'सिरहा-गुनिया' के शक में निर्दोष की हत्या: पांच आरोपियों को कोर्ट ने सुनाया आजीवन कारावास

दिल्ली कोर्ट (प्रतीकात्मक तस्वीर)
अनिल सामंत- जगदलपुर। बस्तर के आदिवासी अंचल में अंधविश्वास और कुरीतियों की जकड़ अब भी गहरी है। इसी का एक दर्दनाक उदाहरण कोड़ेनार थाना क्षेत्र में दो वर्ष पूर्व सामने आया था। सिरहा-गुनिया (झाड़-फूंक) का काम करने के शक में एक व्यक्ति की निर्मम हत्या कर दी गई। इस अपराध को अंजाम देने वाले पांच आरोपियों को न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।
मामले की सुनवाई करते हुए प्रधान सत्र न्यायाधीश गोविंद नारायण जांगड़े ने आरोपीगण मिट्ठू पोयाम, सुखराम पोयाम, बुधराम पोयाम, सन्नु पोयाम और सोमडू पोयाम सभी निवासी बाटकोंटा, पंचायत सिलकजोड़ी, थाना कोड़ेनार को दोषी पाते हुए भादंसं की धारा 302/147 सहपठित धारा 149, 449, 323/149 के तहत आजीवन कारावास और विभिन्न अवधियों का कठोर कारावास तथा अर्थदंड से दंडित किया।
लोक अभियोजक ने बताया कि, घटना तब हुई जब बामन पोयाम की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। मृतक के परिजनों और गांव के कुछ लोगों ने हिड़मो पोयाम पर 'सिरहा-गुनिया का काम कर मौत कराने' (झाड़-फूंक) का अंधविश्वासपूर्ण आरोप लगाया। इसके बाद सभी आरोपियों ने हिड़मो पोयाम के घर पहुँचकर उसे गाली-गलौज करते हुए बांस के डंडे, हाथ और टंगिया से प्राणघातक हमला कर हत्या कर दी। बीच-बचाव करने आए रामसुख मुचाकी और उसकी मां बुधो मुचाकी को भी आरोपियों ने अपशब्द कहकर मारा-पीटा। हत्या के बाद आरोपियों ने शव को बांधकर पहाड़ी की ओर फेंक दिया। पुलिस ने मामला दर्ज कर अभियोग पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया, जहाँ साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर अदालत ने आरोपियों पर दोष सिद्ध पाया।
न्याय ने पेश की मिसाल, अंधविश्वास को बर्दाश्त नहीं करेगा कानून
न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा कि समाज में अंधविश्वास और जादूटोने के नाम पर की जाने वाली हिंसा न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि मानवता पर कलंक है। ऐसे अपराधों को सख्त दंड के बिना नहीं छोड़ा जा सकता। यह फैसला उन तमाम निर्दोषों के लिए उम्मीद का प्रतीक है, जो आज भी “सिरहा-गुनिया” जैसे अंधविश्वासों की भेंट चढ़ जाते हैं।
किस-किस को कितनी-कितनी, किन-किन धाराओं में सजा
प्रधान सत्र न्यायाधीश गोविंद नारायण जांगड़े ने सभी पांच दोषियों को आजीवन कारावास के साथ अन्य धाराओं में क्रमशः 1 वर्ष, 5 वर्ष और 6-6 माह का कठोर कारावास तथा प्रत्येक धारा में 100-100 रुपये का अर्थदंड देने का आदेश दिया। अर्थदंड न देने पर उन्हें प्रत्येक धारा में एक माह का अतिरिक्त कठोर कारावास भुगतना होगा। यह निर्णय न केवल अपराध के प्रति कानून की सख्ती को दर्शाता है,बल्कि बस्तर जैसे अंचलों में अंधविश्वास पर कानूनी प्रहार का प्रतीक भी बन गया है।
