आंबेडकर अस्पताल में सफल ऑपरेशन: गर्भाशय की जगह पेट में विकसित हो गया था भ्रूण

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रायपुर। आंबेडकर अस्पताल के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में अपनी तरह का एक जटिल मामला सामने आया। यहां एक 40 वर्षीय महिला को पहली बार मातृत्व सुख जटिल सर्जरी के बाद दिया जा सका। यह मामला सेकेंडरी एब्डोमिनल प्रेग्नेंसी का है, जिसमें भ्रूण गर्भाशय में न होकर पेट (एब्डोमिनल कैविटी) में विकसित हो रहा था। डॉक्टरों के अनुसार यह मध्य भारत का पहला मामला है। यह दुनिया के अत्यंत दुर्लभ मामलों में से एक है।
स्त्री प्रसूति रोग विभागाध्यक्ष डॉ. ज्योति जायसवाल एवं विशेषज्ञ डॉ. रुचि किशोर गुप्ता का कहना है कि इस केस पर विस्तृत अध्ययन कर इसे अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशित करने की तैयारी की जा रही है। यह शिशु महिला के लिए "प्रेशियस चाइल्ड" है। उसकी कोई संतान नहीं थी। कई वर्ष पूर्व महिला को एक बच्चा हुआ था, जो डाउन सिंड्रोम और हृदय रोग से ग्रस्त था और उसकी मृत्यु हो गई। अतः ऐसी महिला को मातृत्व सुख का एहसास कराना हमारे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है।
क्या है सेकेंडरी एब्डोमिनल प्रेग्नेंसी
डॉ. ज्योति जायसवाल ने बताया, सेकेंडरी एब्डोमिनल प्रेग्नेंसी एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का वह रूप है, जिसमें भ्रूण पहले गर्भाशय अथवा ट्यूब में ठहरता है और बाद में पेट के अंगों में जाकर विकसित होने लगता है। यह मां के लिए अत्यंत खतरनाक स्थिति होती है और अधिकांशतः भूण जीवित नही रहते। ऑपरेशन ही इसका एकमात्र समाधान है। डॉ. सुमा एक्का, डॉ. नीलम सिंह, डॉ. रुमी, एनेस्थीसिया विभाग से डॉ. शशांक, डॉ. अमृता, जनरल सर्जरी विभाग से डॉ. अमित अग्रवाल भी शामिल रहे।
दो बार मिला जीवनदान
गर्भावस्था के दौरान दो बार जीवनदान मिला। पहली बार गर्भावस्था के चौथे माह महिला मध्यरात्रि में आंबेडकर अस्पताल रेफर होकर आई। स्त्री रोग विभाग ने कार्डियोलॉजिस्ट से संपर्क कर तुरंत एंजियोप्लास्टी कराई। एडवांस कार्डियक इंस्टिट्यूट में हुई इस प्रक्रिया में डॉक्टरों ने विशेष सावधानी बरती ताकि गर्भस्थ शिशु को कोई हानि न पहुंचे। महिला खून पतला करने की दवाओं पर भी थी, गर्भ सुरक्षित रहा। यह गर्भावस्था के दौरान एंजियोप्लास्टी करने का पहला मामला था। गर्भावस्था के 37वें हफ्ते में महिला पुनः स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग आई और उसे तुरंत भर्ती किया गया। केस की गंभीरता को देखते हुए गायनी, सर्जरी, एनेस्थीसिया और कार्डियोलॉजी विभाग की संयुक्त टीम बनाई गई। ऑपरेशन के दौरान पाया कि शिशु गर्भाशय में नहीं, बल्कि पेट में विकसित हो रहा था और आंवल कई अंगों से रक्त ले रही थी। टीम ने सुरक्षित रूप से शिशु को बाहर निकाला। साथ ही भारी रक्तस्राव की संभावना को रोकने के लिए सावधानीपूर्वक चिपकी प्लेसेंटा के साथ गर्भाशय को भी निकालना पड़ा।
