खुशिका ने पेश की मिसाल: गर्मी की छुट्टियों में पौधों की तैयार की नर्सरी, अब चला रही 'एक पेड़ माँ के नाम' अभियान

खुशिका ने पेश की मिसाल : गर्मी की छुट्टियों में पौधों की तैयार की नर्सरी, अब चला रही एक पेड़ माँ के नाम अभियान
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खुशिका ने अपने स्कूल को लगभग एक हजार पपीते और काली हल्दी पौधे भेंट किए

पीएम श्री केंद्रीय विद्यालय कुरुद की कक्षा पांचवीं की छात्रा खुशिका साहू ने गर्मी की छुट्टियों में 'एक पेड़ माँ के नाम' अभियान चलाने के लिए हजारों पौधे तैयार किए।

धमतरी। धमतरी जिले के पीएम श्री केंद्रीय विद्यालय कुरुद की छात्रा खुशिका साहू ने अपनी मेहनत और संकल्प से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक मिसाल कायम की है। गर्मी की छुट्टियों में कक्षा पांचवीं की छात्रा खुशिका साहू ने हर रोज 1-2 घंटा समय दे कर परिवार के सहयोग से पपीते और काली हल्दी के हजारों पौधों की नर्सरी तैयार की।

स्कूल करगा में लगाए 200 पौधे
स्कूल खुलने पर, खुशिका ने अपने स्कूल को लगभग एक हजार पपीते और काली हल्दी पौधे भेंट किए। इन पौधों को न केवल स्कूल परिसर में लगाया गया, बल्कि लगभग 700 छात्रों को अपने घरों में लगाने के लिए भी दिया लगाया। इसके अतिरिक्त पौधों को अन्य स्कूलों में भी वितरित किया जा रहा है। शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय करगा में 200 पौधे दिए गए।


यह पहल दूसरे बच्चों को करेगी प्रेरित
प्रिंसिपल ग्लोरिया मिंज ने बताया कि, खुशिका ने अपनी उम्र से बड़े काम कर दिखाए हैं। उसकी मेहनत और संकल्प को देखकर पूरा स्कूल गर्व महसूस कर रहा है। यह पहल अन्य बच्चों को भी प्रेरित करेगी। खुशिका के पिता तुमनचन्द साहू और माता रंजीता साहू पर्यावरण संरक्षण के लिए हजारों पौधे स्कूल बच्चों को बाँटें है। इस बार खुशिका को गर्मी की छुट्टी में यह लक्ष्य दिया गया था कि, जब स्कूल खुले तो वह अपने स्कूल के सभी विद्यार्थियों को एक-एक पौधा “एक पेड़ माँ के नाम” से उपहार देवे।

पेड़ लगाबो, तभे तो फल खाबो
पापा-माँ ने बताया कि, बहनों की मदद से पौधे की नर्सरी तैयार की गई। अब स्कूलों में दे रहे है हर पल हर क्षण, पर्यावरण संरक्षण का संस्कार मंत्र वे अपने बच्चों को दे रहे है। उन्होंने एक छत्तीसगढ़ी में नारा बनाया है'पेड़ लगाबो, तभे तो फल खाबो'। फल तभी मिलेगा जब पेड़ लगाया जाएगा। खुशिका साहू का यह प्रयास छोटे बच्चों और समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उसकी पहल न केवल हरियाली बढ़ाने में मदद कर रही है, बल्कि यह पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने का माध्यम भी बन रही है।

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