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गंगरेल बांध के डूब में आए 52 गांव की अधिष्ठात्री देवी मां अंगारमोती की महिमा अपरंपार है। माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु पहुंचते रहते है।

उमेश सिंह बशिष्ट - धमतरी।  गंगरेल बांध के किनारे विराजित वनदेवी मां अंगारमोती दाई हजारों साल से 52 गांवों की अधिष्ठात्री देवी बनी हुई हैं। पहले माता गंगरेल में विराजित नहीं थीं। 1976 में गंगरेल बांध के अस्तित्व में आने पर धमतरी जिले के 52-54 गांव डूब प्रभावित हो गए वहां के लोग अपना मूल  निवास  छोड़कर इधर - उधर बस गए। इस डुबान प्रभावितों के जीवन संघर्ष में हमेशा साथ देने वाली वनदेवी मां अंगारमोती भी अपना स्थान चंवर गांव को छोड़कर ग्राम गंगरेल के बांध किनारे वनों से अच्छादित नदी किनारे विराजित हो गईं। तब से लेकर अब तक अनगिनत श्रद्धालुओं की मनोकामना झोली भरते आ रही हैं। नवरात्रि के द्वितीय दिवस 10 अप्रैल को जब हरिभूमि की टीम गंगरेल स्थित माई अंगारमोती के दरबार में पहुंचे तो दर्शन करने भक्तों का तांता लगा हुआ था। मंदिर परिसर में भंगा राम बाबा की मूर्ति भी स्थापित है, जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। 

मंदिर समिति ट्रस्ट के अध्यक्ष जीवराखन लाल मरई ने बताया कि कुछ महीने पहले ही माता की मूर्ति के पीछे छोटी सी माता की बगिया सजाई गई है। बगिया में मनकेशरी देवी को स्थापित किया गया है। मंदिर में माता के श्रद्धालुओं के द्वारा 2821 मनोकामना ज्योत जलाए गए हैं। जिसमें 883 घृत और 1938 तेल के अलग अलग कक्षों में ज्योत जल रहे हैं। चर्चा में मंदिर के मुख्य पुजारी ईश्वर नेताम ने बताया कि मां अंगारमोती अंगिरा-अंगार ऋषि की पुत्री है। माता डुबान के चंवर गांव में कब से विराजित हैं, यह उन्हें ठीक-ठीक तो नहीं मालूम पर उनके पूर्वज हजारोंसाल पहले की बताते हैं।  श्री नेताम ने बताया कि जब बांध नहीं बना था तो माताजी सूखा नदी और महानदी के बीच में स्थित एक टापू पर विराजित थीं। तब उस क्षेत्र के चंवर, बटरेल, कोकड़ी, कोरलमा जैसे 52 गांव के लोग पूजा करने आते थे। जब बांध बना तो गांव डूबने लगा तब उसे उठाकर वहां से गंगरेल में विराजित किया गया। श्री नेताम ने बताया कि 1937 में कुछ लोग माताजी की मूर्ति को चुराकर ले गए। सिर्फ चरण पादुका बची थी। इसके बाद मंदिर में तुरंत नई मूर्ति स्थापित की गई।

अंगारमोती के सिर पर शिवलिंग

मंदिर के एक अन्य सेवादार सुदेसिंह मरकाम ने बताया कि जब माताजी डुबान में थीं तो उनके पूर्वज कोरलमा में रहकर उनकी सेवा करते थे। बांध बनने के बाद उनका परिवार भोयना में रहने लगा। श्री मरकाम ने बताया कि माताजी कुंवारी है, इनकी छत्रछाया नहीं रहती। इसलिए उसे वनदेवी कहते हैं। उन्होंने बताया कि माताजी के सिर पर शिवलिंग बना हुआ है, जिनकी माताजी के साथ ही पूजा अर्चना की जाती है। चैत्र - क्वांर नवरात्रि मनाने के बाद दीपावली के बाद पहले शुक्रवार को माता का मड़ई-मेला भरता है।

निःसंतान दंपतियों का सहारा है मां अंगारमोती

मुख्य पुजारी ईश्वर नेताम ने बताया कि,  दीपावली के बाद पहले शुक्रवार को मड़ई-मेला लगता है। जहां हजारों की संख्या में निःसंतान महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए आती हैं। जब विहार में माताजी निकलती हैं तो वापसी में महिलाएं मंदिर के सामने हाथों में नारियल लेकर लेटकर पारण पड़ती है। सिरसा बैगा लोग जिनके ऊपर माताजी आई रहती हैं वे डांग-डोली लेकर श्रद्धालु महिलाओं के ऊपर से चलकर वापस मंदिर लौटते है। मान्यता है कि यहां जो भी मनोकामना लेकर आते हैं, वह जरूर पूरी होती है। जिनकी मानता पूरी होती है या संतान की प्राप्ति होती है तो माता का धन्यवाद देने जरूर आते हैं।

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