राज्योत्सव पर विशेष: हमें विभाजन में मिला था रेड कॉरीडोर, 25 साल बाद जंगलों में लौटी मुस्कान

राज्योत्सव पर विशेष : हमें विभाजन में मिला था रेड कॉरीडोर, 25 साल बाद जंगलों में लौटी मुस्कान
X

File Photo 

छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के साथ जहा एक ओर छत्तीसगढ़ियों का दशकों पुराना सपना पूरा हुआ, वहीं इस नए राज्य को विरासत में मिला था 'रेड कॉरिडोर'।

सचिन अग्रहरि- राजनांदगांव। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के साथ जहा एक ओर छत्तीसगढ़ियों का दशकों पुराना सपना पूरा हुआ, वहीं इस नए राज्य को विरासत में मिला था 'रेड कॉरिडोर'। राजनांदगांव, कवर्धा और बस्तर के घने जंगलों में फैला यह इलाका कभी नक्सलियों का गढ़ माना जाता था। राज्य निर्माण के शुरुआती वर्षों में नक्सल संगठन इतने प्रभावी थे कि कई गांवों में शासन का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया था। अविभाजित राजनांदगांव जिले में नक्सलियों ने ऐसी घेराबंदी कर रखी थी कि दूर-सुदूर गांवों में प्रशासन के बजाय नक्सल संगठन का राज चल रहा था। केंद्र और राज्य सरकार की फोर्स ने पिछले 25 सालों में लाल आतंक से जूझ रहे इलाकों में तगड़ी मोर्चाबंदी कर नक्सलवाद से जिले को मुक्ति दिलाई है, बल्कि वहां तेजी के साथ विकास काम कर वनांचल के लोगों का भरोसा भी जीत लिया है।

घने जंगलों और ऊंचे पहाड़ों वाले राजनांदगांव जिले में नक्सलियों ने अपना ठिकाना बनाया। राजनांदगांव के दक्षिणी इलाके मोहला-मानपुर में महाराष्ट्र के गढ़‌चिरौली सीमा पर चातगाव दलम, पेंड्री दलम, औंधी दलम मोहला दलम, मदनवाड़ा दलम समेत अन्य दलम सक्रिय थे। इसी तरह महाराष्ट्र के गोंदिया जिले की सीमा पर देवरी दलम सक्रिय रहा। यह दलम राजनांदगांव के छुरिया और नेशनल हाईवे को कवर करता था। इसके साथ ही दर्रेकसा, टांडा, मलाजखंड दलम भी राजनांदगांव और खैरागढ़ के अलावा बालाघाट जिले के सरहद पर सक्रिय रहा। 25 साल तक चले संघर्ष में दलम अब बैकफुट पर है और इनकी संख्या भी बेहद कम हो गई है।

बार्डर में सिमटे नक्सल संगठन
लगातार संघर्ष के बीच नक्सल संगठन सिर्फ बार्डर इलाके में ही सीमित है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के सीमावर्ती इलाकों में ही नक्सलियो की आवाजाही की जानकारी मिल रही है। हालांकि केंद्र सरकार ने राजनांदगांव, खैरागढ़ और कवर्धा जिले को नक्सल मुक्त कर दिया है। वहीं मोहला-मानपुर जिले को आंशिक की श्रेणी में रखा गया है।

बलिदानों की गाथा
12 जुलाई 2009 की याद आज भी ताजा
राजनांदगांव की धरती ने नक्सलवाद से लड़ते हुए अनेक सपूतों की शहादत देखी है। 12 जुलाई 2009, कोरकोट्टी हमला हुआ था। इसमें एसपी विनोद चौबे समेत 29 जवान शहीद हुए थे। इसके अलावा मुरूम गांव से वापस लौटते कोहका में तैनात आईटीबीपी के 3 जवान भी विस्फोट में शहीद हुए थे। डोंगरगढ़ इलाके में गश्त से लौटते वक्त घात लगाकर नक्सलियों ने एक वाहन को उड़ा दिया था। जिसमें संजय शर्मा नामक नौजवान शहीद हो गया था। इस घटना में एएसपी मनोज खिलाड़ी को भी काफी गंभीर चोंट पहुंची थी।

  1. मानपुर से कवर्धा और मंडला तक कॉरिडोर
    नक्सलियों ने राजनांदगांव से लेकर कवर्धा जिले को दो डिवीजन में विभाजित किया है। जिसमें गोंदिया, राजनांदगांव और बालाघाट (जीआरबी) तथा कवर्धा-बालाघाट (केबी डिवीजन) शामिल है। जीआरबी डिवीजन में मलाजखंड और दरेंकसा के अलावा टाडा दलम का मूवमेंट रहता है। इसी तरह केबी डिवीजन में भोरमदेव, खटियामोचा दलम सक्रिय है। नक्सलियों ने मानपुर से मंडला तक रेड कॉरिडोर बनाने की साजिश रची थी, लेकिन अब यह पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है।

प्रमुख घटनाएं


12 जुलाई 2009, कोरकोट्टी हमला- एसपी विनोद चौबे समेत 29 जवान शहीद।

कोहका विस्फोट- आईटीबीपी के 3 जवान शहीद।

पुरदौनी मुठभेड़ (2019)- सब-इंस्पेक्टर श्याम किशोर शर्मा शहीद, 4 नक्सली ढेर।

गातापार हमला- सब-इंस्पेक्टर युगल किशोर वर्मा समेत 3 जवान शहीद।

कटेमा नरसंहार (2017)- दो ग्रामीणों की जघन्य हत्या।

छुरिया क्षेत्र- नक्सलियों ने 9 ग्रामीणों को मौत की सजा सुनाई।

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo

Tags

Next Story