गुमनामी में छठवीं शताब्दी की बौद्ध मूर्तियां: प्रशासनिक अनदेखी से उपेक्षित है ऐतिहासिक धरोहर जोगीमठ

6th century Buddhist sculptures
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छठवीं शताब्दी की बौद्ध मूर्तियां

कोरिया जिले के सोनहत विकासखंड में छठवीं शताब्दी की बौद्ध मूर्तियां और जोगीमठ अब भी अपने पहचान की मोहताज है। यह ऐतिहासिक धरोहर प्रशासनिक अनदेखी से उपेक्षित है।

प्रवीन्द सिंह- बैकुण्ठपुर। कोरिया जिले के सोनहत विकासखंड के घने जंगलों के बीच स्थित जोगीमठ में आज भी छठवीं शताब्दी की दुर्लभ मूर्तियों को अपने आंचल में समेटे गुमनामी के अंधेरे में पड़ा है। यहां विराजित भगवान गौतम बुद्ध सहित अन्य देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियाँ न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी विशेष महत्व रखती हैं। इन दुर्लभ प्रतिमाओं की जानकारी आज भी केवल स्थानीय लोगों तक सीमित है। जिला मुख्यालय सहित अन्य क्षेत्रों के अधिकांश लोग इस धरोहर से अनभिज्ञ हैं, जिसका मुख्य कारण प्रशासनिक उपेक्षा और प्रचार-प्रसार का अभाव है।

ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध यह स्थल यदि पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए, तो न केवल कोरिया जिले की पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती मिल सकती है, बल्कि इससे क्षेत्र में रोजगार, आर्थिक गतिविधियों और संस्कृति संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा। कोरिया जिले के सोनहत विकासखंड के घने जंगलों के बीच छिपी छठवी शताब्दी के भगवान गौतम बुद्ध सहित अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां आज गुमनामी के अंधेरे में रहने को विवश हैं, जो वर्षो से अपने ही जिले में पहचान की बांट जोह रहे हैं। प्रशासनिक उपेक्षा के कारण ही जोगीमठ की पहचान अब तक जिले के लोगों तक पूरी तरह से नहीं हो पाई है, केवल क्षेत्र के लोगों को ही इस स्थल के प्राचीन मूर्तियों के बारे में जानकारी है। इस स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसीत करने की जरूरत है। ताकि, कोरिया जिले के ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व के इस स्थल की पहचान देश प्रदेश में हो सके।


छठवीं शताब्दी समय की हैं भगवान गौतम बुद्ध की मूर्ति
मिली जानकारी के अनुसार, कोरिया जिला मुख्यालय बैकुंठपुर से सोनहत मार्ग के बीच में जंगलों के बीच छठवीं शताब्दी के समय की भगवान गौतम बुद्ध की मूर्ति सहित अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां है। यह स्थल जोगीमठ के रूप में जाना जाना है, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह कि जोगीमठ की पहचान क्षेत्रीय स्तर पर ही है। आज भी जिले के ज्यादातर लोग जोगीमठ को नहीं जानते। इस प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर को पहचान दिलाने एवं सहेजने की दिशा में अब तक कोई काम नहीं किया गया है। यदि जोगीमठ में मिले प्राचीन बौद्ध प्रतिमा सहित अन्य देवी-देवताओं वाले स्थल को विकसित किया जाए एवं इस स्थल का प्रचार-प्रचार किया जाए तो निश्चित रूप से कोरिया जिले के प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल पर्यटन के नक्शे पर अपनी पहचान कायम कर सकेगा। इसके लिए पर्यटन विकास की बात ही नहीं करनी है, बल्कि इसके लिए जिला प्रशासन को ठोस पहल करने की जरूरत है।

पूर्व वित्तमंत्री स्व. डॉ. सिंहदेव भी कर चुके हैं मूर्तियों का अवलोकन
जोगीमठ धार्मिक व पर्यटन महत्व के स्थल तक प्रदेश के पूर्व वित्तमंत्री भी पहुंच कर मूर्तियों का अवलोकन कर चुके हैं। लेकिन इसके बाद भी जोगीमठ स्थल का हमेशा से उपेक्षा की जाती रही है। यह दुर्भाग्य की बात है कि उच्च स्तरीय नेता के अवलोकन के बाद भी जोगीमठ को पर्यटन स्थल के रूप में पहचान दिलाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है। उक्त स्थल के धरोहर का संरक्षण न केवल सांस्कृतिक जिम्मेदारी है। बल्कि, यह पर्यटन और स्थानीय विकास विकास को गति देने वाला हो सकता है। स्थानीय निवासियों एवं इतिहास प्रेमियों का मानना है कि जोगीमठ की प्राचीन मूर्तियां कोरिया के समृद्ध अतीत का महत्वपूर्ण जीवंत प्रमाण है जो प्राचीन कलाकृतियों और उस कालखंड की धार्मिक और कलात्मक परंपराओं को दर्शाती है। पर्यटन विकास को लेकर इस स्थल की अब तक लगातार उपेक्षा के कारण बहुमूल्य विरासत उपेक्षित पड़ी है। हालांकि, स्थानीय श्रद्धालुओं के द्वारा जोगीमठ स्थल पहुंच कर विभिन्न अवसरों पर पूजा- अर्चना करते हैं। यहां नवरात्र के दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। बाकि, समय एक पंडा कुछ घंटों के लिए मौजूद रहते हैं, जिनके द्वारा प्रतिदिन पूजा-अर्चना की जाती है।


चरवाहे ने दी मूर्तियों के बारे में जानकारी
जानकारी के अनुसार प्रदेश के प्रथम वित्तमंत्री रहे स्व. डॉ.रामचंद्र सिंहदेव भी सोनहत जनपद के जंगलों में स्थित धार्मिक ऐतिहासिक महत्व के स्थल जोगीमठ में पहुंच कर मूर्तियों का अवलोकन कर चुके हैं। बावजूद इसके अब तक कोरिया का जोगीमठ अपनी पहचान प्रदेश में नहीं बल्कि जिले में ही ठीक से स्थापित नहीं कर पाया है। जंगल के बीच स्थित जोगीमठ के निकट जंगल में एक चरवाहा ने बताया कि, कुमार साहब यहां की मूर्तियों को बैकुंठपुर ले जाने के लिए हुए और मूर्ति को वाहन में रखवाया तो वाहन ही स्टार्ट नहीं हो रहा था। जब ग्रामीणों ने बताया कि मूर्ति यहां से कोई नहीं ले जा सकता और जब मूर्ति को वाहन से उतारा गया तो वाहन स्टार्ट हो गया, ग्रामीणों के जवाब के बाद मूर्ति वहीं रहने दिया गया।

मुख्य मार्ग पर लगे सूचना बोर्ड पर लगा जंग
पर्यटन एवं धार्मिक महत्व का स्थल जोगीमठ पहुंचने के लिए बैकुंठपुर से सोनहत मार्ग पर ग्राम घुघरा के आगे जंगल के बीच से रास्ता निकला है। वहां पर मुख्य मार्ग किनारे एक बोर्ड वर्षों पहले लगाया गया है। जिसमें जोगीमठ पर्यटल स्थल जाने का संकेत था, लेकिन लगाया गया बोर्ड वर्षो पुराना है जो जंग खा गया है।उसमें कुछ भी वर्तमान में दिखाई नहीं देता। ऐसे में बैकुंठपुर से सोनहत मार्ग पर आवागमन करने वाले लोगों को यह भी पता नहीं है कि, यह किस चीज का संकेत बोर्ड है। लोगों को पता ही नहीं चलता कि धार्मिक व ऐतिहासिक धरोहर स्थल तक जाने का यही से रास्ता है। यह उपेक्षा जोगीमठ को पर्यटन व आध्यमिक स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में बड़ी बाधा है जो जिले की अमूल्य पुरातात्विक धरोहर वाली स्थान को छिपाने जैसा है।

सुगम पहुंच मार्ग का अभाव पहचान में बाधक
कोरिया जिले के सोनहत जनपद के घने जंगलों के बीच स्थित ऐतिहासिक महत्व का स्थल जोगीमठ स्थल में केवल पुरानी मूर्तियों का संग्रह ही नहीं है। यह स्थल जिले के पर्यटन मानचित्र पर नया अध्याय जोड़ने वाली जगह है, इस स्थल का समुचित विकास करने की जरूरत है। वर्तमान में इस स्थल पर पहुंचने के लिए सुगम सड़क मार्ग तक नहीं है। इसके कारण बरसात के मौसम में लोगों को यहां तक पहुंचना मुश्किल होता है। जानकारी के अनुसार, जोगीमठ तक पहुंचने के लिए सोनहत मार्ग के बीच से ग्राम सोनारी के लिए कच्ची सड़क बनी हुई है। लेकिन इसके बीच से जोगीमठ तक के लिए कोई सुगम सड़क मार्ग नहीं है। यदि यहां तक पहुंचने के लिए सुगम सड़क मार्ग की सुविधा हो जाए तो हर मौसम में यहां पर्यटकों का आना-जाना लगा रहेगा, इसके लिए जिला प्रशासन को इस स्थल तक पहुंचने के लिए सड़क सुविधा प्रदान करने की जरूरत है।


विकास के नाम पर कराया गया है सिर्फ सांस्कृतिक मंच और बाउन्ड्रीवाल निर्माण
पुरातात्विक एवं धार्मिक महत्व के पर्यटन स्थल जोगीमठ में विकास के नाम पर दशक पहले सिर्फ बाउंड्रीवाल एवं सांस्कृतिक मंच का ही निर्माण कराया गया था। जानकारी के अनुसार वर्ष 2013 व 14 में यहां सांस्कृतिक मंच एवं मूर्ति स्थल का बाउंड्री वाल का ही निर्माण कराया गया था, जिसका रंग-रोगन नहीं, किया जाता है। जबकि सांस्कृतिक मंच दो बने हुए है, इनमें मवेशियों के गोबर पड़े हैं।

संरक्षण और सुरक्षा की है जरूरत
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि जोगीमठ की मूर्तियां खुले में पड़ी हैं और उचित संरक्षण के अभाव में इनके क्षतिग्रस्त होने का खतरा बना हुआ है। यदि समय रहते पुरातत्व विभाग या जिला प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया, तो यह धरोहर भविष्य में पूरी तरह नष्ट हो सकती है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि जोगीमठ को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया जाए तथा यहां मूलभूत सुविधाएं- जैसे सड़क, संकेतक बोर्ड, प्रकाश व्यवस्था, गाइड सुविधा- प्रदान कर इसे पर्यटन नक्शे पर स्थान दिलाया जाए।

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