कवि मधु धांधी स्मृति दिवस: डॉ. हिमांशु द्विवेदी बोले - पूर्वजों की स्मृति को धांधी परिवार ने किया जीवंत

कवि मधु धांधी स्मृति दिवस :  डॉ. हिमांशु द्विवेदी बोले - पूर्वजों की स्मृति को धांधी परिवार ने किया जीवंत
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 डॉ. हिमांशु द्विवेदी स्व. कवि मधु धांधी की 74 वें जन्म दिवस पर शामिल हुए

हरिभूमि के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी स्व. कवि मधु धांधी की 74 वें जन्म दिवस के अवसर पर शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने आयोजित साहित्यिक परिचर्चा और प्रतिमा अनावरण कर अपनी बात रखी।

पिथौरा (छत्तीसगढ़), 21 जून 2025 कभी-कभी मृत्यु के दशकों बाद भी किसी व्यक्तित्व की स्मृतियाँ समाज में जीवंत बनी रहती हैं। ऐसा ही एक उदाहरण शनिवार को पिथौरा में देखने को मिला, जहाँ स्वर्गीय कवि मधु धांधी की 74वीं जयंती के अवसर पर उनके पैतृक गाँव में उनकी प्रतिमा का अनावरण कर न सिर्फ साहित्य को श्रद्धांजलि दी गई, बल्कि पारिवारिक मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत को भी सम्मान दिया गया। कार्यक्रम की शुरुआत एक गरिमामयी साहित्यिक परिचर्चा से हुई, जिसमें छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों से आए हुए साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों और ग्रामवासियों ने भाग लिया। इस अवसर पर हरिभूमि के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।

उन्होंने अपने संबोधन में कहा- "यह बहुत ही प्रेरणादायक है कि जब आज के समय में लोग अपने जीवित माता-पिता को नजरअंदाज कर देते हैं, वहीं धान्धी परिवार ने अपने पूर्वज की स्मृति को सहेजते हुए एक अनूठी मिसाल पेश की है। यह संस्कार, संवेदना और समर्पण का उत्कृष्ट उदाहरण है।"

मधु धांधी: साहसिक अभिव्यक्ति के कवि

डॉ. द्विवेदी ने मधु धांधी के साहित्यिक योगदान को याद करते हुए उन्हें "साहसिक कवि" कहा। उन्होंने बताया कि मधु धांधी ने मात्र 26 वर्ष की उम्र में कविता के माध्यम से सामाजिक चेतना की अलख जगाई थी। उनकी कविताओं में आमजन की पीड़ा, सामाजिक विसंगतियों पर करारा व्यंग्य और बदलाव की पुकार स्पष्ट झलकती है। उन्होंने मधु धांधी की एक प्रसिद्ध कविता की पंक्तियों का उल्लेख करते हुए कहा-

"किसी धोबी के कहने पर नहीं वह राम बनना है,

बिटिया को तज दिया जिसने वह राम नहीं बनना है।"

इस कविता से स्पष्ट होता है कि मधु धांधी की लेखनी में साहस और सच्चाई के लिए प्रतिबद्धता का अद्भुत समावेश था।

धान्धी परिवार का सराहनीय प्रयास

कार्यक्रम के सूत्रधार वरिष्ठ साहित्यकार स्वराज्य करूण ने मधु धांधी की पारिवारिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी कविताएँ आमजन, खासकर मेहनतकश मजदूरों की ज़िंदगी की सच्चाइयों को उजागर करती थीं। उन्होंने एक और कविता का उदाहरण देते हुए कहा -

"कितना खटना पड़ता है, तब मानव को रोटी मिलती है,

कितने उघरे देह यहाँ बरसों में धोती मिलती है..."

यह पंक्तियाँ न केवल गरीबी की त्रासदी को दर्शाती हैं, बल्कि सामाजिक असमानताओं पर भी गहरी चोट करती हैं।

साहित्यिक वर्चस्व की संगठित उपस्थिति

कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व सांसद चुन्नीलाल साहू ने की, जबकि विशिष्ट अतिथियों में वरिष्ठ भाषाविद डॉ. चितरंजन कर, साहित्यकार जी.आर. राणा, डॉ. शिवशंकर पटनायक, डॉ. धीरेंद्र साव और युवा साहित्यकार प्रवीण प्रवाह शामिल रहे। सभी ने मधु धांधी के काव्य को समय से आगे का साहित्य बताते हुए उनके सामाजिक दृष्टिकोण की सराहना की। कार्यक्रम में महासमुंद, बसना, बागबाहरा, सांकरा और पिथौरा सहित आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधि और ग्रामवासी शामिल हुए।

सम्मान और स्मृति

समारोह में उपस्थित सभी अतिथियों को शाल, श्रीफल एवं स्मृति चिह्न (मोमेंटो) देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन उमेश दीक्षित (श्रृंखला साहित्य मंच) ने किया और घनश्याम धांधी (स्व. मधु धांधी के पोते) ने आभार प्रदर्शन कर सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। यह आयोजन एक उदाहरण है कि जब साहित्य और स्मृति का संगम होता है, तब एक गाँव भी राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना का केंद्र बन सकता है। पिथौरा ने आज यह सिद्ध कर दिखाया।

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