हाईकोर्ट का राज्य सरकार से सवाल: छोटे-छोटे कमरों में बिना मान्यता के स्कूल, दुर्घटना होगी तो जिम्मेदार कौन

हाईकोर्ट बिलासपुर
बिलासपुर। शिक्षा का अधिकार (आरटीई) मामले में बुधवार को फिर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। शिक्षा विभाग के ज्वाइंट सेक्रेटरी द्वारा पेश शपथपत्र से हाईकोर्ट ने असंतुष्टि जताई और नाराज हाईकोर्ट ने शिक्षा सचिव को अगली सुनवाई में स्वयं के शपथपत्र में जवाब पेश करने कहा है। इसमें कोर्ट ने जवाब मांगा है कि बताएं कि प्रदेशभर में बिना मान्यता प्राप्त संचालित नर्सरी स्कूलों पर क्या एक्शन लिया गया है। हाईकोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा है कि छोटे-छोटे कमरों में बिना मान्यता स्कूल चल रहे हैं, कोई बड़ी दुर्घटना होगी तो जिम्मेदार कौन होगा।
दरअसल, प्रदेश के कई निजी स्कूल बिना किसी मान्यता के नर्सरी से लेकर कक्षा 8 वीं तक की पढ़ाई करा रहे हैं। इस मामले को लेकर विकास तिवारी ने जनहित याचिका दायर की है। यह याचिका उन स्कूलों के खिलाफ दायर की गई थी, जिन्होंने आरटीई कानून के तहत गरीब तबके के बच्चों को प्रवेश नहीं दिया, जबकि वे इसके लिए बाध्य थे। आरोप यह है कि ये स्कूल बिना मान्यता के चल रहे हैं और सरकारी सब्सिडी और नियमों की अनदेखी करते हुए मनमानी फीस वसूल कर रहे हैं। गौरतलब है कि सामाजिक कार्यकर्ता ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि गरीब और वंचित परिवार के बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए शिक्षा का अधिकार आरटीई अधिनियम 2009 लाया गया था। याचिका में बताया गया कि वर्तमान में जगह-जगह स्कूल खोल दिए गए है।
17 सितंबर तक मांगा जवाब
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार और शिक्षा सचिव को निर्देशित किया कि वे 17 सितंबर तक शपथपत्र के माध्यम से स्पष्ट करें कि इस पूरे मामले में अब तक क्या कदम उठाए गए हैं। कोर्ट ने यह भी कहा है कि शिक्षा के अधिकार के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देना हर राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है।
