छत्तीसगढ़ में नाग पंचमी की धूम: महाभारत काल से जुड़ी है परंपरा, नागों की पूजा करने से सर्प दंश से मिलती है मुक्ति

महाभारत काल से चली आ रही है नाग पंचमी मनाने की परंपरा
रायपुर। देशभर समेत छत्तीसगढ़ में भी सावन के साथ- साथ नाग पंचमी का पर्व उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। सुबह से ही भक्त मंदिरों में नाग देवता की पूजा- अर्चना कर रहे हैं। साथ ही नाग देवता को दूध अर्पित कर सुख-समृद्धि की कामना की जा रही है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार हिन्दू धर्म में नागों की देवता के रूप में पूजा की जाती है। इसी का विशेष दिन को नाग पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
नाग पंचमी का पर्व देशभर में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन लोग अपनी श्रद्धा अनुसार नाग देवता की पूजा कर उन्हें दूध अर्पित करते हैं। विधि- विधान से पूजन- अर्चन करने से सर्प दोष से मुक्ति मिलने के साथ ही जीवन में सुख, शांति बनी रहती है। साथ ही यह पर्व कृषि जीवन से भी जुड़ा हुआ है इस दिन किसान खेतों में रहने वाले साँपों की पूजा करते है ताकि कृषि कार्य के समय अनजाने में हुए सर्प दोष से मुक्ति मिले।
महाभारत काल से जुड़ी है परंपरा
नाग पंचमी मनाने के पीछे कई सारी प्राचीन मान्यताएं जुड़ी हुई है। इसमें से एक परंपरा महाभारत काल से संबंधित है। जिसके अनुसार, जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने और सापों का अंत करने के लिए सर्पयज्ञ किया था। इस दौरान बड़े- बड़े नाग अग्निकुंड में जलने लगे थे। उस समय इस यज्ञ को आस्तिक मुनि ने नागों की रक्षा के लिए सावन में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथी को रुकवा दिया था। इसी काल से नागों की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है।
सर्प दंश से मिलती है मुक्ति
नाग को हिन्दू धर्म में देवता के रूप में माना जाता है इन्हें धरती का रक्षक भी माना जाता है। भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर आराम करते हैं। वहीं भगवान शिव नाग को अपने गले में धारण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि, नाग पंचमी के दिन नाग की पूजा करने से सर्प दोष दूर हो जाता है साथ ही भय को दूर कर नाग देवता घर की रक्षा करते हैं।
