पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का निधन: आईसीयू में मन नहीं लगा तो डॉक्टर से कहा- फैमिली के साथ रहूंगा

पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का निधन : आईसीयू में मन नहीं लगा तो डॉक्टर से कहा- फैमिली के साथ रहूंगा
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पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे 

अंतराष्ट्रीय हास्य कवि पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे ने अंतिम समय में अपना इलाज कर रहे चिकित्सकों से आग्रह किया था कि उन्हें परिवार के साथ नॉर्मल वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाए।

रायपुर। अंतराष्ट्रीय हास्य कवि पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे ने अंतिम समय में अपना इलाज कर रहे चिकित्सकों से आग्रह किया था कि उन्हें परिवार के साथ नॉर्मल वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाए। डॉ.दुबे को 25 जून को अस्पताल में भर्ती किया गया था। एडवांस कार्डियक इंस्टिट्यूट प्रमुख डॉ. स्मित श्रीवास्तव ने बताया कि बुधवार को ही उनकी एंजियोग्राफी की गई थी। उनकी एक नस में 100% और दूसरी नस में 95% ब्लॉकेज था। स्थिति को देखते हुए भर्ती करने के तुरंत बाद ही उन्हें एंजियोप्लास्टी की गई। यह सफल रही थी।

प्रोटोकॉल के मुताबिक, किसी भी मरीज को एंजियोप्लास्टी के बाद 24 घंटे तक आईसीयू में रखना होता है। 26 जून की सुबह 24 घंटे पूर्ण होने के थोड़े देर पहले उन्होंने हमसे कहा कि उनका मन आईसीयू में नहीं लग रहा है, उन्हें वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाए, जहां वे अपने परिवार के साथ रह सकें। उनके आग्रह को देखते हुए हमने उन्हें गुरुवार सुबह वार्ड में चिकित्सकों की निगरानी में शिफ्ट कर दिया था। मध्यान्ह तक उनकी स्थिति सामान्य थी। दोपहर में उन्हें 2-3 अटैक आए। इन अटैक के बाद उन्हें बचाया नहीं जा सका। अंतिम समय में उनके साथ उनकी पत्नी, पुत्र सहित अन्य रिश्तेदार भी थे। यही उनकी इच्छा थी।

शुगर को लेकर थे फिक्रमंद
25 जून को ऑपरेशन से पहले वे 13 जून को चेकअप के लिए आए थे। डॉ. स्मित श्रीवास्तव ने उनकी जांच की। वे अपनी पत्नी शशि दुबे के साथ पहुंचे थे। डॉक्टर से सेहत संबंधित चर्चा के दौरान उन्होंने अपने शुगर लेवल को लेकर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने डॉक्टर से पूछा था कि क्या उन्हें खाना कम करने की जरूरत है, क्योंकि उनका शुगर लेवल हमेशा ही बढ़ा रहता है। इसके बाद चिकित्सक ने उन्हें सलाह देते हुए कहा था कि खाना कम करने की आवश्यकता नहीं है। केवल दवा सही समय पर लेनी चाहिए। उन्होंने नस में ब्लॉकेज की आशंका को देखते हुए एंजियोग्राफी करवाने कहा था। अपनी सेहत को लेकर वे इतने सजग थे कि जब 13 जून को चेकअप के लिए आंबेडकर अस्पताल पहुंचे तो उनके पास 25 साल पुरानी फाइल थी।

चेहरे पर थी चिर-परिचित मुस्कान
डॉ. दुबे की एंजियोग्राफी करने वाली टीम ने बताया कि, वे अपनी बीमारी या एंजियोग्राफी को लेकर बिल्कुल भी चिंतित नहीं थे। कोई तनाव उनके चेहरे पर नजर नहीं आया। हमेशा की तरह अपने चिर-परिचित अंदाज में बातचीत कर रहे थे। अंतिम दो दिनों में भी मुस्कुराते और दूसरों को हंसाते रहे।

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