संत मुनि की शरण में व्यवसायी ने त्यागा देह : जैन धर्म में इसे माना जाता है पवित्र, विधि विधान से कराया गया अंतिम संस्कार 

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संत मुनि की शरण में व्यवसायी ने त्यागा देह
पेंड्रा में मौत का पूर्वाभास होने पर जैन संत मुनि की शरण में एक प्रतिष्ठित व्यवसायी का निधन हो गया। जैन धर्म में इस तरह की मृत्यु को पवित्र माना जाता है। 

आकाश पवार-पेंड्रा। पेंड्रा में मौत का पूर्वाभास होने पर जैन संत मुनि की शरण में एक प्रतिष्ठित व्यवसायी के देह त्यागने की घटना सामने आई है। दरअसल पेंड्रा में 23 नवंबर से जैन संत आचार्य पूज्यसागर जी और आचार्य अतुल सागर जी पहुंचे हुए हैं और जैन धर्मशाला में विधान का कार्यक्रम चल रहा है।

पेंड्रा के प्रतिष्ठित व्यवसायी सुशील कुमार जैन की अचानक से तबीयत खराब हुई जिसके बाद उन्हें अस्पताल से ले जाया गया। वहां पर उन्होंने आचार्य श्री के पास जाने की इच्छा व्यक्त की। परिजनों ने बिना देर किए उन्हें पूज्य सागर जी महाराज के पास ले गए। वहां पर उन्होंने जैन आचार्य को देखते ही भांप लिया और जैन संप्रदाय में ऐसे समय पर प्रचलित नमोकार मंत्र का जाप कर ही रहे थे की दो बार नमो नमो बोलने के बाद व्यवसायी सुशील कुमार जैन का निधन हो गया।

निधन के बाद विधि विधान से कराया गया अंतिम संस्कार

जैन समाज में संतों की शरण में इस प्रकार की मृत्यु को काफी पवित्र माना जाता है। आचार्य पूज्यसागर जी महाराज की शरण में व्यवसायी के निधन से शहर में शोक की लहर छा गई। इसके बाद विधि विधान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। इसके 5 दिन पहले भी 23 नवंबर को इन्हीं आचार्य पूज्यसागर जी महाराज के आगमन के दिन एक अन्य व्यवसायी सुभाष कुमार जैन ने भी इसी प्रकार देह त्याग किया था।

जैन धर्म में जीने के साथ-साथ मरने की भी दी जाती है प्रेरणा

इस प्रकार मौत के पूर्वाभास के बारे में पूज्यसागर महाराज कहते हैं कि, जैन धर्म इकलौता ऐसा धर्म है जहां जीने के साथ-साथ मरने की भी प्रेरणा दी जाती है और इस प्रकार के निधन को संलेखनापूर्वक समाधिमरण कहा जाता है और वैसे तो यह समाधि मरण संत मुनियों के लिए होता है पर गृहस्थ जीवन में जीने वाले लोग भी जब इस प्रकार मृत्यु का धारण करते हैं तो उनको भी अगले जन्म में अच्छा जीवन प्राप्त होता है। पूज्यसागर महाराज कहते हैं कि, इस प्रकार की स्थिति में संबंधित व्यक्ति को देखकर संतो को ठीक उसी प्रकार का पूर्वाभास हो जाता है जैसे वैद्य को नाड़ी देखकर बीमारी का एहसास हो जाता है इसलिए ऐसे समय में संबंधित व्यक्ति को नमोकार मंत्र की शरण में लेकर संलेखना पूर्वक समाधि मरण की प्रक्रिया पूरी कराई जाती है।

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