वर्ल्ड स्ट्रोक डे: तेज रफ्तार तनावभरी जीवनशैली से बढ़ रहा स्ट्रोक का खतरा

वर्ल्ड स्ट्रोक डे :  तेज रफ्तार तनावभरी जीवनशैली से बढ़ रहा स्ट्रोक का खतरा
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हर साल 29 अक्टूबर को वर्ल्ड स्ट्रोक डे मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को स्ट्रोक के बारे में जागरूक करना है।

रायपुर। पूर्व में ब्रेन स्ट्रोक उम्रदराज लोगों की बीमारी मानी जाती थी, मगर इस तरह की समस्या लेकर 40 साल से कम आयु का युवा वर्ग भी अस्पताल पहुंच रहा है। चिकित्सकों की मानें, तो तनावभरी तेज रफ्तार वाली जीवनशैली इसकी मुख्य वजह है। कम नींद ज्यादा तनाव, नशे की बुरी लत और अव्यस्थित खानपान इसका मुख्य कारण है। संयमित जीवन शैली और बीपी-शुगर के साथ कोलेस्ट्राल की नियमित जांच से जोखिम को कम किया जा सकता है। इसके बाद भी ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण सामने आते हैं, तो बिना समय गंवाए सही चिकित्सक के पास पहुंचकर अप्रिय स्थिति को टाला जा सकता है।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और डीके हास्पिटल के न्यूरो सर्जरी विभाग के चिकित्सकों के मुताबिक पिछले कुछ सालों में ब्रेन हेमरेज की शिकायत लेकर आने वालों में 30 से 40 साल के मरीजों की संख्या बढ़ी है। डाक्टरों के मुताबिक सही समय पर अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों का इलाज संभव होता है। नहीं तो ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में मृत्यु से लेकर कष्टप्रद जीवन का परिणाम सामने आ सकता है। भागदौड़ भरी दिनचर्या, नशे की बुरी लत, खानपान में लापरवाही और मानसिक तनाव इसके कारण हो सकते हैं। इस जोखिम से बचने के लिए बीपी-शुगर और कोलेस्ट्राल की नियमित जांच का अभाव है। स्ट्रोक के शिकार होने वाले मरीजों के सही उपचार के लिए 6 से 12 घंटे का समय अनमोल माना जाता है

विशेषज्ञों का कहना :-

  1. स्ट्रोक के जोखिम को नियमित जांच और संयमित जीवनशैली से कम किया जा सकता है। इस तरह की शिकायत होने पर बिना वक्त गंवाए मरीज को अस्पताल लाना चाहिए। स्ट्रोक के लक्षण दिखाई पड़े तो इस पर गंभीरता दिखाना आवश्यक है। सही समय पर अस्पताल पहुंचना मरीज के स्वस्थ होने की संभावनाओं को बढ़ाता है।
  2. डॉ. अनिल कुमार शर्मा, विभागाध्यक्ष न्यूरो सर्जरी विभाग एम्स (फोटो अटैच है)
  3. बीपी-शुगर, कोलेस्ट्राल की नियमित जांच आवश्यक है। इसके अलावा खानपान में लापरवाही और बुरी लत से दूर रहकर इससे बचा जा सकता है। स्ट्रोक के मरीजों के लिए 6 से 12 घंटे का वक्त महत्वपूर्ण होता है। इसलिए बिना किसी घरेलू नुस्खे के शीघ्र हास्पिटल पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए।
  4. डॉ. लवलेश राठौड़, सहायक प्राध्यापक न्यूरो सर्जरी विभाग डीके हास्पिटल

10 से 15 फीसदी मामले स्ट्रोक के

एम्स में संचालित न्यूरो सर्जरी एवं न्यूरोलॉजी विभाग में प्रतिदिन की ओपीडी में ढाई सौ की संख्या में नए एवं पुराने मरीज पहुंचते हैं। इनमें लगभग 20 से 25 केस स्ट्रोक के होते हैं। इसी तरह डीकेएस सुपरस्पेशलिटी हास्पिटल के दोनों विभाग में रोजाना डेढ़ से दो सौ मरीज अपनी जांच और इलाज के लिए आते हैं। इनमें 10 से 15 मामले स्ट्रोक से संबंधित होते हैं। दोनों अस्पतालों में स्ट्रोक की समस्या वाले मरीजों में औसतन चार से पांच केस युवा वर्ग के होते हैं।

स्ट्रोक के संकेत

स्ट्रोक के लक्षण को पहचानने का सरल तरीका अंग्रेजी के अक्षर एफ, ए, एस, टी है। इसके संकेतों के आधार पर शिकायत वाले मरीजों को अस्पताल पहुंचाकर उपचार की सुविधा दिलाई जा सकती है।

1. एफ- फेस यानी चेहरे का एक तरफ झुका होना।

2. ए- आर्म यानी बांह का कमजोर या सुन्न होना।

3. एस- स्पीच मतलब बोली का अस्पष्ट अथवा असामान्य होना।

4. टी- टाइम यानी संकेत पर तुरंत अस्पताल जाएं।

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