एप्रोच वालों को मिला 'आयुष्मान': ग्रामीण इलाके के छोटे अस्पताल अपील-सुनवाई में फंसे

एप्रोच वालों को मिला आयुष्मान :  ग्रामीण इलाके के छोटे अस्पताल अपील-सुनवाई में फंसे
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गलत तरीके से इलाज करने के आरोप में निलंबन के शिकार हुए कुछ बड़े अस्पतालों की आयुष्मान स्वास्थ्य योजना में गुपचुप तरीके से एंट्री हो चुकी है।

रायपुर। गलत तरीके से इलाज करने के आरोप में निलंबन के शिकार हुए कुछ बड़े अस्पतालों की आयुष्मान स्वास्थ्य योजना में गुपचुप तरीके से एंट्री हो चुकी है। ग्रामीण इलाकों में स्थापित डेढ़ दर्जन अस्पताल अभी भी इस मामले में अपील और सुनवाई में फंसे हुए हैं। नेशनल फ्रॉड यूनिट से मिली जानकारी के बाद स्टेट नोडल एजेंसी की छापामार टीम ने जनवरी महीने में कार्रवाई की थी। हितग्राहियों के गलत पैकेज ब्लॉक करने, इलाज के दौरान अतिरिक्त राशि लेने और अस्पताल में डॉक्टरों सहित अन्य सुविधाओं की कमी के मामले में इनके खिलाफ तीन माह से एक साल तक निलंबन की कार्रवाई की गई थी।

सूत्रों के अनुसार, निलंबन की कार्रवाई के लिए अस्पतालों को उनकी कमियां भी गिनाई गई थीं। जिस पर सुधार और गलतियों पर खेद व्यक्त करने के बाद अस्पतालों द्वारा स्टेट नोडल एजेंसी के फैसले पर पुनर्विचार के लिए आवेदन किया गया था। इस दौरान एप्रोच का खेल चला और 50 बेड से अधिक क्षमता वाले अस्पतालों के मामलों की सुनवाई पूरी की गई। उनके द्वारा जताए गए खेद और घटना की पुनरावृत्ति नहीं होने के आश्वासन को मान्य करते हुए उन्हें स्वास्थ्य योजना के मरीजों के इलाज करने की अनुमति दे दी गई। दूसरी ओर ग्रामीण इलाकों के छोटे अस्पताल, जिन पर बड़े नर्सिंग होम की तरह नियम लागू किए गए थे, उनके आवेदनों पर सुनवाई की प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो पाई है। सूत्रों का कहना है कि प्रदेश के 90 फीसदी अस्पताल आयुष्मान स्वास्थ्य सहायता योजना के भरोसे चलते हैं। खासकर छोटे अस्पतालों की निर्भरता इसी पर होती है, इसलिए उनकी स्थिति भी खराब होने लगी है।

कई अस्पतालों में गंभीर मामले
जांच के दौरान राज्य के कई नामी हास्पिटल्स में भी गड़बड़ी सामने आई थी। कुछ अस्पतालों में सामान्य वार्ड के मरीजों का आईसीयू वाला पैकेज ब्लॉक किया गया था तो कुछ सौ बेड से ज्यादा क्षमता वाले अस्पताल दो से तीन डाक्टरों के भरोसे चल रहे थे। कई अस्पतालों में मरीजों के लिए मूलभूत सुविधाओं का अभाव था। राज्य के 15 अस्पतालों को एक साल के लिए योजना से निलंबित किया गया था। तर्क यह भी दिया जा रहा है कि जांच के दौरान 10 बेड और 100 से ज्यादा बिस्तर की क्षमता वाले अस्पतालों को नियम के मामले में एक ही नजरिए से देखा गया था।

कुछ अस्पतालों के पार्टनर बदल गए
पुनर्विचार के आवेदन सुनवाई के बाद लंबित होने की वजह से चार मध्यम दर्जे के अस्पतालों के पार्टनर बदल चुके हैं। वहीं कई अस्पताल अपनी निलंबन अवधि के दौरान बंद होने की कगार पर हैं। जानकार सूत्रों का कहना है कि छोटे और मंझोले अस्पतालों का संचालन स्वास्थ्य सहायता योजना के मरीजों के भरोसे होता है। योजना से निलंबित होने की वजह वे इन मरीजों का इलाज नहीं कर पा रहे हैं और बिकने अथवा बंद होने की कगार पर हैं।

शुरू नहीं हुई पैकेज संशोधन की प्रक्रिया
आयुष्मान स्वास्थ्य सहायता योजना का पैकेज काफी पुराना है और इसमें बदलाव की डिमांड काफी समय से की जा रही है। विभिन्न चिकित्सकीय संगठनों द्वारा बढ़ती महंगाई का हवाला देते हुए इसमें संशोधन की मांग की जा चुकी है। शासन स्तर पर इसमें आश्वासन मिल चुका है, मगर अब तक विभागीय स्तर पर इस पर किसी तरह की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। तर्क यह भी दिया जा रहा है कि पैकेज कम होने की वजह भी अतिरिक्त राशि लिए जाने की शिकायतें कम नहीं हो रही हैं।

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