स्वतंत्रता सेनानियों की पट्टिका का लोकार्पण: मिट्टी से फिर उभरी शहादत की अमर गाथा, दबी हुई धरोहर को मिला सम्मान

स्वतंत्रता सेनानियों की पट्टिका का लोकार्पण
कुश अग्रवाल-बलौदा बाजार। छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम से अंकित शिलालेख पट्टिका का लोकार्पण हुआ। बलौदा बाजार जिले का यह छोटा सा कस्बा पलारी अपने भीतर एक बड़ी कहानी समेटे है। एक ऐसी कहानी, जो दशकों तक मिट्टी के नीचे दब गई थी।
उल्लेखनीय है कि, सन 1972 आज़ादी की 25वीं सालगिरह का उत्सव पूरे देश में उमंग से मनाया जा रहा था। पलारी के पुराने तहसील कार्यालय परिसर में एक शिला पट्टिका स्थापित हुई। इस पर 18 उन वीरों के नाम दर्ज थे जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की जंजीरें तोड़ने में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। यह सिर्फ पत्थर नहीं था, यह उन नायकों का अजय स्तंभ था। जो यह बताता था कि, स्वतंत्रता का हर कण उनके बलिदान से सजा है।लेकिन समय के साथ, लोगों की यादें धुंधली होने लगीं। शहर बदला, इमारतें बदलीं, और वह अजय स्तंभ धीरे-धीरे जमीन में आधा दब गया। राहगीर उसे देखते भी नहीं, बच्चे उसके बारे में जानते भी नहीं। मानो पलारी का इतिहास चुपचाप मिट्टी में समा रहा था।

हमारे वीर भुलाए नहीं जाएंगे-गोपी साहू
बताया जा रहा है कि, इस साल नगर पंचायत पलारी के नवनियुक्त अध्यक्ष गोपी साहू ने ठान लिया था कि, हमारे वीर भूले नहीं जाएंगे। उन्होंने मजदूरों को बुलवाया, मिट्टी हटवाई, और वर्षों से दबे उस शिला पट्ट को फिर से धूप दिखा दी। चारों ओर एक सुंदर स्मारक स्थल बनवाया, ताकि यह सिर्फ पत्थर नहीं, एक तीर्थ बन जाए। अब, जब कोई उस अजय स्तंभ के पास खड़ा होता है, तो वहां दर्ज नाम मदन लाल ठेठवार, सरजू प्रसाद, दाखवा प्रसाद, रामचरण, बहुरन, रामनाथ, सीताराम, शालिग्राम, डोमार सिंह, लक्ष्मण सिंह और अन्य वीर हवा में गूंजते से लगते हैं।
आज़ादी हमें यूं ही नहीं मिली-गोपी साहू
दूसरी ओर संविधान की प्रस्तावना चमकती है, मानो उन वीरों की शपथ हो कि इस देश को हम स्वतंत्र रखेंगे। जब पलारी का आखिरी स्वतंत्रता सेनानी हल्कू प्रसाद वर्मा भी इस दुनिया से विदा हो चुके हैं, यह अजय स्तंभ और भी कीमती हो गया है। अब कोई बूढ़ा सिपाही नहीं है जो बैठकर अपने संघर्ष की कहानियां सुनाए, लेकिन यह पत्थर, यह शिला आने वाली पीढ़ियों को हमेशा बताएगी कि आज़ादी हमें यूं ही नहीं मिली थी।
