रक्षाबंधन विशेष: प्राचीन शिव मंदिर में भाई- बहन एक साथ नहीं कर सकते दर्शन, सदियों से चली आ रही परंपरा

Ancient shiva temple
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 नारायणपुर गांव में स्थित प्राचीन नारायणपुर शिव मंदिर

बलौदा बाजार जिले में एक जगह ऐसी है, जहां भाई-बहन का एक साथ इस मंदिर में जाना अशुभ माना जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव के दर्शन नहीं कर सकते।

कुश अग्रवाल- बलौदा बाजार। छत्तीसगढ़ में रक्षाबंधन पर्व काफी हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। आज के दिन भाई अपनी बहनों के साथ और राखी बंधवाने के लिए जाते मंदिर देवालयों में भी जाते हैं। वहीं प्रदेश के बलौदा बाजार जिले में एक जगह ऐसी है, जहां भाई-बहन का एक साथ इस मंदिर में जाना अशुभ माना जाता है। आइये जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी प्राचीन मान्यताएं।

यह मंदिर है बलौदा बाजार ज़िले के कसडोल विकासखंड से लगभग 8 किलोमीटर दूर नारायणपुर गांव में स्थित प्राचीन नारायणपुर शिव मंदिर। यह मंदिर न सिर्फ अपनी खूबसूरत कलाकृतियों और स्थापत्य के लिए, बल्कि एक अनोखी मान्यता के कारण भी प्रसिद्ध है। यहां पीढ़ियों से यह विश्वास प्रचलित है कि भाई और बहन एक साथ इस मंदिर में प्रवेश कर भगवान शिव के दर्शन नहीं कर सकते।


भाई-बहन के एक साथ दर्शन की मनाही
स्थानीय लोगों के अनुसार, इस मंदिर में अगर भाई-बहन एक साथ दर्शन करते हैं तो उन्हें अशुभ फल मिल सकता है या उनके आपसी संबंधों में दरार आ सकती है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह परंपरा इतनी पुरानी है कि किसी ने इसे तोड़ने की हिम्मत नहीं की। लोग इसे आस्था से जोड़कर मानते हैं और किसी प्रकार की शंका या प्रश्न नहीं उठाते।

क्या कहती है स्थानीय कथा
गांव में प्रचलित एक कथा के अनुसार, सैकड़ों वर्ष पहले एक भाई और बहन इस मंदिर में एक साथ दर्शन करने आए थे। दर्शन के बाद उनके जीवन में लगातार परेशानियां और दुर्भाग्य आने लगे। कहा जाता है कि बहन की शादी टूट गई और भाई गंभीर बीमारी से ग्रसित हो गया। गांव के पुरोहितों ने इसे भगवान शिव का संकेत माना और तभी से भाई-बहन के संयुक्त दर्शन पर रोक लगा दी गई। एक अन्य मान्यता यह भी है कि मंदिर की दीवारों पर अंकित मिथुन मूर्तियां (प्रेम दृश्य) इस परंपरा का कारण बनीं। प्राचीन समाज में इसे मर्यादा और शील से जोड़ते हुए भाई-बहनों को साथ दर्शन करने से रोका गया।

मंदिर का इतिहास
इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर 11वीं-12वीं शताब्दी का है और इसे कलचुरी राजाओं ने बनवाया था। कलचुरी शासक अपनी भव्य और कलात्मक मंदिर निर्माण शैली के लिए प्रसिद्ध थे। यह मंदिर उनकी स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।


वास्तुकला की विशेषताएं
मंदिर पंचरथ शैली में बना है, जिसमें गर्भगृह, मंडप और ऊंचा शिखर शामिल है।

दीवारों पर देवी-देवताओं, अप्सराओं, पशु-पक्षियों और पौराणिक घटनाओं को दर्शाती बारीक नक्काशी की गई है।

पत्थर की मूर्तियों में ऐसी कलात्मकता है कि वे जीवंत प्रतीत होती हैं।

आस्था और पर्यटन का प्रमुख केंद्र
आज भी दूर-दूर से श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने आते हैं। भाई-बहन की संयुक्त दर्शन की मनाही के बावजूद यहां का वातावरण आस्था, शांति और ऐतिहासिक गौरव से भरा रहता है। पुरातत्व और कला में रुचि रखने वालों के लिए भी यह स्थल खास महत्व रखता है।

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