छत्तीसगढ़ के लिए गौरव का पल: डॉ. माणिक विश्वकर्मा बने हिंदी सलाहकार समिति के राष्ट्रीय सदस्य

Dr. Manik Vishwakarma
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वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.माणिक विश्वकर्मा बने हिंदी सलाहकार समिति के राष्ट्रीय सदस्य

छत्तीसगढ़ के डॉ. माणिक विश्वकर्मा को राष्ट्रीय हिंदी सलाहकार समिति में सदस्य के रूप में चुना गया है। उन्होंने अपनी इस उपलब्धि पर राज्य और केंद्र सरकार का आभार जताया है।

रायपुर। छत्तीसगढ़ के डॉ. माणिक विश्वकर्मा को हिंदी सलाहकार समिति में राष्ट्रीय सदस्य के रूप में चुना गया है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय की अनुमति के बाद नियुक्ति की गई है। देशभर के केवल तीन लोगों को इस राष्ट्रीय समिति में शामिल किया गया है। इस उपलब्धि पर डॉ. माणिक विश्वकर्मा ने केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार का आभार जताया है।

राजभाषा विभाग की संयुक्त सचिव मीनाक्षी जौली ने 8 अगस्त को इस संबंध में आधिकारिक सूचना जारी की गई थी। जिसके बाद अब डॉ.माणिक विश्वकर्मा नवरंग को यह जिम्मेदारी एक गैर- सरकारी सदस्य के रूप में सौंपी गई है। राष्ट्रीय समिति में पूरे देश से केवल तीन सदस्यों को नामित किया गया है, जिनमें डॉ. माणिक विश्वकर्मा के अलावा हरियाणा से नेहा धवन और चेन्नई से श्रीश्री कांथा कन्नन को भी शामिल किया गया है।

1971 से हिंदी साहित्य के लिए कर रहे काम
डॉ. माणिक विश्वकर्मा एनटीपीसी कोरबा से उप महाप्रबंधक के पद पर सेवा निवृत्त है। वे वरिष्ठ साहित्यकार, समीक्षक ,लेखक, प्रखर वक्ता एवं नवछंद विधान हिंदकी के निर्माता भी हैं। विश्वकर्मा ने विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने के बाद अपना पूरा जीवन हिंदी भाषा, साहित्य के उन्नयन और विकास के लिए समर्पित कर दिया है। वे 1971 से हिंदी भाषा की सेवा और साहित्य सृजन कर रहे हैं। प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में नियमित रूप से छप रहे हैं।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर हो चुके हैं सम्मानित
डॉ. माणिक विश्वकर्मा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हो चुके हैं। उनकी 15 कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी है और पाँच प्रकाशित होनी है। वे पाँच काव्य संग्रहों का संपादन कर चुके हैं। सैकड़ों पत्र- पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं, 200 से अधिक समीक्षाएँ कर चुके हैं। विगत 44 वर्षों से संकेत साहित्य समिति जिसके वे संस्थापक भी हैं के माध्यम से नये रचनाकारों को बेहतर लिखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। डॉ. माणिक विश्वकर्मा की भाषा सरल, सुबोश, आकर्षक है। उनकी रचनाएँ – रचना कौशल ,भाषा शैली, अर्थ विश्लेषण एवं विवेचना की हर कसौटी में खरी उतरती है। उनकी अभिव्यक्ति की सहजता हृदय स्पर्शी है।

हर मुद्दों पर रखते हैं बात
डॉ. माणिक विश्वकर्मा की रचनाएँ मानव मूल्यों को संपूर्णता प्रदान करती हैं। रचनाओं में नयापन,नयी बानगी,नयी रवानगी,एवं नित नये प्रतीक- बिंबों का प्रयोग उन्हें अन्य रचनाकारों से अलग पहचान दिलाता है। यही उनकी ख़ूबी भी है। आम आदमी की लड़ाई हो या पर्यावरण संरक्षण की बात उन्होंने इस अभियान में हरदम बढ़कर हिस्सा लिया है। तीस वर्षों तक पर्यावरण प्रबंधन एवं प्रदूषण नियंत्रण का कार्य देखते हुये उन्होंने हजारों पेड़ लगवाया है। वे साहित्य जगत में अपने विशिष्ट लेखन शैली एवं प्रस्तुतीकरण के लिये जाने हैं।

केंद्र और राज्य सरकार का जताया आभार
डॉ. माणिक विश्वकर्मा मंच, प्रकाशन , प्रसारण और व्याख्यान के क्षेत्र में समान रूप से सक्रिय हैं। मानव मूल्यों के पक्षधर कवि के रूप में भी उन्हें ख्याति मिली है। वे राष्ट्र भाषा हिन्दी की सेवा करने को पुनीत कार्य मानते हैं। उन्होंने इस चयन को छत्तीसगढ़ और अपने परिवार के लिए गौरव की बात बताया। उन्होंने कहा- कि मध्य भारत से प्रतिनिधित्व मिलना उनके लिए सौभाग्य की बात है। इस उपलब्धि के लिए उन्होंने राज्य सरकार ,केंद्र सरकार और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का आभार व्यक्त किया है। उन्होंने शिक्षा में हिंदी की महत्ता को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता भी जताई।

इन साहित्यिक और सामाजिक संस्थाओं से वे जुड़े हैं
संस्थापक (1981) एवं प्रांतीय अध्यक्ष - संकेत साहित्य समिति, छत्तीसगढ़

प्रातीय संरक्षक - मय-मनु विश्वकर्मा संघ, छत्तीसगढ़

संरक्षक - पं.मुकुटधर पांडे साहित्य भवन समिति, कोरबा एवं राष्ट्रीय कवि संगम, रायपुर (छत्तीसगढ़)

प्रांतीय कार्याध्यक्ष - संस्कार भारती, छत्तीसगढ़

मार्गदर्शक - हिन्दी साहित्य भारती, छत्तीसगढ़

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