हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: जब अपराध साझा आशय के तहत किया जाता है तो समूह के सभी सदस्य जिम्मेदार

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला : जब अपराध साझा आशय के तहत किया जाता है तो समूह के सभी सदस्य जिम्मेदार
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हाईकोर्ट दो नाबालिग अनुसूचित जाति बहनों के सामूहिक बलात्कार मामले में नौ दोषियों की अपीलों को खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा है।

बिलासपुर। हाईकोर्ट दो नाबालिग अनुसूचित जाति बहनों के सामूहिक बलात्कार मामले में नौ दोषियों की अपीलों को खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट के निर्णय के निर्णय को बरकरार रखा है। सभी आरोपियों को विशेष न्यायालय ने नाबालिगों का अपहरण, बलात्कार, धमकी और पास्कों एक्ट के तहत दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्ता गुरु की पीठ ने स्पष्ट किया कि जब अपराध साझा आशय के तहत किया जाता है, तो समूह के सभी सदस्य भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के तहत समान रूप से जिम्मेदार होते हैं, चाहे सभी ने प्रत्यक्ष रूप से मुख्य कृत्य किया हो या नहीं

याचिकाकर्ता अजय वर्मा उर्फ छोटू, शिवम वर्मा उर्फ मोनू, सोहन ध्रुव, राजेंद्र कुमार डहरिया उर्फ लाला डहरिया, राजेंद्र डायमंड, उकेश उर्फ राकेश डहरिया, कमलेश उर्फ रॉकी घृतलहरे, गोपी साहू, पीयूष वर्मा उर्फ मिंटू और जगन्नाथ यादव उर्फ मोलू ने विशेष न्यायाधीश (अत्याचार निवारण), बलौदाबाजार द्वारा 10 मार्च 2021 को दिए गए फैसले के खिलाफ अपील की थी। प्रकरण के मुताबिक 30 मई 2020 को दो नाबालिग बहनों को आरोपी कमलेश घृतलहरे और गोपी साहू ने उनके अभिभावक की अनुमति के बिना घर से बाहर बुलाया। लौटते समय, अन्य छह आरोपियों ने उन्हें रास्ते में रोककर उनके साथ अपराध किया। आरोपी राजेंद्र डहरिया ने घटना का वीडियो अपने मोबाइल में रिकॉर्ड किया, जिसे बाद में पीयूष वर्मा ने धमकी देने और ब्लैकमेल करने के लिए इस्तेमाल किया।

स्कूल रजिस्टर से जन्मतिथि स्पष्ट
मामले में 29 जुलाई 2020 को एफआईआर दर्ज कराई गई। जांच के दौरान पुलिस ने मोबाइल फोन, वीडियो साक्ष्य, मेडिकल परीक्षण और गवाहों के बयान एकत्र किए। सभी आरोपी अपीलकर्ताओं की ओर से कहा गया कि प्राथमिकी दर्ज करने में दो महीने से अधिक की देरी हुई। इसके साथ ही चिकित्सकीय रिपोर्ट अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं करती। साथ ही गवाहों के बयानों में विरोधाभास और चूकें हैं तो पीड़िताओं की उम्र के प्रमाण पर्याप्त रूप से सिद्ध नहीं हुए। केवल पीड़िताओं के बयानों के आधार पर सजा सुनाई गई है और स्वतंत्र साक्ष्य नहीं हैं। पुलिस की ओर से कहा गया कि घटना के समय पीड़िताएं नाबालिग थीं, जिसे स्कूल प्रवेश रजिस्टर में जन्मतिथि से स्पष्ट किया गया। इसके अलावा, अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र से जाति का प्रमाण हुआ।

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, कॉल डिटेल रिकॉर्ड सही
अभियोजन पक्ष ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, कॉल डिटेल रिकॉर्ड, पीड़िताओं और उनके पिता सहित गवाहों के बयानों पर भरोसा किया। साझा आशय और अपहरण पर, कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 361 का उल्लेख करते हुए कहा कि भले ही दोनों आरोपी कमलेश और गोपी के साथ जाने के लिए बहनें सहमत हो गई हों, फिर भी इन आरोपियों को उनके वैध अभिभावक की अनुमति के बिना रात में इस तरह ले जाने का कोई अधिकार नहीं था। इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को भी कोर्ट ने सही माना। सभी पक्षों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों का सही मूल्यांकन किया है और सभी अपीलकर्ताओं की दोषसिद्धि और सजा उचित रूप से निर्धारित की।

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