रूस-यूक्रेन युद्ध का असर: डीएपी की सप्लाई कम, सोसाइटियां खाली, अभी तक पहुंची सिर्फ 44 हजार टन

रूस-यूक्रेन युद्ध का असर : डीएपी की सप्लाई कम, सोसाइटियां खाली, अभी तक पहुंची सिर्फ 44 हजार टन
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रूस-यूक्रेन विवाद की वजह से किसानों के सामने डीएपी खाद का संकट आ गया है। पिछले कुछ सालों में धान की खेती को बेहतर करने के लिए डीएपी का भरपूर उपयोग करने लगे हैं।

सत्यम शर्मा - राजनांदगांव। रूस-यूक्रेन विवाद की वजह से किसानों के सामने डीएपी खाद का संकट आ गया है। पिछले कुछ सालों में खेती करने वाले किसानों के बीच सर्वाधिक चर्चित खाद बन चुके डीएपी की मांग हर साल बढ़ रही है, लेकिन पिछले दो साल से किसानों को इस खाद के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। इस बार हालात यह है कि मांग के मुकाबले दस फीसदी वितरण भी किसानों को नहीं हो पाया है। ऐसे में किसान अब विकल्प तलाशने की कवायद में जुट गए हैं। दरअसल, डीएपी का आयात रूस, जॉर्डन और इस्राइल से होता है और वहां हालात बिगड़े हुए हैं। उल्लेखनीय है कि धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ प्रदेश में खरीफ सीजन के दौरान लगभग किसान धान की खेती करते हैं।

पिछले कुछ सालों में किसान धान की खेती को बेहतर करने के लिए डीएपी का भरपूर उपयोग करने लगे हैं। यही कारण है कि यूरिया के बाद डीएपी की ही सर्वाधिक मांग भी रहती है। भारत देश डीएपी खाद को लेकर पूरी तरह से आयात पर निर्भर रहता है। ऐसे में पिछले कुछ महीनों में बनी स्थिति के बाद देश में डीएपी खाद का पर्याप्त आयात नहीं हो पा रहा है। जिसके चलते केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के हिस्से में भी कटौती की है। जिसका सीधा असर अब खेती में भी दिखने लगा है।

बेमेतरा के 102 में से 55 सोसाइटियों में डीएपी नहीं
बेमेतरा जिला प्रशासन ने राज्य शासन से 63370 मीट्रिक टन खाद की मांग की थी, लेकिन 34216 क्विंटल ही खाद मिली है। खाद के स्टॉक में डीएपी की मात्रा और भी कम है। जिले की 102 समितियों के माध्यम से खाद वितरण का काम किया जा रहा है। जानकारी के अनुसार, जिले की 55 समितियों में डीएपी बिल्कुल नहीं है, इसके अलावा किसानों को समिति दूसरी खाद दे रही है, इसका किसान विरोध कर रहे हैं।

मांग से आधा ही उत्पादन
एक अनुमानित आंकड़े के अनुसार भारत में हर साल लगभग 100 लाख टन डीएपी की खपत होती है। ज सिका अधिकांश हिस्सा आयात से पूरा क यिा जाता है। यही कारण है कि आयात प्रभावित होते ही संकट बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। डीएपी के ल एि भारत की न र्भिरता आयात पर बढ़ रही है। रसायन और उर्वरक मंत्रालय के मुताबिक साल 2019-2020 में हमने 48.70 लाख मीट्र कि टन डीएपी का आयात क यिा था, जो 2023-24 में बढ़कर 55.67 लाख मीट्रिक टन हो गई थी, लेकिन पिछले एक साल में युद्ध के चलते आयात भी मांग अनुसार नहीं हो पाया है।

प्रदेश को चाहिए 2.35 लाख टन डीएपी
मिली जानकारी के अनुसार खरीफ सीजन के लिए प्रदेश के किसानों को डीएपी उपलब्ध कराने के लिए 2.35 लाख टन भंडारण का टारगेट तय किया गया है। इसके मुकाबले अब तक 44626 टन का ही भंडारण हो पाया है। इसमें भी किसानों तक 17545 टन डीएपी खाद ही पहुंची है। पिछल साल के आंकड़े देखे को प्रदेश के किसानों को 30 सितंबर तक 215085 टन डीएपी खाद का वितरण किया गया था।

डीएपी के विकल्प की तकनीकी सलाह
डीएपी संकट से जूझ रहे किसानों को राज्य सरकार द्वारा अब विकल्प के तौर पर तकनीकी सलाह दी जा रही है। राज्य सरकार के कृषि महकमे ने बकायदा पम्पलेट का वितरण शुरू किया है। इसमें किसानों को धान सहित अन्य फसलों में डीएपी की जगह अन्य उर्वरकों की जानकारी दी जा रही है।

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