायदा उठाकर दुकानदार मनमाने दाम पर किसानों को यह खाद बेच रहे है। जानकारी के अनुसार समितियों में डीएपी का मूल्य 1350 रुपए निर्धारित है। यह खाद कृषि केंद्रों में 1700 रुपए तक बिक रही है। कुछ कृषि केंद्रों में मूल्य कम है। इन स्थानों पर किसानों कोलादन थमाया जा रहा है।

इसलिए है डीएपी की डिमांड
किसान युवराज शर्मा, गिरधर साहू, भोज साहू ने बताया कि शुरूआती दौर में पौधों को बढ़ने और मजबूती के लिए नाइट्रोजन और फास्फोरस की जरूरत होती है। डीएपी में 18 प्रतिशत नाइट्रोजन और 46 प्रतिशत फास्फोरस होता है। इस कारण किसान इस खाद को प्राथमिकता देते हैं। एनपीके को विकल्प के रूप में किसानों को दिया जा रहा है। इसमें 12 प्रतिशत नाइट्रोजन, 32 प्रतिशत फास्फोरस और 16 प्रतिशत पोटाश होता है। एनपीके में नाइट्रोजन और फास्फोरस डीएपी से कम होता है। उपर से यह सोसाइटियों में डीएपी से महंगा 1720 रुपए में बिक रहा है।

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