अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: ज्ञान का पिटारा लेकर पहुंचे सात समंदर पार और बन गए गुरु, 32 बरस में 64 देशों में बांटा ज्ञान

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस :  ज्ञान का पिटारा लेकर पहुंचे सात समंदर पार और बन गए गुरु, 32 बरस में 64 देशों में बांटा ज्ञान
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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

पुरी के नंदा गोसाई योग के मौन साधक हैं डॉ. अदरीश ब्रम्हदता। योग आश्रम से जुड़े परिवार से मिले ज्ञान को उन्होंने दुनियाभर में फैलाने का जैसे बीड़ा उठा रखा है।

विकास शर्मा - रायपुर। पुरी के नंदा गोसाई योग के मौन साधक हैं डॉ. अदरीश ब्रम्हदता। योग आश्रम से जुड़े परिवार से मिले ज्ञान को उन्होंने दुनियाभर में फैलाने का जैसे बीड़ा उठा रखा है। कई देशों में योग विद्या की ट्रेनिंग देते हुए वे योग गुरू बन गए। अभी वे थाईलैंड के महिदोल विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को जीवन में योग के साथ आयुर्वेद की महत्ता बता रहे हैं। उन्होंने आस्ट्रेलिया, न्यूयार्क, कनाडा, टोकियो, चाइना जैसे देशों में जाकर योग का अलख जगाया है। उनका कहना है, योग फिटनेस, तनावमुक्त होने का रामबाण नुस्खा है, साथ ही यह जीवन के कष्टों को दूर करने के साथ आत्मा को शुद्ध करने का सशक्त माध्यम भी है।

डॉ. अदरीश ब्रम्हदत्ता ने बताया कि, पहले योग को हिडन साइंस माना जाता था। धीरे-धीरे इसे भारत समेत पूरी दुनिया ने दर्शन विज्ञान के रूप में स्वीकारा। भारत के साथ दूसरे देशों के लोग भी योग की महत्ता को स्वीकारते हैं। इसका प्रमाण है, वर्ष 2015 से थाईलैंड के अलावा कई देशों में होने वाले योग की क्लास में जुटने वाली भीड़। थाईलैंड के विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को योग का ज्ञान देने के साथ वे मेंटल हेल्थ प्रोजेक्ट के तहत व्यवसायिक संस्थानों, स्कूलों, विभिन्न जेल सहित अन्य स्थानों में जाकर योग की ट्रेनिंग देते हैं। उन्होंने बताया कि थाईलैंड में चिकित्सकीय पेशे से जुड़े कई बड़े डाक्टर अपने मरीजों को योग की सलाह देते हैं। उन्होंने कहा कि श्वांस संबंधी परेशानियों से जूझ रहे लोगों प्राणायाम की सलाह दी जाती है। इसके अलवा एकाग्रता और मानसिक समस्या से बचने के लिए ओम मंत्र का उच्चारण करने की मौखिक सलाह चिकित्सक भी देते हैं।

विश्व में योग गुरुओं की कमी
योग के प्रति लोग आकर्षित हो रहे हैं मगर इसका सही ज्ञान देने वालों की पूरी दुनिया में कमी है। योग की ट्रेनिंग देने के लिए सैंकड़ों लोग मिल जाते हैं मगर इसे जीवन में शामिल करने का ज्ञान देने वाले महज एक प्रतिशत लोग ही हैं। वास्तव में योग गुरू ऐसा होना चाहिए जिसने योग विज्ञान को अपनी जीवन में शामिल किया हो और बनाए गए नियम का पालन करता हो। इससे योग विज्ञान का दूसरों को ज्ञान देने के साथ उसके नियम को अपनाने में वह स्वंय उदाहरण बन सकता है।

भारत में पढ़ाई, विदेशों में दे रहे शिक्षा
51 वर्षीय डॉ. अदरीश ब्रम्हदत्त ने श्री श्री विश्वविद्यालय, भारत से समग्र स्वास्थ्य में पीएचडी, बिहार योग भारती विवि से अनुप्रयुक्त योग विज्ञान में एमएससी तथा संबलपुर विश्वविद्यालय आयुर्वेदिक चिकित्सा एवं शल्य चिकित्सा में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद विदेशों में योग के साथ आयुर्वेद की शिक्षा दे रहे हैं। पिछले 32 वर्षों से 61 देशों में योग, आयुर्वेद, उपचार, गायन बाउल और समग्र स्वास्थ्य शिक्षण, प्रशिक्षण, व्याख्यान और परामर्श दिया है। वे शिव योग ट्रस्ट इंडिया, अथर्व वेलनेस थाईलैंड और अगामासोल ग्लोबल के संस्थापक हैं।

कैरियर की अपार संभावनाएं
डॉ. अदरीश बताते है कि, योग में कैरियर की अपार संभावनाएं हैं। युवा अभी इंजीनियरिंग, चिकित्सा जैसे क्षेत्र में अपना भविष्य तलाशते हैं। जिस तरह योग विज्ञान की तरफ दुनियाभर से लोग आकर्षित हो रहे हैं उससे आने वाले दिनों मे योग गुरुओं की मांग काफी अधिक होने की संभावना बन रही है। विश्वविद्यालय में योग सीखने के बाद उनके कई छात्र अलग-अलग सेक्टरों में जाकर लोगों को योग सीखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि योग की पढ़ाई के साथ योग अभ्यास को मन से समझने और उसे अपने जीवन में उतारने की आवश्यकता है।

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