शिक्षक दिवस विशेष: पढ़ाने के अपने अनूठे अंदाज से नौसिखिये परिंदों को बाज बनाते हैं ऋषि वर्मा

शिक्षक ऋषि वर्मा
हेमन्त वर्मा- धरसींवा। छत्तीसगढ़ के धरसींवा विधानसभा क्षेत्र के सरकारी स्कूल के शिक्षक ऋषि वर्मा अपने पढ़ाने के अनूठे अंदाज के लिए जाने जाते हैं। जिनके पढ़ाने के अंदाज से कठिन विषय भी सरल बन जाता है। उनकी मेहनत और जूनून का ही परिणाम है कि, जिन बच्चों का मन पढ़ने में नहीं लगता था अब वो भी मन लगाकर पढ़ने लगे हैं। ऐसे में आज शिक्षक दिवस के अवसर पर आइये जानते हैं उनकी प्रेरणादायक कहानी के बारे में...
शिक्षक ऋषि वर्मा की कुछ कविताएं... सुन्दर सुर सजाने को साज बनाता हूँ, नौसिखिये परिंदों को बाज बनाता हूँ। चुपचाप सुनता हूँ शिकायतें सबकी, तब दुनिया बदलने की आवाज बनाता हूँ, समंदर तो परखता है हौंसले कश्तियों के और मैं डूबती कश्तियों को जहाज बनाता हूँ। चरितार्थ करता है कि, उनके शिक्षण का तरीका बिलकुल अलग है। जब वे बच्चों को पढ़ाते हैं, तो वे खुद बच्चे बन जाते हैं। वे अभिनय के माध्यम से पढ़ाते हैं, जिससे कठिन से कठिन विषय भी बच्चों के लिए खेल बन जाता है। उनके पढ़ाने की यह अनूठी शैली बच्चों में एक नई ऊर्जा भर देती है। यही वजह है कि उनके स्कूल में बच्चों की उपस्थिति शत-प्रतिशत दर्ज रहती थी।
पिता भी थे सरकारी स्कूल में मास्टर
ऋषि वर्मा के लिए शिक्षा केवल एक पेशा नहीं, बल्कि एक विरासत है। उनके पिता भी एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे और इस विरासत को उन्होंने न केवल संभाला। शुरुआती दिनों में उन्होंने धरसींवा के एक महाविद्यालय में अतिथि शिक्षक के रूप में मामूली वेतन पर काम किया। उस दौर में उन्होंने आर्थिक तंगी और अनिश्चितता का सामना किया, लेकिन उनके अंदर का दृढ़ संकल्प और शिक्षा के प्रति उनका जुनून कभी कम नहीं हुआ। कई वर्षों के संघर्ष के बाद, समय का पहिया घूमा और अपनी उम्मीद खोने से पहले ही वे एक सरकारी शिक्षक बन गए।
समाज और कला के प्रति समर्पण
ऋषि वर्मा जी का व्यक्तित्व केवल एक शिक्षक तक सीमित नहीं है। वे कुर्मी समाज में अपनी महती भूमिका के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं, जिससे समाज में उनका सम्मान और भी बढ़ गया है। उनकी बहुमुखी प्रतिभा का एक और पहलू है - एक विख्यात हास्य कवि के रूप में उनकी पहचान। वे अपनी कविताओं से लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाते हैं, और रामलीला में रावण के किरदार को जिस तरह से जीवंत करते हैं, वह देखने लायक होता है। उनका अभिनय इतना प्रभावशाली होता है कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उनकी कला और रचनात्मकता ने उन्हें एक नया नाम दिया है और छत्तीसगढ़ की हास्य कविता में उन्हें एक विशेष स्थान दिलाया है।
निनवा की पहचान हैं ऋषि वर्मा
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उनका पैतृक गांव, निनवा आज उनके नाम से जाना जाता है। एक व्यक्ति का अपने गांव के लिए इतना योगदान देना, यह बताता है कि वे अपनी जड़ों से कितने जुड़े हुए हैं। वे अपने कर्मों से न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे गांव का गौरव बढ़ा रहे हैं। शिक्षक दिवस के अवसर पर उनका जीवन हमें सिखाता है कि, कड़ी मेहनत, ईमानदारी और समर्पण से कोई भी व्यक्ति अपने सपनों को साकार कर सकता है।
