छत्तीसगढ़ के 25 साल बेमिसाल: लोककला, नृत्य और साहित्य जैसे परंपरागत उत्सवों को मिली वैश्विक स्तर पर पहचान

आदिवासी नृत्य करता नर्तक दल
रायपुर। राज्य निर्माण के बाद से छत्तीसगढ़ ने केवल आर्थिक और औद्योगिक प्रगति ही नहीं की, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर स्थापित करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। छत्तीसगढ़ ने न केवल आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में प्रगति की, बल्कि अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित और प्रोत्साहित करने में उल्लेखनीय कार्य किया। बीते पच्चीस वर्षों में लोककला, नृत्य, साहित्य, शिल्प और परंपरागत उत्सवों के संरक्षण व संवर्धन ने इस प्रदेश को सांस्कृतिक मानचित्र पर विशेष स्थान दिलाया है।

लोकनृत्य और लोककला को नई पहचान
छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति उसकी आत्मा कही जाती है। यहां का पंथी नृत्य, राऊत नाचा, करमा, सुआ और ददरिया गीत देश-विदेश में लोकप्रिय हुए। नाचा और पंडवानी जैसी लोककला शैलियों को राष्ट्रीय मंच मिला। पंडवानी की प्रतिनिधि तीजन बाई को पद्मभूषण और पद्मश्री जैसे सम्मान मिलने से यह कला विश्व पटल पर चमकी।
त्यौहारों को मिला राष्ट्रीय मंच
राज्य गठन के बाद प्रतिवर्ष एक नवंबर को आयोजित राज्योत्सव छत्तीसगढ़ की संस्कृति का सबसे बड़ा उत्सव बन गया है। इसमें देश-विदेश के कलाकार भाग लेकर अपनी प्रस्तुतियों से राज्य की गरिमा बढ़ाते हैं। बस्तर दशहरा, सिरपुर महोत्सव और राजिम कुंभ जैसे पारंपरिक पर्वों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया गया। राजिम कुंभ को "छत्तीसगढ़ का प्रयाग" के रूप में पहचान मिली। राज्योत्सव ने छत्तीसगढ़ को एक बड़े सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित किया। वहीं बस्तर दशहरा, राजिम कुंभ और सिरपुर महोत्सव जैसे उत्सवों ने देश-विदेश से पर्यटकों और कलाकारों को आकर्षित किया।

25 वर्षों में राष्ट्रीय स्तर की कई शैक्षणिक संस्थाएं हुई स्थापित- CM
सीएम विष्णुदेव साय ने कहा कि पिछले 25 वर्षों में प्रदेश में राष्ट्रीय स्तर की कई शैक्षणिक संस्थाएं स्थापित हुई हैं। आईआईटी, आईआईएम, एम्स के साथ-साथ 10 से अधिक मेडिकल कॉलेज संचालित हो रहे हैं। प्रदेश के बच्चों का गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा का सपना अब साकार हो रहा है। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि छत्तीसगढ़ खनिज संपदा से भरपूर और औद्योगिक विकास की असीम संभावनाओं वाला प्रदेश है। नई औद्योगिक नीति के परिणामस्वरूप महज़ डेढ़ वर्ष में ही 6.50 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। इस औद्योगिक नीति में रोजगार सृजन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। आने वाले वर्षों में युवाओं को प्रदेश में ही कौशल अनुरूप रोजगार मिलेगा और उन्हें बाहर जाने की आवश्यकता नहीं होगी।

धरोहरों का संरक्षण और विरासत पर्यटन
पिछले वर्षों में सिरपुर, बारसूर, भोरमदेव, रतनपुर और मालखरौदा जैसे पुरातात्विक स्थलों का संरक्षण किया गया। इन्हें राष्ट्रीय धरोहर के रूप में विकसित करने के साथ पर्यटन से भी जोड़ा गया। सिरपुर महोत्सव में देश-विदेश से कलाकारों और पर्यटकों की भागीदारी ने इस क्षेत्र को वैश्विक नक्शे पर चमकाया। सिरपुर, बारसूर, भोरमदेव और रतनपुर जैसे पुरातात्त्विक स्थलों का संरक्षण कर उन्हें पर्यटन से जोड़ा गया। इन स्थलों पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने विरासत को जीवंत बनाया और छत्तीसगढ़ को सांस्कृतिक पर्यटन का केंद्र बनाने में मदद की।

हस्तशिल्प और कला को अंतरराष्ट्रीय बाजार
छत्तीसगढ़ के शिल्पकारों की ढोकरा कला, टेराकोटा, लोहा शिल्प और कोसा सिल्क को देश-विदेश की प्रदर्शनियों तक पहुँचाया गया। कोसा सिल्क और बस्तर की धातु कला को पहचान दिलाने के लिए जीआई टैग और निर्यात योजनाओं पर काम हुआ। आज यह शिल्प भारत की सांस्कृतिक धरोहर का गौरव माने जाते हैं।

साहित्य, शिक्षा और संस्थागत पहल
कला-संस्कृति के शैक्षणिक विकास के लिए इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ और अन्य संस्थानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लोक कलाकारों और साहित्यकारों को सरकारी पेंशन, सम्मान और मंच देकर उनकी परंपराओं को जीवित रखा गया। छत्तीसगढ़ी साहित्य को बढ़ावा मिला और छत्तीसगढ़ी सिनेमा ने भी अपनी अलग पहचान बनाई।

डिजिटल युग में संस्कृति का प्रसार
डिजिटल माध्यमों पर छत्तीसगढ़ी गीत, फिल्में और नृत्य ने नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ा। "छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया" जैसे नारे और सांस्कृतिक अभियानों ने युवाओं में गौरव की भावना जगाई। अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक आयोजनों में छत्तीसगढ़ी कलाकारों की प्रस्तुति ने राज्य का नाम रोशन किया। डिजिटल माध्यमों पर छत्तीसगढ़ी गीत, फिल्में और नृत्य ने नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ा। "छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया" जैसे नारे और सांस्कृतिक अभियानों ने युवाओं में गौरव की भावना जगाई। अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक आयोजनों में छत्तीसगढ़ी कलाकारों की प्रस्तुति ने राज्य का नाम रोशन किया।

लोककला, परंपरा और सांस्कृतिक में छत्तीसगढ़ बनाई पहचान
पिछले 25 वर्षों में छत्तीसगढ़ ने अपनी सांस्कृतिक धरोहर को न सिर्फ संरक्षित किया, बल्कि उसे राष्ट्रीय और वैश्विक पहचान भी दिलाई। यह प्रदेश आज केवल खनिज और उद्योगों के लिए नहीं, बल्कि लोककला, परंपरा और सांस्कृतिक विविधता के लिए भी जाना जाता है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति भारतीय विरासत का जीवंत प्रतीक बनकर विश्व पटल पर चमक रही है।
