विकास के दावे और हकीकत: बलौदाबाजार जिले का छेरकाडीह गांव नाला पार करने के लिए लकड़ी के पुल पर है आश्रित

Villagers crossing the stream using a wooden bridge
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लकड़ी की पुल से नाला पार करते ग्रामीण 

बलौदाबाजार के पलारी विकासखंड के ग्राम पंचायत छेड़कडीह में ग्रामीणों को नाला पार करने के लिए बांस के बने पुल का सहारा लेना पड़ता है।

कुश अग्रवाल- बलौदाबाजार। हमारे देश को अंग्रेजों से आजाद हुए 78 साल पूरे होने को हैं। जहां भारत चंद्रयान और डिजिटल क्रांति की बात कर रहा है। वहीं बलौदाबाजार जिला मुख्यालय से मात्र 35 KM दूर पलारी विकासखंड के ग्राम पंचायत छेड़कडीह में आज भी ग्रामीणों को नाला पार करने के लिए बांस के बने पुल का सहारा लेना पड़ता है। इस गांव के बीचो-बीच एक बरसाती नाला बहता है बरसात में गांव दो भागों में बट जाता है।

इस नाले के दूसरी छोर पर दो वार्ड स्थित हैं, इन दो वार्डो में लगभग 50 घरों में 250 से अधिक लोग निवास करते हैं। लेकिन इस गांव के लोग कई वर्षों केबाद भी नरकीय जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं। इस गांव के बीचों बीच बहने वाले बरसाती नाले में हर वर्ष 8 से 10 फीट पानी लगातार दो से तीन माह तक बहता रहता है जिससे इस इन दो वार्डो का संपर्क अपने गांव से कट जाता है। बरसात में ना तो बच्चे स्कूल जा पाते हैं और ना ही आंगनवाड़ी वही इस गांव के ग्रामीण भी राशन लेने एवं अन्य जरूरी कार्य के लिए भी कमर तक बरसाती नाला पार कर दूसरी ओर जाते हैं।

नाले में बह चुके है दुधारु मवेशी
वही इस पर रहने वाले ग्राम वासी भी अपने खेतों में जाने के लिए नाला को पार कर जाते हैं। गांव के मवेशी चराने वाले एवं दूध बेचने वाले चरवाहा भी अपनी मवेशियों को लेकर नाला पार कर दूसरे क्षेत्र में मैं बने गौठान में जाते हैं। जिससे कई बार बरसाती नाले में उनकी मवेशिया भी बह चुकी हैं। सबसे ज्यादा समस्या स्कूल आने जाने वाले बच्चों को होती है। बारिश में नाला में पानी आने की वजह से खतरे को देखते हुए स्कूल के शिक्षक भी बच्चों को स्कूल आने से मना कर देते हैं। ऐसा करना भी उनकी मजबूरी है एवं कलेक्टर का आदेश भी है। जिससे उनकी पढ़ाई लिखाई कभी नुकसान होता है। बच्चे स्कूल एवं आंगनवाड़ी में भी नहीं जा पाए।

ग्रामीणों को आवागमन में होती है परेशानी
इसके अलावा महिलाओं को भी विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। छोटी-छोटी जरूरत को सामान लेने के लिए उन्हें इस पर से उसे पर जाना पड़ता है। अगर कहीं कोई मोहल्ले में बीमार पड़ गया तब तो और ज्यादा तकलीफ हो जाती हैं। खासकर प्रसूता महिलाओं को गांव वाले बताते हैं कि प्रस्तुति के दो माह पहले ही महिलाओं को या तो दूसरे गांव रिश्तेदार के पास छोड़ देते हैं या फिर समय आने पर खाट में लादकर इस पर से उसे पर ले जाना पड़ता है ना तो यहां चिकित्सकी वहां पहुंच पाता और ना ही किसी अन्य प्रकार की चिकित्सकीय सहायता। ग्राम वासी बरसात में लकड़ी से बना अस्थाई पुल नाला के ऊपर बनाते हैं। लेकिन यह भी पैदाल आने जाने वाले लोगों के लिए ही है। अधिकतर नाला पार करके ही आना-जाना करते हैं।


सांसद, विधायक, मंत्री और कलेक्टर से लगा चुके हैं गुहार- सरपंच
गांव के सरपंच और पंच बताया कि अपने गांव की समस्या के बारे में कई बार सांसद, विधायक, मंत्री एवं कलेक्टर तक से गुहार लगा चुके हैं। लेकिन अभी तक इस समस्या का समाधान नहीं हुआ है। सरकार द्वारा गांव-गांव में स्कूल और सड़क निर्माण की योजनाएं चलाई जा रही हैं। ताकि, ग्रामीण इलाकों को मुख्यधारा से जोड़ा जा सके। लेकिन इस गांव की तस्वीर कुछ और ही हकीकत बयान करती है। गांव में स्थित स्कूल और आंगनवाड़ी तक पहुंचने के लिए नाला पार करना अनिवार्य है। यहां बच्चों को रोज़ जान जोखिम में डालकर यह रास्ता पार करना पड़ता है।

बरसात के दिनों में स्थिति हो जाती है भयावह- ग्रामीणों
ग्रामीणों का कहना है कि बरसात के दिनों में स्थिति और भी भयावह हो जाती है। तेज बहाव और फिसलन के कारण छोटे-छोटे बच्चों के लिए यह सफर किसी चुनौती से कम नहीं होता। कई बार हादसे होते-होते बचे हैं, लेकिन अब तक स्थायी पुल या कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं बनाया गया है। प्रशासन से ग्रामीणों की मांग है कि जल्द से जल्द इस स्थान पर पक्का पुल या सुरक्षित मार्ग बनाया जाए ताकि बच्चों की शिक्षा और लोगों की जिंदगी खतरे में न आए।

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